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कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी हैं मां हाट कालिका, नवरात्रि पर जानिए गंगोलीहाट के इस मंदिर की महिमा - MAA KALIKA TEMPLE

कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य मां हाट कालिका देवी का मंदिर पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है. मंदिर की कई मान्यताएं हैं.

maa Kalika Temple
कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी है मां कालिका (PHOTO-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : April 3, 2025 at 6:23 AM IST

5 Min Read

प्रदीप माहरा, बेरीनाग: चैत्र नवरात्रि पर इन दिनों मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ रही है. आज छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जा रही है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका मां के महाकाली मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ नजर आ रही है. मां कालिका को भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी भी माना जाता है. कुमाऊं रेजीमेंट का युद्ध घोष भी 'कालिका माता की जय' है. कहा जाता है कि हाट कालिका मंदिर की जड़ में पाताल गंगा बहती है.

एक आवाज पर जहाज को लगाया था पार: प‍िथौरागढ़ के गंगोलीहाट स्‍थ‍ित हाट काल‍िका मंद‍िर में काल‍िका मां व‍िराजती हैं, ज‍िन्‍हें हाट काल‍िका के नाम से जाना जाता है. यह मंद‍िर बेहद ही पौराण‍िक है. ज‍ितनी मान्‍यता काली कलकत्ते वाली मां की है, उतनी मान्‍यता ही यहां पर व‍िराजमान हाट कालिका मां की भी है. देवी मां के कुमाऊं रेज‍िमेंट की आराध्‍य देवी बनने की कहानी बेहद ही द‍िलचस्‍प है. असल में युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं कूच कर रही थी. इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा.

कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं मां कालिका (ETV Bharat)

ऐसे में मृत्‍यु नजदीक देख टुकड़ी में शाम‍िल जवान अपने पर‍िजनों को याद करने लगे तो टुकड़ी में शाम‍िल गंगोलीहाट न‍िवासी सेना के एक जवान ने मदद के ल‍िए हाट काल‍िका मां का आह्वान क‍िया. ज‍िसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज पार लग गया और यहीं से हाट काल‍िका कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी बन गईं. आज भी कुमाऊं रेजीमेंट की तरफ से मंद‍िर में न‍ियम‍ित तौर पर पूजा -अर्चना की जाती है.

पुराणों में हैं मंद‍िर का ज‍िक्र: हाट काल‍िका मंद‍िर गंगोलीहाट नामक जगह पर स्थित है. इसमें चारों तरफ देवदार के वृक्ष हैं, जो इस जगह की सुंदरता को और बढ़ाते हैं. मां काली का यह प्रसिद्ध मंदिर है. मां काली की उत्पत्ति राक्षस और दैत्यों का नाश करने के लिए हुई थी. आज भी देवी की शक्ति के स्वरूप में इनकी पूजा होती है. वहीं मंद‍िर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि सुम्या नाम के दैत्य का इस पूरे क्षेत्र में प्रकोप था. उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था.

फिर देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर इस दैत्य से मुक्ति पाने हेतु देवी की स्तुति की. देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और फिर सुम्या दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई. जिसके बाद से ही इस स्थान पर महाकाली की शक्तिपीठ के रूप में पूजा होने लगी. वहीं कुछ जगह पर उल्‍लेख है क‍ि महाकाली ने महिषासुर, रक्तबीज जैसे राक्षसों का भी वध भी इसी स्थान पर किया था.

शंकराचार्य ने दोबारा क‍िया था स्‍थाप‍ित: कहा जाता है क‍ि यहां पर मां काल‍िका पहले से व‍िराजती थी. लेक‍िन देवी के प्रकोप की वजह से यह जगह नि‍र्जन थी. आदि गुरु शंकराचार्य जब इस क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो उन्हें देवी के प्रकोप के बारे में बताया गया. इस प्रसंग के अनुसार उस दौरान देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थीं और जो भी व्यक्ति उस आवाज को सुनता था, उसकी मृत्यु हो जाती थी. ऐसे में आस-पास से लोग गुजरने से भी कतराते थे. फिर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने मंत्रों के जाप से देवी को खुश किया और फिर इस मंदिर की दोबारा स्थापना की गई.

मंदिर में रात्रि विश्राम करती हैं महाकाली: यहां पर एक प्रथा सदियों से प्रचलित है. मंदिर के पुजारी शाम के समय एक बिस्तर लगाते हैं. जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं. स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं. वहीं यह भी कहा जाता है क‍ि इस मंदिर में अगर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.

यहां पर भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपने मन की बात कहते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है. गंगोलीहाट स्‍थि‍त हाट काल‍िका को मूल रूप माना जाता है. वहीं हाट काल‍िका का एक रूप प‍िथौरागढ़ से 20 कि‍लोम‍ीटर दूर लछैर नामक जगह पर भी है. यहां पर भी काल‍िका मंद‍िर स्‍थाप‍ित है. जो लोग मां के दर्शन के लिए हाट काल‍िका नहीं पहुंच सकते हैं, वह लछैर स्‍थ‍ित काल‍िका मंद‍िर में दर्शन के ल‍िए पहुंचते हैं.

महाकाली मंदिर समिति के अध्यक्ष हरगोविंद रावल ने बताया कि मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए यहां पर सभी व्यवस्था की गयी हैं. यहां पर रात्रि में ठहरने वाले यात्रियों के यात्री विश्राम गृह बना है. वर्तमान में प्रदेश सरकार के द्वारा मंदिर को मानसखंड में जोड़ा गया है. लेकिन इस पर अभी तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है.

