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यूपी में बिछने लगी जातीय समीकरणों की बिसात; चलेगा सपा का PDA फार्मूला या BSP की ओर लौटेंगे दलित?, पढ़िए क्या कहते हैं विश्लेषक

यूपी में साल 2027 में होगा विधानसभा चुनाव, राजनीतिक विश्लेषक बोले- इस बार नहीं दिख रहा नया सामाजिक गठजोड़.

जातीय समीकरण को साधने की जुगत.
जातीय समीकरण को साधने की जुगत. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : October 9, 2025 at 4:34 PM IST

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लखनऊ : साल 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरणों की बिसात बिछनी शुरू हो गई है. कभी दलित-मुस्लिम समीकरण पर टिके रहने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर समाजवादी पार्टी (सपा) अब एक-दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में कांशीराम की पुण्यतिथि पर रैली की. इसके जरिए उन्होंने लोगों को साधने की कोशिश की. रैली के जरिए उन्होंने दलित वोट बैंक को मजबूत करने का भरसक प्रयास भी किया. इससे समाजवादी पार्टी को कितना नुकसान होगा?, क्या इससे सपा के पीडीए फार्मूले पर कोई असर पड़ेगा, इसे लेकर ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषक और सपा प्रवक्ता से बातचीत की.

'साल 2007 जैसी स्थिति अब नहीं' : वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा ने कहा कि 'मायावती की यह रैली कोई नई बात नहीं है. कांशीराम की पुण्यतिथि पर बीएसपी हर साल रैली करती रही है. इसे वोट बैंक के खिसकने या बढ़ने के संकेत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. साल 2007 जैसी स्थिति अब नहीं है'.

उन्होंने याद दिलाया कि 2007 में मायावती ने बहुजन+मुस्लिम+ब्राह्मण समीकरण बनाकर सत्ता हासिल की थी, लेकिन इस बार न तो कोई नया सामाजिक गठजोड़ दिख रहा है, और न ही कोई बड़ा नेता बीएसपी में शामिल हुआ है. रैली में आई भीड़ वोट में तब्दील होगी या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा.

सपा प्रवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक ने रखी अपनी बात. (Video Credit; ETV Bharat)

'दलित वोटर बीएसपी की ओर लौटे तो कांग्रेस को होगा नुकसान' : योगेश मिश्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा को दलित वोट नहीं मिला. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को 93 लाख वोट मिले थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 94 लाख पहुंचा. यानी कोई बड़ा इजाफा नहीं हुआ. जबकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई. इसलिए अगर दलित वोट वापस बीएसपी की तरफ लौटते हैं तो सपा नहीं , कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा.

सपा बोली- महापुरुष किसी एक के नहीं : सपा प्रवक्ता उदयवीर ने कहा कि महापुरुष किसी एक जाति या पार्टी के नहीं होते, वह समाज के हर वर्ग के लिए होते हैं. समाजवादी पार्टी हमेशा से दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही है. हमारी असली लड़ाई भाजपा से है न कि बीएसपी से.

उन्होंने कहा कि अगर आज संविधान सुरक्षित है तो समाजवादी आंदोलन और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जैसे महापुरुषों की वजह से है. अगर लोकसभा में भाजपा की लंगड़ी सरकार न होती तो अब तक संविधान बदल दिया गया होता.

दलित महापुरुषों के नाम पर कार्यक्रम कर रही सपा : सपा प्रवक्ता ने कहा कि साल 2014 के बाद से सपा लगातार दलित महापुरुषों के नाम पर कार्यक्रम आयोजित कर रही है. पिछले साल लखनऊ में कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष श्यामलाल पाल को श्रद्धांजलि दी गई थी. मुख्य वक्ता सांसद आरके चौधरी थे. यह कार्यक्रम सपा के बदलते रुख और दलित समाज की ओर बढ़ते कदम को दर्शाता है. इस साल भी इसी तरह के आयोजनों का समाजवादी पार्टी ने ऐलान किया है.

उन्होंने बताया कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 'पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA)’ का नारा दिया था. इसे 2024 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रखा गया. नतीजा उत्तर प्रदेश में सपा को 37 सीटों की बड़ी जीत मिली, जबकि बीएसपी का खाता तक नहीं खुला.

अखिलेश ने किया था कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण : सपा प्रवक्ता ने बताया कि अप्रैल 2023 में अखिलेश यादव ने कांशीराम महाविद्यालय में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था. इस मौके पर उन्होंने मुलायम सिंह यादव और कांशीराम की दोस्ती को याद किया. कहा था कि 1991 में इटावा से कांशीराम सपा के समर्थन से लोकसभा पहुंचे थे. साल 1993 में ‘मिले मुलायम-कांशीराम' जैसे नारे लगे थे.

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