वाराणसी: काशी के युवा छात्र-छात्राएं अब तलवारबाजी पसंद कर रहे हैं. वाराणसी के सनातम धर्म इंटर कॉलेज में बाकायदा तलवारबाजी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस समय कई छात्र यहां रोजाना सुबह तलवारबाजी सीखने आते हैं. कई इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में कोच रह चुके इंटरनेशनल कोच इन्हें तलवारबाजी की ट्रेनिंग दे रहे हैं. पहले जहां सिर्फ 4 बच्चे आते थे, अब इनकी संख्या 25 पार कर चुकी है. वाराणसी तलवारबाजी संघ की तरफ से की गई यह पहल भविष्य में मेडल जीतने वाले खिलाड़ी तैयार कर रहा है.
वाराणसी के सनातन धर्म इंटर कॉलेज में हर सुबह 6 से 8 बजे तक बच्चों को तलवारबाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण देने का काम तलवारबाजी के अंतरराष्ट्रीय कोच अमिताभ राय कर रहे है. वह बताते हैं कि, पहले ओलंपिक से ही अन्य खेलों के साथ तलवारबाजी को शामिल किया गया था. यह 5 सबसे पुराने खेलों में एक है. अब इसकी अलग पहचान बन चुकी है.
बेहतर करियर विकल्प भी है तलवारबाजी: अमिताभ राय बताते हैं, कि तलवारबाजी चुस्ती-फुर्ती का खेल है. इसमें खिलाड़ी को एकाग्र और मानसिक रूप से मजबूत होना पड़ता है. यह करियर ऑप्शन के रूप में भी बेहद अच्छा खेल है. प्रदेश सरकार की ओर से पुलिस सेवा में खिलाड़ियों की सीधी भर्ती में तलवारबाजी के 8 खिलाड़ियों को शामिल किया गया है. इसके साथ ही पैरामिलिट्री फोर्स और सेना में भी इन खिलाड़ियों के लिए ऑप्शन हैं. इतना ही नहीं ये मेहनत से ओलंपिक में भी सफलता पाकर देश के लिए मेडल ला सकते हैं.
तीन-तीन मिनट का होता है खेल: वह बताते हैं, कि इस खेल का स्वरूप अलग होता है. 1896 के पहले ओलंपिक में इसे शुरू किया गया था. तब से यह हर ओलंपिक का हिस्सा रहा है. इस खेल के तीन प्रकार हैं. पहला एपी होता है. इसमें भारी, नुकीली तलवार का उपयोग कर शरीर के किसी भी हिस्से को छूकर अंक प्राप्त किया जा सकता है. दूसरा फाइल है, इसमें केवल धड़ को छूकर अंक प्राप्त किया जाता है. तीसरा सेवर है, इसमें तलवार के सभी किनारों का उपयोग करके अंक प्राप्त किया जाता है. यह सबसे ज्यादा रोमांचक माना जाता है.
वह बताते हैं, कि तलवारबाजी का हर मुकाबला 3 मिनट का होता है. इस दौरान सबसे पहले 5 बार जो दूसरे खिलाड़ी को छू लेता है, उसकी जीत मानी जाती है. नॉकआउट में तीन-तीन मिनट के तीन मुकाबले होते हैं. बता दें, कि कोच अमिताभ राय कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारतीय टीम के कोच रह चुके हैं. वर्तमान में वह बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक हैं.

रानी लक्ष्मीबाई से मिली प्रेरणा: वाराणसी में इस प्रशिक्षण को शुरू करने वाले वाराणसी तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष और सनातन धर्म इंटर कॉलेज के शिक्षक डॉ. अवधेश कुमार राय बताते हैं, कि काशी महारानी लक्ष्मी बाई की जन्मस्थली है. जब भी तलवारबाजी का जिक्र होता है, तो उनका नाम लिया जाता है. इसलिए हमने सोचा न कि, क्यों बनारस से तलवारबाजी के बेहतर खिलाड़ी निकलें. बनारस में तलवारबाजी शुरू करने की प्रेरणा रानी लक्ष्मीबाई से ही मिली है.
इस खेल को शुरू करने के पीछे सिर्फ एक मकसद है, कि विद्यार्थियों को उनकी प्राचीन कला से अवगत कराया जाए. साथ ही तलवारबाजी को बेहतर करियर ऑप्शन के तौर पर सभी के सामने लाया जाए. हम लोगों ने 20 मई से इस विद्यालय में इसकी शुरुआत की. इसमें अभी हमारे कॉलेज में आसपास के बच्चे ही आ रहे हैं. हमारा प्रयास है, कि इसमें किसी भी संस्थान का, कोई भी छात्र-छात्रा यहां आकर कोर्स कर सकता है.

निःशुल्क दिया जा रहा प्रशिक्षण: डॉ. राय कहते हैं, कि हमारे परिसर में इसका निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है. कोई भी आकर सीख सकता है. इससे न सिर्फ बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे, बल्कि बच्चियों के लिए भी आत्मरक्षा का बेहतर ऑप्शन है. हमारी सोच है, कि हम इसे बड़े पैमाने पर लेकर जाएं. बनारस के बच्चे भी देश के लिए मेडल लाने का काम करें.
खेल से जुड़े बच्चे भी उत्साहित: यहां प्रशिक्षण पाने वाले छात्रों का कहना है, कि उन्हें नया गेम सीखने को मिल रहा है. इन्हें यह बहुत अच्छा लग रहा है. वह इंटरनेट और बेसिक गेम को खेल-खेलकर थक चुके थे. ऐसे में उन्हें नई चीज के साथ नया अनुभव मिल रहा है. इसलिए वह तलवारबाजी सीख रहे हैं. बच्चों का कहना है, कि वह इसे सीखकर जिला, स्टेट और नेशनल लेवल पर खेलना चाहते हैं. देश के लिए मेडल लाना चाहते हैं. प्रैक्टिस के बाद बच्चों को यहां पर चना और गुड़ खाने को दिया जाता है. साथ ही उन्हें नैतिकता के बारे में भी बताया जाता है.