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लखनऊ के नवाबी जायके को यूनेस्को ने सराहा, स्वाद ऐसा कि आप भी कहेंगे वाह, जानिए किस्सा कबाब का - LUCKNOW FAMOUS FOOD

लखनऊ का ताल्लुक सिर्फ इमारतों और पुराने नुस्खों से ही नहीं, जायके से भी है. नवाबों के दौर का स्वाद आज भी कायम है.

खाने में छाया लखनऊ का स्वाद.
खाने में छाया लखनऊ का स्वाद. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : June 20, 2025 at 11:03 PM IST

5 Min Read

लखनऊ : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से सजा लखनऊ, जिसे 'नवाबों का शहर' कहा जाता है. बड़ा इमामबाड़ा, चिकनकारी और नवाबी कबाबों की खुशबू से महकते लखनऊ को यूनेस्को ने 'क्रिएटिव सिटी फॉर गैस्ट्रोनॉमी' में चुना है.

बता दें, यूनेस्को की ‘क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क’ (यूसीसीएन) 2004 में स्थापित की गई थी, जिसमें अब तक दुनियाभर के 350 शहर शामिल हो चुके हैं. नेटवर्क में हस्तकला व लोक कला, डिजाइन, फिल्म, पाककला, साहित्य, संगीत और मीडिया आर्ट्स कैटेगरी वाले शहरों को चुना जाता है.

लखनवी शान-बान की बात यहां की एक-एक चीज में नजर आती है, तो खाना कैसे पीछे रह जाता. लखनऊ की पाकशैली मुगलई और अवधी संस्कृति का अनोखा मिश्रण है. यहां के खाने में मसालों का सही बैलेंस, धीमी आंच पर पकाने की कला और बारीक कुकिंग टेक्नीक्स का इस्तेमाल होता है.

नवाबों के जमाने से चली आ रही यह पाक परंपरा आज भी शहर की पहचान है. लखनऊ सिर्फ तहजीब ही नहीं जायकों और लताफत की जिंदा मिसाल है. यहां की गलियों में चलते हुए इतिहास बोलता है और हवाओं में बिरयानी-कबाब की खुशबू तैरती है.

यूनेस्को की पसंद बना लखनऊ का जायका. (Video Credit; ETV Bharat)

नवाबी स्वाद और मेहमाननवाजी : चिकनकारी की नफासत हो या बड़ा इमामबाड़ा की भव्यता, लखनऊ हर मोर्चे पर दिल जीतने वाला शहर है. यहां की तहजीब, मिठास और पाक-शैली आज भी उसी नवाबी दौर को बयां करती है जब खाना सिर्फ भूख मिटाने का नहीं, एक ‘दावत-ए-इश्क़’ का हिस्सा होता था.

लखनऊ का खाना सिर्फ खाना नहीं, एक अनुभव है. अवधी खानपान की जड़ें मुग़लई, फारसी और भारतीय पकवानों के संगम से निकली हैं. खास बात है यहां का दम पकाने का तरीका यानी धीमी आंच पर पकाकर हर स्वाद को संजोना.

32 तरह के बनते हैं कवाब : नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि लखनऊ की पहचान इसकी अनूठी कबाब परंपरा से भी है. यहां 32 प्रकार के कबाब बनाए जाते हैं, जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी मुफीद माने जाते हैं. लखनऊ के गलावटी कबाब (जिसे बाद में 'टुंडे कबाब' के नाम से जाना गया) में इस्तेमाल होने वाले मसाले किसी आम बाजारू सामग्री से नहीं, बल्कि खास हकीमी जड़ी-बूटियों से बनाए जाते हैं. पुराने हकीमों का कहना था कि ये कबाब पेट की तमाम बीमारियों का इलाज हैं.

राजधानी का स्वाद है बेजोड़.
राजधानी का स्वाद है बेजोड़. (Photo Credit; ETV Bharat)

शामी कबाब की शाही कहानी : लखनऊ का मशहूर शामी कबाब भी अपनी एक दिलचस्प कहानी लिए हुए है. नवाब मसूद बताते हैं, नवाबों के दौर में जॉर्डन (जिसे उर्दू में ‘मुल्के शाम’ कहते हैं) से कुछ फौजी लखनऊ आए थे, जिन्होंने यह खास रेसिपी साझा की थी. तभी से इसे ‘शामी कबाब’ कहा जाने लगा. इसकी खुशबू, इसका स्वाद और मुलायम बनावट आज भी लोगों को दीवाना बना देती है.

