रायबरेली : जिले के बेलीगंज बाजार में 183 साल पुराना एक स्कूल आज भी मौजूद है. वर्ष 1843 में बना यह स्कूल उस समय 'मॉडल स्कूल' के नाम से जाना जाता था. जानकार मानते हैं कि रायबरेली का यह सबसे पहला स्कूल है.
जानकार बताते हैं कि एक समय बाद इस स्कूल को अंग्रेज अधिकारी के नाम 'बेलीगंज स्कूल' से जाना जाने लगा. आज भी यह स्कूल मजबूती के साथ खड़ा है, लेकिन इसका कुछ भाग खंडहर का रूप ले चुका है.
स्कूल में वर्तमान समय में कुल 118 बच्चे पढ़ रहे हैं, जिन्हें कुल 4 टीचर पढ़ाते हैं. स्कूल में कुल पांच कमरे हैं, जिनमें से एक कमरा ऑफिस के लिए इस्तेमाल होता है.
बताया जाता है कि स्कूल के पुराने भवन की ईंट व खपरैल भी खास तरह की है, जिसे कानपुर से यहां लाया गया था. इसमें अंग्रेजी भाषा में निर्माण करने वाली कंपनी का नाम भी अंकित है.
भवन के निर्माण में सीमेंट की जगह खास तरह की मिट्टी व अन्य चीजों का मिश्रण इस्तेमाल में लाया गया था. इस भवन की दीवारें काफी मोटी हैं और छत भी इतनी ऊंची बनाई गई है कि गर्मी व सर्दी के मौसम का असर नहीं अंदर रहने वाले पर नहीं पड़ता.
86 साल के रिटायर्ड शिक्षक व शिक्षक संघ के संरक्षक कृपा शंकर द्विवेदी बताते हैं कि 1952 में जब वह जूनियर स्कूल गौरा में पढ़ा करते थे, तब उनके गुरुजी ने बताया था कि उस समय रायबरेली में चार जगह गौरा, खजूर गांव, बेलीगंज और एक अन्य जगह पर ही स्कूल हुआ करता था.
उन्होंने बताया कि साल 1958-59 में यहीं बेलीगंज स्कूल के बगल में जो आज का सुपर मार्केट है, वहां सिमरी हाॅस्टल में रहकर आगे की पढ़ाई की थी. जब वह शिक्षक थे तब यहां नकद सैलरी मिला करती थी. बेसिक शिक्षा अधिकारी का यहीं पर कार्यालय व रहने का स्थान हुआ करता था.
उन्होंने बताया कि रायबरेली के सभी ब्लाॅकों के शिक्षकों को नकद सैलरी यहीं पर बांटी जाती थी. उस समय दूर दराज से आने वाले शिक्षकों को अगर देर हो जाती थी, तब वह यहीं पर रात गुजारते और तनख्वाह लेकर अगली सुबह अपने-अपने स्थानों की तरफ लौट जाते थे उस समय लोग साइकिल, तांगा, बैलगाड़ी जैसे साधनों से आया जाया करते थे.
आज के समय में बेलीगंज कंपोजिट स्कूल के नाम से विख्यात यह स्कूल कक्षा 8 तक चल रहा है. इस स्कूल की इंचार्ज प्रधानाध्यापिका रेनू सिंह बताती हैं कि स्कूल में कुल 118 बच्चे पढ़ रहे हैं. जिन्हें कुल चार टीचर पढ़ाते हैं. हमारे पास कुल पांच कमरे हैं, जिनमें से एक कमरा ऑफिस के लिए इस्तेमाल होता है, वहीं हमारे यहां स्मार्ट क्लास भी लगती है. उन्होंने कहा कि क्लासरूम की कमी के साथ-साथ यहां स्टाफ की भी कमी है.
कम्पोजिट स्कूल के शिक्षक विवेकानंद त्रिपाठी ने कुछ ऐसे दस्तावेज भी दिखाए जो सन् 1912 व 1923 के हैं, जिसमें उर्दू व अंग्रेजी में पत्रावली की गई है. साथ ही उन्होंने एक रजिस्टर्ड भी दिखाया, जिसमें रायबरेली जनपद के लगातार 25 साल विधायक रहे स्व. अखिलेश कुमार सिंह का रजिस्ट्रेशन भी यहीं पर हुआ था. जानकार यह भी बताते हैं कि पूर्व विधायक के पिता रावेंद्र सिंह उर्फ धुन्नी सिंह ने भी अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई यहीं से की थी.
शिक्षक विवेकानंद त्रिपाठी के मुताबिक, रायबरेली का बेलीगंज अंग्रेजी शासन काल में थोक बाजार की पहचान के लिए जाना जाता था. स्कूल ब्रिटिश अधिकारी डीसी बेली द्वारा स्थापित किया गया. साल 1899 -1900 के अकाल के दौरान बेलीगंज अनाज व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था.
बताया जाता है कि यहां दूर दराज से व्यापारी घोड़े लेकर आते और इस स्कूल के पास उसे बांधकर खरीदारी किया करते थे. आज इस ऐतिहासिक स्थान पर जो पुराने भवन हैं उनमें से कुछ आज भी ठीक हालत में हैं, वहीं कुछ हिस्सा अनदेखी के कारण गिरता गया.
बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि कमरों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि स्कूल में कितने बच्चे पढ़ रहे हैं. बच्चों की संख्या यदि बढ़ेगी तो उच्च स्तर पर शासन द्वारा कमरों की संख्या को बढ़ाया जाता है. राष्ट्रीय धरोहर की बात की जाए तो वह कुछ कमरे आज भी मजबूत हालत में हैं.
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