(ये समाचार पौराणिक मान्यताओं, कथाओं और जनश्रुतियों पर आधारित है)

ये भी पढ़ें: नवरात्रि पर मां माया देवी के दर्शन करने से बन रहती है धन संपदा, यहां गिरी थी माता सती की नाभि

प्रदीप माहरा, बेरीनाग: चैत्र नवरात्रि पर इन दिनों मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ रही है. आज छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जा रही है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका मां के महाकाली मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ नजर आ रही है. मां कालिका को भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी भी माना जाता है. कुमाऊं रेजीमेंट का युद्ध घोष भी 'कालिका माता की जय' है. कहा जाता है कि हाट कालिका मंदिर की जड़ में पाताल गंगा बहती है.

एक आवाज पर जहाज को लगाया था पार: प‍िथौरागढ़ के गंगोलीहाट स्‍थ‍ित हाट काल‍िका मंद‍िर में काल‍िका मां व‍िराजती हैं, ज‍िन्‍हें हाट काल‍िका के नाम से जाना जाता है. यह मंद‍िर बेहद ही पौराण‍िक है. ज‍ितनी मान्‍यता काली कलकत्ते वाली मां की है, उतनी मान्‍यता ही यहां पर व‍िराजमान हाट कालिका मां की भी है. देवी मां के कुमाऊं रेज‍िमेंट की आराध्‍य देवी बनने की कहानी बेहद ही द‍िलचस्‍प है. असल में युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं कूच कर रही थी. इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा.

कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी हैं मां कालिका (ETV Bharat)

ऐसे में मृत्‍यु नजदीक देख टुकड़ी में शाम‍िल जवान अपने पर‍िजनों को याद करने लगे तो टुकड़ी में शाम‍िल गंगोलीहाट न‍िवासी सेना के एक जवान ने मदद के ल‍िए हाट काल‍िका मां का आह्वान क‍िया. ज‍िसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज पार लग गया और यहीं से हाट काल‍िका कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी बन गईं. आज भी कुमाऊं रेजीमेंट की तरफ से मंद‍िर में न‍ियम‍ित तौर पर पूजा -अर्चना की जाती है.

पुराणों में हैं मंद‍िर का ज‍िक्र: हाट काल‍िका मंद‍िर गंगोलीहाट नामक जगह पर स्थित है. इसमें चारों तरफ देवदार के वृक्ष हैं, जो इस जगह की सुंदरता को और बढ़ाते हैं. मां काली का यह प्रसिद्ध मंदिर है. मां काली की उत्पत्ति राक्षस और दैत्यों का नाश करने के लिए हुई थी. आज भी देवी की शक्ति के स्वरूप में इनकी पूजा होती है. वहीं मंद‍िर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि सुम्या नाम के दैत्य का इस पूरे क्षेत्र में प्रकोप था. उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था.

फिर देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर इस दैत्य से मुक्ति पाने हेतु देवी की स्तुति की. देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और फिर सुम्या दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई. जिसके बाद से ही इस स्थान पर महाकाली की शक्तिपीठ के रूप में पूजा होने लगी. वहीं कुछ जगह पर उल्‍लेख है क‍ि महाकाली ने महिषासुर, रक्तबीज जैसे राक्षसों का भी वध भी इसी स्थान पर किया था.

शंकराचार्य ने दोबारा क‍िया था स्‍थाप‍ित: कहा जाता है क‍ि यहां पर मां काल‍िका पहले से व‍िराजती थी. लेक‍िन देवी के प्रकोप की वजह से यह जगह नि‍र्जन थी. आदि गुरु शंकराचार्य जब इस क्षेत्र के भ्रमण पर आए तो उन्हें देवी के प्रकोप के बारे में बताया गया. इस प्रसंग के अनुसार उस दौरान देवी मां रात को महादेव का नाम पुकारती थीं और जो भी व्यक्ति उस आवाज को सुनता था, उसकी मृत्यु हो जाती थी. ऐसे में आस-पास से लोग गुजरने से भी कतराते थे. फिर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने मंत्रों के जाप से देवी को खुश किया और फिर इस मंदिर की दोबारा स्थापना की गई.

मंदिर में रात्रि विश्राम करती हैं महाकाली: यहां पर एक प्रथा सदियों से प्रचलित है. मंदिर के पुजारी शाम के समय एक बिस्तर लगाते हैं. जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं. स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं. वहीं यह भी कहा जाता है क‍ि इस मंदिर में अगर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.

यहां पर भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपने मन की बात कहते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है. गंगोलीहाट स्‍थि‍त हाट काल‍िका को मूल रूप माना जाता है. वहीं हाट काल‍िका का एक रूप प‍िथौरागढ़ से 20 कि‍लोम‍ीटर दूर लछैर नामक जगह पर भी है. यहां पर भी काल‍िका मंद‍िर स्‍थाप‍ित है. जो लोग मां के दर्शन के लिए हाट काल‍िका नहीं पहुंच सकते हैं, वह लछैर स्‍थ‍ित काल‍िका मंद‍िर में दर्शन के ल‍िए पहुंचते हैं.

महाकाली मंदिर समिति के अध्यक्ष हरगोविंद रावल ने बताया कि मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए यहां पर सभी व्यवस्था की गयी हैं. यहां पर रात्रि में ठहरने वाले यात्रियों के यात्री विश्राम गृह बना है. वर्तमान में प्रदेश सरकार के द्वारा मंदिर को मानसखंड में जोड़ा गया है. लेकिन इस पर अभी तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है.

(ये समाचार पौराणिक मान्यताओं, कथाओं और जनश्रुतियों पर आधारित है)

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