काकोरी की खुशबू और तहजीब : लखनऊ से सटे काकोरी क्षेत्र से काकोरी कबाब की कहानी जुड़ी है. मसूद अब्दुल्ला बताते हैं, सिक में लगाकर बनाए जाने वाले इन कबाबों में बेहद बारीक मसाले डाले जाते हैं, जो इन्हें औरों से अलग बनाते हैं. यह कबाब नवाबी ज़माने में मेहमाननवाज़ी का खास हिस्सा हुआ करता था.

पीपल के पत्ते पर बढ़ जाता है कवाब का स्वाद.
पीपल के पत्ते पर बढ़ जाता है कवाब का स्वाद. (Photo Credit; ETV Bharat)

टुंडे कबाब का स्वाद जो विरासत बना : चौक स्थित टुंडे कबाबी के मालिक अबूबकर बताते हैं, हम चार पीढ़ियों से गलावटी कबाब बना रहे हैं. हमारी दुकान 125 साल पुरानी है और यहां 135 से भी ज्यादा मसालों से कबाब तैयार होता है. देश-विदेश से लोग आते हैं, खाते हैं और पैक करवा कर अपने साथ ले जाते हैं. इस कबाब की खासियत यह है कि इसमें कच्चा पपीता डाला जाता है, जो इसे बेहद मुलायम बनाता है. इसे पीतल के बर्तन में कोयले की आंच पर पकाया जाता है और फिर बरगद के पत्तों में लपेटकर परोसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी निखर जाता है.

धीमी आंच पर पकाया जाता है कबाब.
धीमी आंच पर पकाया जाता है कबाब. (Photo Credit; ETV Bharat)

लखनऊ का पान और दस्तरखान की कहानी : मसूद अब्दुल्ला एक और दिलचस्प बात बताते हैं, लखनऊ में पान खाया नहीं जाता, बल्कि ‘शौक फरमाया’ जाता है. यह तहज़ीब का हिस्सा है. लखनऊ के खानपान पर एक फिल्म भी बन चुकी है ‘दस्तरख़ान’, जिसमें लखनऊ की खानपान संस्कृति और यहां की राजनीतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि को बखूबी दिखाया गया है. इस फिल्म का गीत ‘दावत-ए-इश्क’ खासा लोकप्रिय हुआ.

खास है लखनऊ का स्वाद : मुबीन होटल के मालिक यहया रिज़वान बताते हैं, यह बहुत खुशी की बात है कि लखनऊ के खानपान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. लखनऊ के खाने की खासियत यह है कि मसाले कम होते हैं, लेकिन जायका भरपूर. चाहे वह नहरी हो, कोरमा हो या बिरयानी सब कुछ धीमी आंच और खास अंदाज़ में पकाया जाता है.

यह भी पढ़ें : लखनऊ नगर निगम ने यूजर चार्ज में किया बड़ा बदलाव, डिजिटल पेमेंट करने पर मिलेगी छूट, मेयर ने ऑनलाइन जमा किया टैक्स

लखनऊ : ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से सजा लखनऊ, जिसे 'नवाबों का शहर' कहा जाता है. बड़ा इमामबाड़ा, चिकनकारी और नवाबी कबाबों की खुशबू से महकते लखनऊ को यूनेस्को ने 'क्रिएटिव सिटी फॉर गैस्ट्रोनॉमी' में चुना है.

बता दें, यूनेस्को की ‘क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क’ (यूसीसीएन) 2004 में स्थापित की गई थी, जिसमें अब तक दुनियाभर के 350 शहर शामिल हो चुके हैं. नेटवर्क में हस्तकला व लोक कला, डिजाइन, फिल्म, पाककला, साहित्य, संगीत और मीडिया आर्ट्स कैटेगरी वाले शहरों को चुना जाता है.

लखनवी शान-बान की बात यहां की एक-एक चीज में नजर आती है, तो खाना कैसे पीछे रह जाता. लखनऊ की पाकशैली मुगलई और अवधी संस्कृति का अनोखा मिश्रण है. यहां के खाने में मसालों का सही बैलेंस, धीमी आंच पर पकाने की कला और बारीक कुकिंग टेक्नीक्स का इस्तेमाल होता है.

नवाबों के जमाने से चली आ रही यह पाक परंपरा आज भी शहर की पहचान है. लखनऊ सिर्फ तहजीब ही नहीं जायकों और लताफत की जिंदा मिसाल है. यहां की गलियों में चलते हुए इतिहास बोलता है और हवाओं में बिरयानी-कबाब की खुशबू तैरती है.

यूनेस्को की पसंद बना लखनऊ का जायका. (Video Credit; ETV Bharat)

नवाबी स्वाद और मेहमाननवाजी : चिकनकारी की नफासत हो या बड़ा इमामबाड़ा की भव्यता, लखनऊ हर मोर्चे पर दिल जीतने वाला शहर है. यहां की तहजीब, मिठास और पाक-शैली आज भी उसी नवाबी दौर को बयां करती है जब खाना सिर्फ भूख मिटाने का नहीं, एक ‘दावत-ए-इश्क़’ का हिस्सा होता था.

