हुनरमंद हैं ये दिव्यांग बच्चे, इनके बनाए रंग-बिरेंगे दीपों से जगमग होगी उज्जैन की दीवाली
उज्जैन में मानसिक रूप से दिव्यांग युवा दिखा रहे गजब की कलाकारी, दीपावली के लिए तैयार कर रहे हैं दीया, मोमबत्ती और आर्टिफिशियल लाइट्स.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team
Published : October 9, 2025 at 5:37 PM IST
|Updated : October 9, 2025 at 7:19 PM IST
उज्जैन: हिम्मत नहीं हारा हूं, अभी भी हौसलों में जान है. तू देख, बस देख, मेरे हौसलों में कितनी ऊंची उड़ान है. निर्मल कुमार की ये पंक्तियां उज्जैन मनोविज्ञान केंद्र के युवक-युवतियों के हौसलों पर सटीक बैठ रही हैं. मानसिक रूप से दिव्यांग ये युवक-युवती भले ही दुनिया को वैसे नहीं देख सकते जैसे एक सामान्य व्यक्ति देखता है, लेकिन इनके हाथों में ऐसा हुनर छुपा है जो किसी कुशल कारीगर को अपनी कला पर शक पैदा करने को मजबूर कर सकता है. दीपावली से पहले ये मिट्टी के दीपक, कैंडल, बाती और कई प्रकार के आर्टिफिशियल सजावटी सामग्री तैयार कर रहे हैं. इनका तैयार किया हुआ एक-एक दीपक मानों इनके आत्मविश्वास और दृढ़ता की कहानी कर रहा है.
जवाहर नगर स्थित मनोविकास केंद्र की कहानी
उज्जैन के जवाहर नगर में स्थित मनोविकास केंद्र (मनोविकास विशेष विद्यालय) में मानसिक रूप से दिव्यांग 200 युवक-युवतियां और बच्चे अध्ययनरत हैं. इन दिनों ये सभी मिट्टी के दीपक, मोमबत्ती और कई प्रकार के आर्टिफिशियल सजावटी सामान बना रहे हैं. केंद्र के संचालक फादर जिजो जॉर्ज बताते हैं "इनकी उम्र 5 से 35 वर्ष तक है. सभी ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी और सेरेब्रल पाल्सी जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं.
साधारण भाषा में कहें तो ये बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हैं. इनको लिखना-पढ़ना, खुद से खाना खाना, कलर की पहचान करने जैसे कई कामों को करने में समस्या होती है. कुछ बच्चे और नौजवान हायपर एटीट्यूड वाले भी हैं. हम यहां पर सभी को कई तरह से प्रशिक्षित कर रहे हैं और उन्हें एक नया जीवन देने की कोशिश कर रहे हैं."


12 साल से चला आ रहा दीपावली प्रोजेक्ट
मनोविकार केंद्र की सिस्टर एंसी और अन्य प्रशिक्षकों के निर्देशन में 18 वर्ष से ऊपर के 20 बच्चे दीपावली के लिए मिट्टी के दीपक, कैंडल और आर्टिफिशियल सजावटी वस्तुएं बना रहे हैं. सिस्टर एंसी बताती हैं कि "पिछले 12 साल से हम यह प्रोजेक्ट चला रहे हैं. हर त्योहार से दो महीने पहले बच्चों को काम दिया जाता है.


इसके बाद इन्हीं बच्चों से स्कूलों में स्टॉल लगवाए जाते हैं, ताकि वे अपने बनाए प्रोडक्ट को खुद बेच सकें. कुछ दीपक बाजार के खरीद कर लाए गए हैं जिसपर ये डिजाइन बनाते हैं. बच्चों द्वारा बनाए गए दीपक और अन्य सजावटी आइटम की कीमत 10 रुपये से 100 रुपये तक होती है. आकर्षक डिजाइन वाले दीपक और कैंडल की मार्केट में बड़ी मांग रहती है."


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कोई बच्चा सिक्योरिटी गार्ड बनता है तो कोई हेल्पर
फादर जिजो जॉर्ज बताते हैं "बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उनके माता-पिता की परमिशन से यहां उन्हें अलग-अलग काम भी सौंपे जाते हैं. इससे उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है. कोई सिक्योरिटी गार्ड की भूमिका निभाता है, तो कोई हेल्पर या ऑफिस असिस्टेंट के रूप में काम करता है. जब बच्चे मानसिक रूप से बेहतर हो जाते हैं, तो हम उन्हें यहीं रोजगार देते हैं. वे हमारे लिए एक एम्प्लॉयी बन जाते हैं." मानसिक रूप से कमजोर कहे जाने वाले ये बच्चे आज मेहनत, हुनर और आत्मविश्वास से एक अलग पहचान बना रहे हैं.


