देहरादून: अवैध खनन का मामला लोकसभा में गूंजा तो उत्तराखंड में भी इसको लेकर राजनीति सातवें आसमान पर पहुंच गया है. हालांकि खनन पर कलेश राज्य की राजनीति का हिस्सा रहा है. लेकिन अक्सर पर्यावरण प्रेमी भी इसके पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता जाहिर करते रहे हैं.फिलहाल ऐसी ही कुछ चिंताओं को लेकर उत्तराखंड खनन विभाग ने भी पांच सदस्य कमेटी का गठन कर राज्य में खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को जानने की कोशिश की है. वैसे खनन विभाग खुद से पर्यावरण को लेकर इतना सजग नहीं हुआ है, बल्कि एनजीटी (National green tribunal) के निर्देशों के क्रम में यह कदम उठाया गया है.
खनन पर 5 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति कर रही अध्ययन: उत्तराखंड खनन विभाग ने पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो राज्य में खनन के भूगर्भीय प्रभावों का अध्ययन कर रही है. खनन विभाग ने इस कमेटी को "Geo-tectonic Zones" के पारिस्थितिकी और "seismic stability" पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करने के लिए बनाया है. इस समिति में अध्यक्ष के तौर पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक को रखा है. इसके अलावा भारतीय सर्वेक्षण विभाग के भूकंप विज्ञानी, आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञ, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के वरिष्ठ विशेषज्ञ वैज्ञानिक को सदस्य बनाया गया है. जबकि भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के संयुक्त निदेशक को भी इसका सदस्य सचिव बनाया गया है.
160 माइनिंग यूनिट्स किया सस्पेंड: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद खनन विभाग ने एक्टिव मोड में आकर विशेषज्ञ समिति का गठन किया तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भी फौरन हरकत में आते हुए राज्य में खनन पर रोक लगाने के निर्देश जारी कर दिए. हालांकि विशेषज्ञ समिति ने आईबीएम (रिवर बेल्ट मटेरियल) खनन को भूगर्भीय प्रभावों से अलग बताया है. इसके चलते राज्य ने नदियों में हो रहे खनन पर कोई रोक नहीं लगाई है. उधर दूसरे तरफ विशेष खनन से जुड़े करीब 160 माइनिंग यूनिट्स को पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने सस्पेंड कर दिया है.
बागेश्वर में खनन कार्यों पर रोक अभी बाकी जिलों में भी होगा एक्शन: पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने अकेले बागेश्वर में विशेष तरह के 160 खनन लाइसेंस सस्पेंड किए हैं. इसमें खड़िया, लाइम स्टोन, मैग्नेसाइट, डोलोनाइट और सिलिका सैड जैसे खनन अभी अध्ययन के दायरे में है. यह ऐसे खनन हैं, जो चट्टानों में होते हैं और यहां से खनन होने की स्थिति में जिओ टेक्टोनिक जॉन के पारिस्थितिकी और सेसमिक स्टेबिलिटी पर भी प्रभाव संभव है. हालांकि विशेषज्ञ समिति अभी इस पर अध्ययन कर रही है और इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही इसकी असल स्थिति सबके सामने आ सकेगी.
विशेषज्ञ समिति की प्राथमिक रिपोर्ट में आए कई बिंदु: विशेषज्ञ समिति की प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग भूकंपीय स्थिरता के मामले में संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं. वहीं देहरादून, टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों को इसके मुकाबले अपेक्षाकृत कम टेक्तटोनिक तनाव वाला माना जाता है. Himalayan frontal thrust द्वारा इसे दो हिस्सों में बांटा गया है. पहले हिमालय बेल्ट और दूसरा सिंधु गंगा मैदान. हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल का अधिकतर हिस्सा सिंधु गंगा प्रभाग के अंतर्गत फ्रंटल हिमालय में आता है, जबकि राज्य के शेष जिले हिमालय बेल्ट में आते हैं.
यहां दो प्रकार की होती है खनन गतिविधियां: नदी तल पर होने वाले खनन के अलावा खनिजों सोपस्टोन, मैग्नीफाइड और सिलिका सैड का भी खनन किया जाता है. नदी तल पर होने वाले खनन के लिए अधिकतम तीन मीटर की गहराई से खनन किया जाता है. वन क्षेत्र में उत्तराखंड वन निगम खनन करता है, यहां नदी के किनारे से 25% क्षेत्र को संरक्षित किया जाता है और नदी के बीच के हिस्से में 50% क्षेत्र का खनन किया जाता है. विशेषज्ञ समिति का सुझाव रहा है कि नदी तट के दोनों तरफ 15% या 10 मीटर क्षेत्र को गैर खनन क्षेत्र के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए.
खनन के लिए क्षेत्र चिन्हित: उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में कुल 6569 हेक्टेयर क्षेत्र को नदी तल खनन के लिए चिन्हित किया गया है. इसमें से 5796 हेक्टेयर क्षेत्र चार मैदानी जिलों जिसमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर शामिल में आता है. इसमें 5077 हेक्टेयर क्षेत्र उत्तराखंड वन विकास निगम को आवंटित किया गया है, जबकि बाकी 719 हेक्टेयर क्षेत्र निजी व्यक्तियों, कंपनियों को आवंटित किया गया है. विशेषज्ञ समिति ने यह स्पष्ट किया है कि हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में 3 मीटर तक मैन्युअल तरीकों से नदी का खनन करने की गतिविधि के चलते भूकंपीय स्थिरता के लिए कोई खतरा नहीं है. इसके अलावा बाकी पर्वतीय जिलों में भी विशेषज्ञ समिति ने मानकों के अनुसार नदी पर खनन के कारण भूकंपीय स्थिरता को खतरा नहीं माना है.
खनन पर रोक लगाने की तैयारी: हालांकि बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिले में मूल चट्टानों पर पाए जाने वाले सोपस्टोन, मैग्नेसाइट और सिलिका सैंड खनिजों को लेकर अभी अनुमति देने के पक्ष में विशेषज्ञ समिति नहीं है और इस पर अभी अध्ययन का काम जारी है. उधर बागेश्वर में 160 माइनिंग यूनिट्स के लाइसेंस सस्पेंड करने के बाद अब जल्द ही बाकी जिलों में भी इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने की तैयारी हो रही है.
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