देहरादून (रोहित कुमार सोनी): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 24 मई को हुई नीति आयोग की शासी परिषद की 10वीं बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तमाम विषयों को रखा था, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण डेमोग्राफिक डिविडेंड (जनसांख्यिकीय लाभांश) पर विशेष जोर दिया था, क्योंकि विकसित भारत के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उत्तराखंड भी अगले 10 सालों तक ही डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठा सकता है.
दरअसल, डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने में आगामी 10 साल राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं. आखिर क्या है डेमोग्राफिक डिविडेंड? उत्तराखंड सरकार कैसे अगले 10 सालों तक डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने पर दे रही है जोर. इसी को विस्तार से बताते हैं.
सबसे पहले जानिए डेमोग्राफिक डिविडेंड क्या है: आसान भाषा में समझें तो डेमोग्राफिक डिविडेंड का मतलब किसी भी देश की जनसंख्या की आयु संरचना (Age Structure) में परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक लाभ. आम तौर पर ये तभी होता है तो जब कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) की जनसंख्या, युवा आश्रित जनसंख्या (14 वर्ष से कम) और बुजुर्ग आश्रित जनसंख्या (65 वर्ष से अधिक) से अधिक हो जाती है.

दूसरे शब्दों में कहें तो जब कार्यशाली (काम करने वाले) आयु वर्ग की जनसंख्या बढ़ जाती है तो इससे देश में बचत, निवेश और उत्पादन में वृद्धि होती है. अधिक लोग काम करते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ता है और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है. इसलिए कहा जा रहा है कि उत्तराखंड के पास एक सुनहरा मौका है. क्योंकि राज्य के पास ऐसे लोग हैं जिन्हें कार्यशाली आबादी में बदला जा सकता है.
विकसित देश की ओर बढ़ते भारत के कदम: केंद्र सरकार की कोशिश है कि भारत साल 2047 तक विकसित देश बन जाए. इसलिए केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से भी विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए अपने-अपने स्तर से सहयोग देने पर जोर दिया है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग की बैठक में डेमोग्राफिक डिविडेंड का मामला काफी अधिक चर्चाओं में रहा.
उत्तराखंड की आर्थिकी होगी मजबूत: डेमोग्राफिक डिविडेंड राज्यों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका लाभ उठाने से न सिर्फ नागरिकों की आय बढ़ेगी बल्कि राज्य की आर्थिक भी मजबूत होगी. राज्य आर्थिक रूप से मजबूत होंगे तो साल 2047 तक विकसित भारत का संकल्प भी आसानी से पूरा हो सकेगा.

सीएम धामी ने पीएम मोदी के सामने रखी अपनी बात: नई दिल्ली में 24 मई को हुई नीति आयोग की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डेमोग्राफिक डिविडेंड पर विशेष जोर दिया था. बैठक के दौरान सीएम ने कहा था कि विकसित भारत बनाने में डेमोग्राफिक डिविडेंड की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ एक समय सीमा के भीतर ही उठाना जरूरी है.
उत्तराखंड के लिए आगामी दस साल महत्वपूर्ण: उत्तराखंड के लिए आने वाले 10 साल काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि इन्हीं 10 सालों के भीतर ही डेमोग्राफिक डिविडेंड का सबसे अधिक लाभ उठाया जा सकता है. ऐसे में इसका लाभ उठाने के लिए राज्य में मुख्य रूप से स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए तमाम स्तरों पर काम किये जा रहे हैं.

दरअसल, 21 जनवरी 2025 को ही मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने Dependency and Depopulation रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इस बात को कहा गया है कि भारत के पास आर्थिक विकास के लिए जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) से लाभ उठाने के लिए कुछ ही साल बचे हुए हैं.
उम्रदराज लोगों की आबादी बढ़ने से पहले भारत को अमीर बनने की जरूरत: रिपोर्ट के अनुसार, बहुत तेजी से प्रगति करने के बाद भी भारत अभी भी कम आय वाला देश है. देश में उम्रदराज लोगों की आबादी बढ़ने से पहले देश को अमीर बनने की जरूरत है. रिपोर्ट के अनुसार भारत देश की राष्ट्रीय प्रजनन दर (National Fertility Rate) 1.98 है, जोकि सामान्य प्रजनन दर 2.1 से नीचे है. देश के सिक्किम राज्य में सबसे कम प्रजनन दर 1.05 है, जबकि बिहार में प्रजनन दर सबसे अधिक 2.98 है.
उत्तराखंड फर्टिलिटी रेट कम होने की संभावना: भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में उत्तराखंड का फर्टिलिटी रेट 1.8 था. इस दौरान उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों की फर्टिलिटी रेट 1.7 और उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की फर्टिलिटी रेट 1.9 थी. यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार अगले 10 सालों के भीतर डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने पर जोर दे रही है. क्योंकि जिस तरह से देश के साथ ही उत्तराखंड में जनसंख्या कंट्रोल किए जाने को लेकर तमाम योजनाएं और अभियान संचालित किया जा रहे हैं, इसे आने वाले समय में राज्य के फर्टिलिटी रेट और अधिक कम होने की संभावना है.

उत्तराखंड में लगातार घट रहा फर्टिलिटी रेट: रिपोर्ट के अनुसार, साल 2014 में उत्तराखंड का फर्टिलिटी रेट 2.0 था. इसी तरह साल 2015 में 2.0, साल 2016 में घटकर 1.9, साल 2017 में 1.9, साल 2018 में घटकर 1.8, साल 2019 में बढ़कर 1.9 और फिर साल 2020 में घटकर 1.8 हो गया था.

