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शिमला में डब्बे में बेचे चने, एक बेटा PGI में सेवारत, दूसरा सरकारी अफसर और बेटी स्टाफ नर्स - SHIMLA CHANA SELLER RATTAN CHAND

रतन लाल शिमला में 48 सालों से चने बेच रहे हैं. डब्बे में चने बेचकर ही उन्होंने अपने बच्चों को बड़े ओहदों पर पहुंचाया है.

1976 से शिमला में चने बेच रहे रतन लाल
1976 से शिमला में चने बेच रहे रतन लाल (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : April 16, 2025 at 3:15 PM IST

Updated : April 26, 2025 at 1:23 PM IST

5 Min Read

शिमला: वो चने वाला है… मगर किस्मत की चाबी रखता है, ना दुकान, ना बोर्ड…उनके साथ में रखा होता है एक छोटा सा चने का डब्बा. इस चने वाले को शिमला का हर शख्स जानता है. शिमला के रिज पर एक पेड़ के नीचे, वो बैठा है पिछले कई सालों से, तेजी से घूमते हुए वक्त के पहिए को गुजरते हुए चुपचाप देखता है.

शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान से लक्कड़ बाजार की तरफ जाते समय एक बड़ा सा चिनार का छायादार पेड़ है, जिसे लोग "वेटिंग ट्री" के नाम से जानते हैं. कोई उस पेड़ के नीचे दोस्तों से मिलता है, कोई सेल्फी लेता है, कोई वक्त काटता है, लेकिन इसी पेड़ के नीचे सालों से हर दिन एक शख्स बैठता है, जिसका नाम रतन लाल है. रतन लाल के लिए ये उनकी कर्मस्थली है. इसी पेड़ के नीचे बैठ कर रतन लाल शिमला में 48 से ज्यादा बसंत देखे हैं.

शिमला में पेड़ के नीचे चने बेचते हैं रतन लाल
शिमला में पेड़ के नीचे चने बेचते हैं रतन लाल (ETV BHARAT)

1976 से डब्बे में बेच रहे चने

68 साल के रतन लाल 1976 से रोजाना सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक, रतन लाल इसी पेड़ के नीचे अपने डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स के साथ बैठते हैं. उनकी दुकान नहीं, एक ठिकाना है और रतन लाल खुद कोई आम दुकानदार नहीं, शिमला की एक जिंदा पहचान हैं. रतन लाल ने कभी अपने काम को छोटा नहीं समझा ना किस्मत से कोई शिकवा किया, बस मेहनत को साथी बनाया और हर दिन को जिंदादिली के साथ बिना किसी शिकवे शिकायत के जिया.

डब्बे में चने बेचते रतन लाल
डब्बे में चने बेचते रतन लाल (ETV BHARAT)

वो चने वाला नहीं, एक ज़माना है… शिमला के दिल में बसा एक फसाना है

रतन लाल ने इस शहर को बदलते देखा है, शिमला की रफ्तार को महसूस किया है. रतन लाल कहते हैं, 'जिस बच्चे ने मुझसे 5 पैसे के चने लिए थे, आज वो अपने पोते को मेरे पास चने खरीदने के लिए लाता है. मैंने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार से लेकर आज की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार तक का दौर देखा है. शुरू में चने की पुड़िया 5 पैसे से लेकर एक रुपये तक में बिकती थी, लेकिन आज ये 30 रुपये में बेचता हूं.' रतन लाल की आंखों ने वक्त को चलते देखा है. मूलत: बिलासपुर के रहने वाले रतन लाल अब सर्दियों में गांव चले जाते हैं, जहां वो खेतीबाड़ी भी करते हैं, लेकिन जैसे ही मौसम अप्रैल में नरम पड़ता है, वो वापस उसी पेड़ की छांव में बैठ जाते हैं, जहां उनके चाहने वाले, पुराने ग्राहक और नए सैलानी उनका इंतजार करते हैं.

रिज मैदान पर लंबे समय से फोटोग्राफर का काम कर रहे सोहन लाल ने कहा कि, 'रतन लाल को कई सालों से जानता हूं. मैं यहां 25 सालों से पर्यटकों के फोटो खींच रहा हूं और रतन लाल चने बेच रहे हैं. रतन लाल के बच्चों ने अच्छा मुकाम हासिल किया है. बेटा पीजीआई में है दूसरा बेटा और बेटी भी सरकारी नौकरी में है. ये रतन लाल और उनके बच्चों की मेहनत का ही फल है.'

30 रुपये में बेचते हैं मसालेदार चने
30 रुपये में बेचते हैं मसालेदार चने (ETV BHARAT)

3 इडियट्स फिल्म में इस्तेमाल हुआ था रतन लाल का चने वाला डब्बा

रतन लाल बताते हैं कि 'बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स के एक सीन में शिमला के मशहूर रिज मैदान को दिखाया गया है, जहां एक चने बेचने वाले व्यक्ति का छोटा सा किरदार है. इस सीन में जो चने वाला बॉक्स इस्तेमाल हुआ था, वो असल में मेरा था. फिल्म यूनिट ने ये बॉक्स मुझसे से किराए पर लिया था, ताकि सीन को अधिक वास्तविक और स्थानीय रंग दिया जा सके.'

डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स बेचते हैं रतन लाल
डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स बेचते हैं रतन लाल (ETV BHARAT)

बच्चों ने कमाया नाम

रतन लाल का नाम शिमला में हर कोई जानता है. स्थानीय लोग तो उन्हें जाने ही हैं, लेकिन पर्यटक भी उन्हें जानते हैं. घुड़सवारी और उनके मसालेदार चने खाए बिना रिज की सैर अधूरी लगती है. रतन लाल कहते हैं कि 'चने बेच कर ही मैंने बच्चों को पढ़ाया लिखाया. बच्चों ने पढ़ लिखकर मेरा मान बढ़ाया. एक बेटा पीजीआई में एनेस्थीसिया विभाग में तकनीशियन के पद पर कार्यरत है, दूसरा ड्रग इंस्पेक्टर और बेटी स्टाफ नर्स बनीं. सब की शादियां हो चुकी हैं, सब सेटल हैं. फिर भी मैं अपनी डब्बे वाली दुकान पर हर रोज़ बैठता हूं. ये सब इस चने के छोटे से डब्बे का कमाल है. बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी शिमला से हुई है.' रतन लाल मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'बच्चे बोलते हैं अब काम मत करो, आराम करो… पर मैं कैसे छोड़ूं वो काम, जिसने मुझे पहचान दी?'मेरे पिता ने भी यहीं कई साल तक चने बेचे मैंने इस काम को आगे बढ़ाया.'

रतन लाल के बेटे राजेश गौतम का कहना है कि ' मैं पीजीआई में तैनात हूं. मुझे गर्व है कि मेरे पिता ने कठिन परिश्रम कर हमें यहां तक पहुंचाया. हम सभी बच्चों को उन्होंने अच्छे संस्कार और शिक्षा दी'.

48 सालों से डब्बे में चने बेच रहे रतन लाल
48 सालों से डब्बे में चने बेच रहे रतन लाल (ETV BHARAT)

रिज का वो चने वाला अब सिर्फ दुकानदार नहीं, एक कहानी है

रतन लाल जी हंसी में बातों को लपेटते हैं और दिल से चने बेचते हैं. उनसे चने खरीदना एक अनुभव है, जैसे किसी पुराने दोस्त से मिलना. आज उनका जीवन और उनके बच्चों की सफलता, इस बात का प्रमाण है कि मेहनत और लगन से हर सपना पूरा हो सकता है. रतन लाल की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे पक्के हों, तो एक पेड़ की छांव में भी दुनिया रोशन की जा सकती है.

ये भी पढ़ें: डीसी ऑफिस को मिली बम से उड़ाने की धमकी, पूरी बिल्डिंग को करवाया गया खाली

शिमला: वो चने वाला है… मगर किस्मत की चाबी रखता है, ना दुकान, ना बोर्ड…उनके साथ में रखा होता है एक छोटा सा चने का डब्बा. इस चने वाले को शिमला का हर शख्स जानता है. शिमला के रिज पर एक पेड़ के नीचे, वो बैठा है पिछले कई सालों से, तेजी से घूमते हुए वक्त के पहिए को गुजरते हुए चुपचाप देखता है.

शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान से लक्कड़ बाजार की तरफ जाते समय एक बड़ा सा चिनार का छायादार पेड़ है, जिसे लोग "वेटिंग ट्री" के नाम से जानते हैं. कोई उस पेड़ के नीचे दोस्तों से मिलता है, कोई सेल्फी लेता है, कोई वक्त काटता है, लेकिन इसी पेड़ के नीचे सालों से हर दिन एक शख्स बैठता है, जिसका नाम रतन लाल है. रतन लाल के लिए ये उनकी कर्मस्थली है. इसी पेड़ के नीचे बैठ कर रतन लाल शिमला में 48 से ज्यादा बसंत देखे हैं.

शिमला में पेड़ के नीचे चने बेचते हैं रतन लाल
शिमला में पेड़ के नीचे चने बेचते हैं रतन लाल (ETV BHARAT)

1976 से डब्बे में बेच रहे चने

68 साल के रतन लाल 1976 से रोजाना सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक, रतन लाल इसी पेड़ के नीचे अपने डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स के साथ बैठते हैं. उनकी दुकान नहीं, एक ठिकाना है और रतन लाल खुद कोई आम दुकानदार नहीं, शिमला की एक जिंदा पहचान हैं. रतन लाल ने कभी अपने काम को छोटा नहीं समझा ना किस्मत से कोई शिकवा किया, बस मेहनत को साथी बनाया और हर दिन को जिंदादिली के साथ बिना किसी शिकवे शिकायत के जिया.

