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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने UP ट्रांसजेंडर नीति पर केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रालयों से मांगा जवाब - UP transgender policy Court Hearing

किन्नरों के हितों की रक्षा और सामाजिक रूप से उन्हें कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए किन्नर शक्ति फाउंडेशन की ओर कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस पर सोमवार को कोर्ट में सुनवाई हुई.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 10, 2024, 7:15 AM IST

कोर्ट ने याचिका पर सरकार से जबाव मांगा है.
कोर्ट ने याचिका पर सरकार से जबाव मांगा है. (Photo Credit; ETV Bharat)

प्रयागराज : यूपी में ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई है. सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जवाब मांगा है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने दिया है.

किन्नर शक्ति फाउंडेशन के अध्यक्ष शुभम गौतम की जनहित याचिका में राज्य में प्रभावी जागरूकता कार्यक्रम और ट्रांसजेंडर सुरक्षा, ट्रांसजेंडर आयुष्मान टीजी प्लस कार्ड योजना के जल्द लागू करने की मांग की गई है.

याचिका में राज्य भर में गरिमा गृह सुविधाओं की स्थापना और संचालन के लिए संसाधनों का उचित आवंटन, राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक नीतियां तैयार करने, ट्रांसजेंडर शौचालयों की स्थापना और शिक्षण संस्थानों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को प्रवेश प्रदान करने और विशेष अभियान चलाकर सरकारी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडरों की भर्ती करने की मांग की गई है

याचिका में कहा गया कि भारत में ट्रांसजेंडरों के कई सामाजिक-सांस्कृतिक समूह हैं. जैसे किन्नर, शिव-शक्ति, जोगता, जोगप्पा, आराधी, सखी आदि . ये सभी मामलों में गंभीर भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करते हैं. उन्हें मौखिक दुर्व्यवहार, शारीरिक और यौन हिंसा, झूठी गिरफ्तारी, अपनी पैतृक संपत्ति, सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित करने जैसे अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है.

परिवार, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. जनहित याचिका में कहा गया है कि भारत में ट्रांसजेंडरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह भेदभाव ट्रांसजेंडरों को रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसी प्रमुख सामाजिक वस्तुओं तक समान पहुंच से वंचित करता है.

उन्हें उन कमजोर समूहों में से एक बना देता है, जिनके सामाजिक रूप से बहिष्कृत होने का खतरा है. याचिका में कहा गया कि याची संगठन ने स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, स्वच्छता, भोजन और मनोरंजन सुविधाओं सहित ट्रांसजेंडरों को प्रभावित करने वाले जीवन के लगभग सभी पहलुओं में उचित राहत दी जाए.

विभिन्न अधिकारियों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को कई बार आवेदन दिए जा चुके हैं. इसके बावजूद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली. ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के उद्देश्यों और प्रयोजनों को लागू करने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं.

यह भी पढ़ें : लखनऊ एयरपोर्ट पर लावारिस बैग में मिला 73 लाख का सोना, अंदर रखी थी एक किलो की सोने की ईंट और अंगूठी

प्रयागराज : यूपी में ट्रांसजेंडर नीति तैयार करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई है. सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जवाब मांगा है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने दिया है.

किन्नर शक्ति फाउंडेशन के अध्यक्ष शुभम गौतम की जनहित याचिका में राज्य में प्रभावी जागरूकता कार्यक्रम और ट्रांसजेंडर सुरक्षा, ट्रांसजेंडर आयुष्मान टीजी प्लस कार्ड योजना के जल्द लागू करने की मांग की गई है.

याचिका में राज्य भर में गरिमा गृह सुविधाओं की स्थापना और संचालन के लिए संसाधनों का उचित आवंटन, राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक नीतियां तैयार करने, ट्रांसजेंडर शौचालयों की स्थापना और शिक्षण संस्थानों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को प्रवेश प्रदान करने और विशेष अभियान चलाकर सरकारी क्षेत्रों में ट्रांसजेंडरों की भर्ती करने की मांग की गई है

याचिका में कहा गया कि भारत में ट्रांसजेंडरों के कई सामाजिक-सांस्कृतिक समूह हैं. जैसे किन्नर, शिव-शक्ति, जोगता, जोगप्पा, आराधी, सखी आदि . ये सभी मामलों में गंभीर भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करते हैं. उन्हें मौखिक दुर्व्यवहार, शारीरिक और यौन हिंसा, झूठी गिरफ्तारी, अपनी पैतृक संपत्ति, सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित करने जैसे अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है.

परिवार, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. जनहित याचिका में कहा गया है कि भारत में ट्रांसजेंडरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह भेदभाव ट्रांसजेंडरों को रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसी प्रमुख सामाजिक वस्तुओं तक समान पहुंच से वंचित करता है.

उन्हें उन कमजोर समूहों में से एक बना देता है, जिनके सामाजिक रूप से बहिष्कृत होने का खतरा है. याचिका में कहा गया कि याची संगठन ने स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, स्वच्छता, भोजन और मनोरंजन सुविधाओं सहित ट्रांसजेंडरों को प्रभावित करने वाले जीवन के लगभग सभी पहलुओं में उचित राहत दी जाए.

विभिन्न अधिकारियों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को कई बार आवेदन दिए जा चुके हैं. इसके बावजूद कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली. ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के उद्देश्यों और प्रयोजनों को लागू करने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं.

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