भारत युवा आबादी वाले देशों में शुमार: डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ राज्य तभी उठा सकता है, जब काम करने वाले लोगों की जनसंख्या, उम्रदराज लोगों (आश्रित जनसंख्या) की जनसंख्या से अधिक है. भारत दुनिया के सबसे अधिक युवा आबादी वाले देशों में शुमार है. क्योंकि भारत में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या का करीब 65 फीसदी लोगों की उम्र 35 साल से कम है.
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट: भारत सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018-19 में इस बात का जिक्र किया गया है कि डेमोग्राफिक लाभांश का सबसे अधिक लाभ साल 2041 के आसपास मिलेगा. उस दौरान काम करने वाले लोगों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का करीब 59 फीसदी होगा. इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार साल 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में काम कर रही है.
पॉपुलेशन बढ़ने पर मिल सकता है डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ: ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए उत्तराखंड नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ राज्य को तब मिलता है, जब राज्य की पॉपुलेशन बढ़ रही होती है. यानी राज्य का कुल फर्टिलिटी रेट 2.1 से अधिक होता है तो ये दर्शाता है कि राज्य की पॉपुलेशन बढ़ रही है. जब किसी राज्य की पॉपुलेशन बढ़ रही होती है तो राज्य में उम्रदराज लोगों की संख्या कम और युवाओं की संख्या अधिक होती है.
उत्तराखंड का कुल फर्टिलिटी रेट कम होता जा रहा है: जब राज्य का फर्टिलिटी रेट 2.1 रहेगा तो राज्य की पॉपुलेशन बढ़ना रुक जाएगा, अगर फर्टिलिटी रेट 2.1 से कम होता है तो इसका मतलब उम्रदराज लोगों की संख्या अधिक होगी और युवाओं की संख्या कम होगी. ऐसे में जब राज्य में डेमोग्राफिक डिविडेंड अच्छा होता है तो राज्य की आर्थिकी को बढ़ाने का मौका मिलता है. लेकिन डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने का समय सीमित होता है. क्योंकि उत्तराखंड सरकार भी पॉपुलेशन को कंट्रोल करने के लिए तमाम प्रयास कर रही है. जिसके चलते उत्तराखंड का कुल फर्टिलिटी रेट भी कम होता जा रहा है.
उत्तराखंड के मुकाबले इस राज्यों के पास ज्यादा समय: देश के सभी राज्यों में फर्टिलिटी रेट की स्थिति अलग अलग है. उत्तराखंड के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने के लिए अभी 10 साल का समय है. जबकि साउथ के तमाम राज्य डेमोग्राफिक डिविडेंड का पहले भी लाभ उठा चुके हैं. उत्तराखंड की तुलना में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्य के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने के लिए और अधिक समय है.
उत्तराखंड कैसे उठा सकता है डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ:
डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ पॉलिसी और प्रोग्राम के जरिए उठा सकते है. किसी भी राज्य सरकार के पास अपने नागरिकों को फायदा पहुंचाने और आर्थिकी को बढ़ाने के लिए दो तरीके होते है, जिसमें पॉलिसी और प्रोग्राम शामिल है. ऐसे में इकोनॉमिक एक्टिविटी को फैसिलिटेट करने वाली पॉलिसी बनानी होंगी. साथ ही कुछ सरकारी प्रोग्राम संचालित करने चाहिए, जिससे इकोनॉमिक एक्टिविटी को बढ़ावा मिले.
- आर मीनाक्षी सुंदरम, प्रमुख सचिव, नियोजन -
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहा कि देश में जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत है. क्योंकि इसका असर सीधे देश के विकास और उसकी आर्थिकी पर पड़ता है. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2005 में राज्य का फर्टिलिटी रेट 2.55 था, जो साल 2020 में घटकर 1.8 हो गया है.
भारत की जनसंख्या नियंत्रण के लिहाज से देखें तो यह उत्तराखंड के लिए बड़ी उपलब्धि है, लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. अगर किसी राज्य की फर्टिलिटी रेट 2.1 से काम हो जाता है तो वहीं उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही युवाओं की संख्या घटने लगती है, जो आने वाले समय के लिए भी एक बड़ी चुनौती हो जाती है.
फर्टिलिटी रेट ज्यादा कम भी नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो आने वाले समय में बुजुर्गों की संख्या अधिक हो जाएगी. इसी के साथ ह्यूमन रिसोर्स की संख्या घट जाएगी जो राज्य देश के लिए ठीक नहीं है. अगर काम करने वाले लोगों की जनसंख्या कम हो जाएगी तो इसका सीधा असर राज्य के विकास और आर्थिकी पर पड़ेगा. यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार डेमोग्राफिक डिविडेंड पर जोर दे रही है.
- जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार -
जय सिंह रावत का भी यही मानना है कि फिलहाल उत्तराखंड का जो फर्टिलिटी रेट चल रहा है, उस हिसाब से तो राज्य से पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ लेने के लिए 10 साल का ही समय बचा है.
उत्तराखंड की चुनौती: उत्तराखंड के लिए डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाना एक बड़ी चुनौती भी है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में आपदा जैसे हालत अक्सर बने रहते हैं. इन्हीं आपदा की वजह से राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी अधिक नुकसान पहुंचता है.
इसके अलावा बेरोजगारी और सीमित रोजगार भी एक बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि राज्य सरकार स्वरोजगार पर विशेष जोर दे रही है. प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था भी काफी बेहतर नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार को अगले 10 साल के भीतर डेमोग्राफिक डिविडेंड का बेहतर लाभ उठाने के लिए इन तमाम पहलुओं पर विशेष ध्यान देना होगा. ताकि राज्य के नागरिकों की आय बढ़ाने के साथ ही राज्य की आर्थिक को भी मजबूत किया जा सके.
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