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पिरूल उत्पादों पर राज्य को बड़े प्लेयर्स की जरूरत, विभाग के सामने आ रही ये चुनौती - PIRUL PRODUCTION IN UTTARAKHAND

वन विभाग पिरूल उत्पादों को लेकर बड़े प्लेयर्स की तलाश में है. दरअसल इसके पीछे की वजह बड़ी मात्रा में पिरूल एकत्रीकरण का होना है.

Uttarakhand Forest Department
पिरूल के एकत्रीकरण को दिया जा रहा बढ़ावा (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : June 1, 2025 at 9:35 AM IST

4 Min Read

देहरादून: पिरूल एकत्रीकरण वन विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है. इसके जरिए विभाग जंगलों में मौजूद पिरूल को हटाकर वनाग्नि की घटनाओं में कमी लाने का प्रयास कर रहा है. हालांकि इसकी जरिए दूसरे कुछ महत्वपूर्ण कार्य भी विभाग कर रहा है, जो महकमे को ग्रामीणों से जोड़ने में मददगार होगा.

हाल ही में वन विभाग ने पिरूल एकत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए ₹3 प्रति किलो से बढ़ाकर इसके दाम 10 रुपए /किलो किए हैं. विभाग का यह फैसला ग्रामीण वासियों को पिरूल एकत्रीकरण के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, शायद यही कारण है कि तमाम जिलों में अब पहले से भी ज्यादा लोग इस काम में शामिल हो रहे हैं.

पिरूल उत्पादों पर राज्य को बड़े प्लेयर्स की जरूरत (Video-ETV Bharat)

वन विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों को देखें तो विभिन्न जिलों में पिरूल एकत्रीकरण काफी मात्रा में हो रहा है. विभिन्न प्रभागों के आधार पर एकत्रित किए गए पिरूल का रिकॉर्ड इस साल मई महीने तक विभागीय स्तर पर तैयार किया गया है. इसके तहत अल्मोड़ा वन प्रभाग में 689.6 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया है. बागेश्वर में कुल 175 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया है. चंपावत में 553.75 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया था. नैनीताल में कुल 700 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया. पौड़ी जिले में भी 3782 कुंतल पिरूल एकत्रित हुआ. उत्तरकाशी जिले में 805 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया. नरेंद्र नगर क्षेत्र में 158 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया. इसी तरह मसूरी क्षेत्र में भी 707.58 कुंतल पिरूल इकट्ठा हुआ. इस तरह राज्य में कुल 74 लाख से ज्यादा का पिरूल एकत्रित किया गया है.

जब से पिरूल के दाम बड़े हैं तब से लोगों में इसको लेकर ज्यादा प्रोत्साहन दिखाई दे रहा है. इसमें खासतौर पर महिला सहायता समूह की भूमिका बेहद ज्यादा बढ़ रही है और बड़ी मात्रा में स्थानीय लोग भी पिरूल इकट्ठा कर रहे हैं.
निशांत वर्मा, एपीसीसीएफ वनाग्नि एवं आपदा, उत्तराखंड वन विभाग

वैसे तो पिरूल एकत्रीकरण को लेकर चल रहा है यह कार्यक्रम केवल जंगलों की आग के लिए हो रहे प्रयासों तक सीमित नहीं है बल्कि इससे स्थानीय लोगों को आमदनी का मौका भी मिल रहा है. हालांकि सरकार इस पूरे अभियान को रेवेन्यू मॉडल पर नहीं चला रही है और राज्य को इससे कोई राजस्व भी प्राप्त नहीं हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद पिरूल का उपयोग करने वाली तमाम फैक्ट्री को रॉ मैटेरियल मिल पा रहा है. साथ ही आम लोग इस कार्यक्रम के जरिए वन विभाग से भी जुड़ पा रहे हैं.

फिलहाल इस पिरूल एकत्रीकरण के कार्यक्रम को लेकर सबसे बड़ी चुनौती इसके उपयोग की है. राज्य में फिलहाल 9 यूनिट एस मौजूद है जो पिरूल के जरिए पिकेट्स बना रही हैं लेकिन जिस तरह से पिरूल एकत्रीकरण में तेजी आई है, उसके बाद राज्य में और भी अधिक प्राइवेट प्लेयर्स की जरूरत होगी. इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह भी है कि पिरूल एकत्रीकरण करने के बाद इसे स्टोर करना आसान नहीं है और भारी मात्रा में मौजूद होने के कारण इसे काफी दिनों तक सीमित जगह पर स्टोर नहीं किया जा सकता. जाहिर है कि इस स्थिति के बीच वन विभाग को इसके उपयोग करने वाले तमाम प्राइवेट प्लेयर से भी संपर्क करना होगा.

फिलहाल पिरूल एकत्रीकरण करने के बाद प्रदेश में ही कुछ बड़े प्लेयर्स अपनी डिमांड को इसके जरिए पूरा कर पा रहे हैं. जबकि अब राज्य के बाहर के बड़े प्लेयर्स से भी संपर्क साधा जा रहा है ताकि उनकी जरूरत को भी पूरा किया जा सके और राज्य में पिरूल अधिक मात्रा में एकत्रित होने की समस्या भी ना रहे.

