गाजीपुर : यूपी में गाजीपुर के ददरी घाट पर गंगा की शांत लहरों के बीच की अनोखी खेती, जहां भूमिहीन किसान गंगा के दरिया में बालू की रेत को अपना खेत बना लेते हैं. गर्मियों में जब जलस्तर घटता है, तो यही रेत इन किसानों के लिए उम्मीद की जमीन बन जाती है. बिना किसी किराए, बिना किसी खर्चे के, गंगा मैया खुद सिंचाई का भी इंतज़ाम कर देती हैं. खीरा, ककड़ी, तरबूज और खरबूज जैसी फसलें इन किसानों की मेहनत का फल बनकर उगती हैं. यह कोई आम खेती नहीं, बल्कि संघर्ष, जुगाड़ और सामूहिक प्रयास की खेती है.
बालू की रेत पर होती है करीब 50 बीघा खेती : हर सुबह किसान परिवार नावों से सब्जियां घाट तक लाते हैं. महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी मिलकर सिर पर टोकरी उठाकर घाट की सीढ़ियां चढ़ते हैं. संकट मोचन मंदिर के पीछे अस्थायी मंडी सजती है, जहां व्यापारी थोक में सब्जियां खरीदते हैं.
इस मंडी में केवल फसलें नहीं बिकतीं, बल्कि इन किसानों की मेहनत, उम्मीद और आत्मनिर्भरता भी झलकती है. करीब 50 बीघा की खेती बालू की रेत पर होती है, जहां कुछ परिवार झोपड़ी डालकर वहीं दिन-रात रहते हैं.
सिंचाई के लिए करते हैं जुगाड़ : किसानों ने गंगा नदी के पास में ही एक जुगाड़ बना लिया है, गड्ढा खोदकर कुएं जैसा सिस्टम तैयार किया है. इससे रिसते हुए पानी से सिंचाई होती है. अप्रैल से जून तक यही खेती इनके लिए रोजगार और सम्मान की उम्मीद बन जाती है.
फिर जून महीने के शुरुआती सप्ताह में, बाढ़ की आशंका से ये किसान वापस लौट जाते हैं, लेकिन तब तक गंगा की गोद में आत्मनिर्भरता की एक सुंदर कहानी लिखी जा चुकी होती है.
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