लखनऊ का खाना सिर्फ खाना नहीं, एक अनुभव है. अवधी खानपान की जड़ें मुग़लई, फारसी और भारतीय पकवानों के संगम से निकली हैं. खास बात है यहां का दम पकाने का तरीका यानी धीमी आंच पर पकाकर हर स्वाद को संजोना.

32 तरह के बनते हैं कवाब : नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि लखनऊ की पहचान इसकी अनूठी कबाब परंपरा से भी है. यहां 32 प्रकार के कबाब बनाए जाते हैं, जो स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी मुफीद माने जाते हैं. लखनऊ के गलावटी कबाब (जिसे बाद में 'टुंडे कबाब' के नाम से जाना गया) में इस्तेमाल होने वाले मसाले किसी आम बाजारू सामग्री से नहीं, बल्कि खास हकीमी जड़ी-बूटियों से बनाए जाते हैं. पुराने हकीमों का कहना था कि ये कबाब पेट की तमाम बीमारियों का इलाज हैं.

राजधानी का स्वाद है बेजोड़.
राजधानी का स्वाद है बेजोड़. (Photo Credit; ETV Bharat)

शामी कबाब की शाही कहानी : लखनऊ का मशहूर शामी कबाब भी अपनी एक दिलचस्प कहानी लिए हुए है. नवाब मसूद बताते हैं, नवाबों के दौर में जॉर्डन (जिसे उर्दू में ‘मुल्के शाम’ कहते हैं) से कुछ फौजी लखनऊ आए थे, जिन्होंने यह खास रेसिपी साझा की थी. तभी से इसे ‘शामी कबाब’ कहा जाने लगा. इसकी खुशबू, इसका स्वाद और मुलायम बनावट आज भी लोगों को दीवाना बना देती है.

काकोरी की खुशबू और तहजीब : लखनऊ से सटे काकोरी क्षेत्र से काकोरी कबाब की कहानी जुड़ी है. मसूद अब्दुल्ला बताते हैं, सिक में लगाकर बनाए जाने वाले इन कबाबों में बेहद बारीक मसाले डाले जाते हैं, जो इन्हें औरों से अलग बनाते हैं. यह कबाब नवाबी ज़माने में मेहमाननवाज़ी का खास हिस्सा हुआ करता था.

पीपल के पत्ते पर बढ़ जाता है कवाब का स्वाद.
पीपल के पत्ते पर बढ़ जाता है कवाब का स्वाद. (Photo Credit; ETV Bharat)

टुंडे कबाब का स्वाद जो विरासत बना : चौक स्थित टुंडे कबाबी के मालिक अबूबकर बताते हैं, हम चार पीढ़ियों से गलावटी कबाब बना रहे हैं. हमारी दुकान 125 साल पुरानी है और यहां 135 से भी ज्यादा मसालों से कबाब तैयार होता है. देश-विदेश से लोग आते हैं, खाते हैं और पैक करवा कर अपने साथ ले जाते हैं. इस कबाब की खासियत यह है कि इसमें कच्चा पपीता डाला जाता है, जो इसे बेहद मुलायम बनाता है. इसे पीतल के बर्तन में कोयले की आंच पर पकाया जाता है और फिर बरगद के पत्तों में लपेटकर परोसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी निखर जाता है.

धीमी आंच पर पकाया जाता है कबाब.
धीमी आंच पर पकाया जाता है कबाब. (Photo Credit; ETV Bharat)

लखनऊ का पान और दस्तरखान की कहानी : मसूद अब्दुल्ला एक और दिलचस्प बात बताते हैं, लखनऊ में पान खाया नहीं जाता, बल्कि ‘शौक फरमाया’ जाता है. यह तहज़ीब का हिस्सा है. लखनऊ के खानपान पर एक फिल्म भी बन चुकी है ‘दस्तरख़ान’, जिसमें लखनऊ की खानपान संस्कृति और यहां की राजनीतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि को बखूबी दिखाया गया है. इस फिल्म का गीत ‘दावत-ए-इश्क’ खासा लोकप्रिय हुआ.

खास है लखनऊ का स्वाद : मुबीन होटल के मालिक यहया रिज़वान बताते हैं, यह बहुत खुशी की बात है कि लखनऊ के खानपान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. लखनऊ के खाने की खासियत यह है कि मसाले कम होते हैं, लेकिन जायका भरपूर. चाहे वह नहरी हो, कोरमा हो या बिरयानी सब कुछ धीमी आंच और खास अंदाज़ में पकाया जाता है.

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