ये भी पढ़ेंः इंडियन ऑयल पिरूल की उपयोगिता पर करेगी स्टडी, जल्द गठित होगी कमेटी

ये भी पढ़ेंः वनाग्नि को लेकर सरकार गंभीर, 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' पर दिया जोर, CM ने केदारनाथ यात्रा तैयारियों का जायजा

देहरादून: पिरूल एकत्रीकरण वन विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है. इसके जरिए विभाग जंगलों में मौजूद पिरूल को हटाकर वनाग्नि की घटनाओं में कमी लाने का प्रयास कर रहा है. हालांकि इसकी जरिए दूसरे कुछ महत्वपूर्ण कार्य भी विभाग कर रहा है, जो महकमे को ग्रामीणों से जोड़ने में मददगार होगा.

हाल ही में वन विभाग ने पिरूल एकत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए ₹3 प्रति किलो से बढ़ाकर इसके दाम 10 रुपए /किलो किए हैं. विभाग का यह फैसला ग्रामीण वासियों को पिरूल एकत्रीकरण के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, शायद यही कारण है कि तमाम जिलों में अब पहले से भी ज्यादा लोग इस काम में शामिल हो रहे हैं.

पिरूल उत्पादों पर राज्य को बड़े प्लेयर्स की जरूरत (Video-ETV Bharat)

वन विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों को देखें तो विभिन्न जिलों में पिरूल एकत्रीकरण काफी मात्रा में हो रहा है. विभिन्न प्रभागों के आधार पर एकत्रित किए गए पिरूल का रिकॉर्ड इस साल मई महीने तक विभागीय स्तर पर तैयार किया गया है. इसके तहत अल्मोड़ा वन प्रभाग में 689.6 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया है. बागेश्वर में कुल 175 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया है. चंपावत में 553.75 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया था. नैनीताल में कुल 700 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया. पौड़ी जिले में भी 3782 कुंतल पिरूल एकत्रित हुआ. उत्तरकाशी जिले में 805 कुंतल पिरूल इकट्ठा किया गया. नरेंद्र नगर क्षेत्र में 158 कुंतल पिरूल एकत्रित किया गया. इसी तरह मसूरी क्षेत्र में भी 707.58 कुंतल पिरूल इकट्ठा हुआ. इस तरह राज्य में कुल 74 लाख से ज्यादा का पिरूल एकत्रित किया गया है.

जब से पिरूल के दाम बड़े हैं तब से लोगों में इसको लेकर ज्यादा प्रोत्साहन दिखाई दे रहा है. इसमें खासतौर पर महिला सहायता समूह की भूमिका बेहद ज्यादा बढ़ रही है और बड़ी मात्रा में स्थानीय लोग भी पिरूल इकट्ठा कर रहे हैं.
निशांत वर्मा, एपीसीसीएफ वनाग्नि एवं आपदा, उत्तराखंड वन विभाग

वैसे तो पिरूल एकत्रीकरण को लेकर चल रहा है यह कार्यक्रम केवल जंगलों की आग के लिए हो रहे प्रयासों तक सीमित नहीं है बल्कि इससे स्थानीय लोगों को आमदनी का मौका भी मिल रहा है. हालांकि सरकार इस पूरे अभियान को रेवेन्यू मॉडल पर नहीं चला रही है और राज्य को इससे कोई राजस्व भी प्राप्त नहीं हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद पिरूल का उपयोग करने वाली तमाम फैक्ट्री को रॉ मैटेरियल मिल पा रहा है. साथ ही आम लोग इस कार्यक्रम के जरिए वन विभाग से भी जुड़ पा रहे हैं.

फिलहाल इस पिरूल एकत्रीकरण के कार्यक्रम को लेकर सबसे बड़ी चुनौती इसके उपयोग की है. राज्य में फिलहाल 9 यूनिट एस मौजूद है जो पिरूल के जरिए पिकेट्स बना रही हैं लेकिन जिस तरह से पिरूल एकत्रीकरण में तेजी आई है, उसके बाद राज्य में और भी अधिक प्राइवेट प्लेयर्स की जरूरत होगी. इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह भी है कि पिरूल एकत्रीकरण करने के बाद इसे स्टोर करना आसान नहीं है और भारी मात्रा में मौजूद होने के कारण इसे काफी दिनों तक सीमित जगह पर स्टोर नहीं किया जा सकता. जाहिर है कि इस स्थिति के बीच वन विभाग को इसके उपयोग करने वाले तमाम प्राइवेट प्लेयर से भी संपर्क करना होगा.

फिलहाल पिरूल एकत्रीकरण करने के बाद प्रदेश में ही कुछ बड़े प्लेयर्स अपनी डिमांड को इसके जरिए पूरा कर पा रहे हैं. जबकि अब राज्य के बाहर के बड़े प्लेयर्स से भी संपर्क साधा जा रहा है ताकि उनकी जरूरत को भी पूरा किया जा सके और राज्य में पिरूल अधिक मात्रा में एकत्रित होने की समस्या भी ना रहे.

ये भी पढ़ेंः इंडियन ऑयल पिरूल की उपयोगिता पर करेगी स्टडी, जल्द गठित होगी कमेटी

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