डब्बे में चने बेचते रतन लाल
डब्बे में चने बेचते रतन लाल (ETV BHARAT)

वो चने वाला नहीं, एक ज़माना है… शिमला के दिल में बसा एक फसाना है

रतन लाल ने इस शहर को बदलते देखा है, शिमला की रफ्तार को महसूस किया है. रतन लाल कहते हैं, 'जिस बच्चे ने मुझसे 5 पैसे के चने लिए थे, आज वो अपने पोते को मेरे पास चने खरीदने के लिए लाता है. मैंने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार से लेकर आज की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार तक का दौर देखा है. शुरू में चने की पुड़िया 5 पैसे से लेकर एक रुपये तक में बिकती थी, लेकिन आज ये 30 रुपये में बेचता हूं.' रतन लाल की आंखों ने वक्त को चलते देखा है. मूलत: बिलासपुर के रहने वाले रतन लाल अब सर्दियों में गांव चले जाते हैं, जहां वो खेतीबाड़ी भी करते हैं, लेकिन जैसे ही मौसम अप्रैल में नरम पड़ता है, वो वापस उसी पेड़ की छांव में बैठ जाते हैं, जहां उनके चाहने वाले, पुराने ग्राहक और नए सैलानी उनका इंतजार करते हैं.

रिज मैदान पर लंबे समय से फोटोग्राफर का काम कर रहे सोहन लाल ने कहा कि, 'रतन लाल को कई सालों से जानता हूं. मैं यहां 25 सालों से पर्यटकों के फोटो खींच रहा हूं और रतन लाल चने बेच रहे हैं. रतन लाल के बच्चों ने अच्छा मुकाम हासिल किया है. बेटा पीजीआई में है दूसरा बेटा और बेटी भी सरकारी नौकरी में है. ये रतन लाल और उनके बच्चों की मेहनत का ही फल है.'

30 रुपये में बेचते हैं मसालेदार चने
30 रुपये में बेचते हैं मसालेदार चने (ETV BHARAT)

3 इडियट्स फिल्म में इस्तेमाल हुआ था रतन लाल का चने वाला डब्बा

रतन लाल बताते हैं कि 'बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स के एक सीन में शिमला के मशहूर रिज मैदान को दिखाया गया है, जहां एक चने बेचने वाले व्यक्ति का छोटा सा किरदार है. इस सीन में जो चने वाला बॉक्स इस्तेमाल हुआ था, वो असल में मेरा था. फिल्म यूनिट ने ये बॉक्स मुझसे से किराए पर लिया था, ताकि सीन को अधिक वास्तविक और स्थानीय रंग दिया जा सके.'

डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स बेचते हैं रतन लाल
डिब्बे में मसालेदार चने, मूंगफली और चिप्स बेचते हैं रतन लाल (ETV BHARAT)

बच्चों ने कमाया नाम

रतन लाल का नाम शिमला में हर कोई जानता है. स्थानीय लोग तो उन्हें जाने ही हैं, लेकिन पर्यटक भी उन्हें जानते हैं. घुड़सवारी और उनके मसालेदार चने खाए बिना रिज की सैर अधूरी लगती है. रतन लाल कहते हैं कि 'चने बेच कर ही मैंने बच्चों को पढ़ाया लिखाया. बच्चों ने पढ़ लिखकर मेरा मान बढ़ाया. एक बेटा पीजीआई में एनेस्थीसिया विभाग में तकनीशियन के पद पर कार्यरत है, दूसरा ड्रग इंस्पेक्टर और बेटी स्टाफ नर्स बनीं. सब की शादियां हो चुकी हैं, सब सेटल हैं. फिर भी मैं अपनी डब्बे वाली दुकान पर हर रोज़ बैठता हूं. ये सब इस चने के छोटे से डब्बे का कमाल है. बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी शिमला से हुई है.' रतन लाल मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'बच्चे बोलते हैं अब काम मत करो, आराम करो… पर मैं कैसे छोड़ूं वो काम, जिसने मुझे पहचान दी?'मेरे पिता ने भी यहीं कई साल तक चने बेचे मैंने इस काम को आगे बढ़ाया.'

रतन लाल के बेटे राजेश गौतम का कहना है कि ' मैं पीजीआई में तैनात हूं. मुझे गर्व है कि मेरे पिता ने कठिन परिश्रम कर हमें यहां तक पहुंचाया. हम सभी बच्चों को उन्होंने अच्छे संस्कार और शिक्षा दी'.

48 सालों से डब्बे में चने बेच रहे रतन लाल
48 सालों से डब्बे में चने बेच रहे रतन लाल (ETV BHARAT)

रिज का वो चने वाला अब सिर्फ दुकानदार नहीं, एक कहानी है

रतन लाल जी हंसी में बातों को लपेटते हैं और दिल से चने बेचते हैं. उनसे चने खरीदना एक अनुभव है, जैसे किसी पुराने दोस्त से मिलना. आज उनका जीवन और उनके बच्चों की सफलता, इस बात का प्रमाण है कि मेहनत और लगन से हर सपना पूरा हो सकता है. रतन लाल की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे पक्के हों, तो एक पेड़ की छांव में भी दुनिया रोशन की जा सकती है.

ये भी पढ़ें: डीसी ऑफिस को मिली बम से उड़ाने की धमकी, पूरी बिल्डिंग को करवाया गया खाली

Last Updated : April 26, 2025 at 1:23 PM IST
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