दंतेवाड़ा: ''मैं डॉक्टर बनकर गांव वालों की सेवा करना चाहती हूं.'' नीट एग्जाम क्लियर करने वाली रत्ना रामू बड़े उत्साह और गर्व से यह बात कहती हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्र चिकपाल के संतोष पोडियम भी कहते हैं, 'मैं गांव का पहला डॉक्टर बनूंगा.' रत्ना और संतोष छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के उन इलाकों के स्टूडेंट हैं, जिन्होंने नक्सलवाद का दंश झेला है. इसके बावजूद इन बच्चों ने अपने सपनों को जिंदा रखा और उसे पूरा करने के लिए खुद को मेहनत की भट्टी में झोंक दिया.
मजदूर की बेटी और किसान का बेटा अब डॉक्टर बनेंगे: रत्ना और संतोष की तरह दंतेवाड़ा जिले के अंदरूनी क्षेत्रों में रहने वाले चार विद्यार्थियों ने नीट में इतनी अच्छी रैंक लाई है कि उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में MBBS सीट मिलना तय है. ये सभी छात्र दंतेवाड़ा जिले के अति संवेदनशील क्षेत्र से आते हैं. इन बच्चों ने साबित कर दिया है कि स्थिति कैसी भी हो, अगर सच्ची लगन, ईमानदारी के साथ अपने सपनों की उड़ान उड़ना चाहते हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता.
मम्मी पापा करते हैं मजदूरी: ग्राम पंचायत धुरली की रहने वाली रत्ना रामू ने ईटीवी भारत की टीम के साथ चर्चा की. रत्ना ने बताया कि बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना देखा है. गांव में रहकर गांव वालों का दर्द करीब से और शिद्दत से महसूस किया है, क्योंकि गांव में हॉस्पिटल नहीं है. जब भी कोई गांव में बीमार पड़ता है तो दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय तक ले जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, इसलिए डॉक्टर बनना चाहती हैं, ताकि दंतेवाड़ा जिले में ही पदस्थ रहकर गांव वालों की सेवा कर सकें. रत्ना कहती हैं कि दंतेवाड़ा जिले के बहुत से गांव में आज भी स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं हैं.

रत्ना मरकाम अपने माता पिता, बड़ी बहन और दादी के साथ रहती हैं. पापा मजदूरी कर घर का जीवन यापन करते हैं. मां घर गृहस्थी का काम करती हैं. बड़ी बहन की पढ़ाई हो चुकी है और वह अपनी बहन के साथ उसको टीचिंग करने में मदद करती है.

रत्ना की बड़ी बहन रुमा मरकाम बताती है कि उसकी बहन का सपना बचपन से ही डॉक्टर बनने का था, जो अब साकार होता नजर आ रहा है. हम घर वाले बहुत खुश हैं और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं.

किसान का बेटा बनेगा डॉक्टर: वहीं नीट की परीक्षा में अच्छे नबर से क्वालिफाई करने वाले संतोष पोडियम नक्सल प्रभावित क्षेत्र चिकपाल के निवासी हैं. ईटीवी भारत की टीम को संतोष पोडियम ने बताया कि पिता इस दुनिया में नहीं हैं. मां ने खेती किसानी कर पाला पोसा और दंतेवाड़ा में छू लो आसमान नाम की संस्था में भर्ती कराया.
संतोष पोडियम ने बताया कि हमारा गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. बचपन से नक्सलवाद को करीब से देखा है. बचपन से ही बड़े होकर डॉक्टर बनने का सपना देखा था, जो अब साकार होता नजर आ रहा है. संतोष डॉक्टर बनकर गांव में ही प्रेक्टिस करना चाहते हैं.
नक्सलगढ़ से कुल चार बच्चे हुए नीट परीक्षा में सफल: रत्ना मरकाम और संतोष पोडियम ने बताया कि उन्होंने दंतेवाड़ा जिले की 'छू लो आसमान', आवासीय कोचिंग संस्था में पढ़ाई की है. NEET UG 2025 में संस्था से कुल 128 विद्यार्थियों ने भाग लिया, जिनमें से 39 विद्यार्थियों ने परीक्षा क्वालिफाई की है. इनमें चार लोगों को एमबीबीएस की सीट मिलेगी.
मेटापाल के छात्र ने किया कमाल: समीर के नीट एग्जाम में 343 नंबर हैं. वह अति संवेदनशील क्षेत्र गुड्डीपारा, मेटापाल के रहने वाले हैं.
बस्तानार के इंद्र को मिली सफलता: इंद्र कुमार के नीट की परीक्षा में 336 अंक हैं. वह राउतपारा, लाला गुड़ा, विकासखंड बस्तानार, जिला दंतेवाड़ा के रहने वाले हैं.
पहली बार गांव से बनेगा कोई डॉक्टर: संतोष पोडियम के नीट की परीक्षा में 336 अंक हैं. वह चिकपाल, परचेली, जिला दंतेवाड़ा के रहने वाले हैं.
रत्ना ने गाड़े सफलता के झंडे: रत्ना रामू के नीट की परीक्षा में 334 अंक हैं. वह धूरली गांव की हैं.
मिसाल बने रत्ना और संतोष: रत्ना और संतोष न सिर्फ अपनी सफलता से खुश हैं, बल्कि दोनों अपने साथियों को भी मॉटिवेट कर रहे हैं. रत्ना कहती हैं कि दंतेवाड़ा में छू लो आसमान संस्था में पढ़ाई के साथ ही रहने खाने की व्यवस्था है. अगर दाखिला करा लें और अच्छी पढ़ाई करें तो सफलता जरूर मिलेगी. मेरी सफलता में परिजन, स्कूल और जिला प्रशासन द्वारा चलाई जा रही संस्था का भी योगदान है.
बस्तर और लोगों की सेवा है लक्ष्य: वहीं संतोष पोडियम कहते हैं कि मैं चाहता हूं कि गांव के दूसरे बच्चे भी लक्ष्य बनाकर पढ़ाई करें और सपना पूरा करें, क्योंकि उनके सपनों को पूरा करने के लिए अब बेहतर कोचिंग भी दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में मौजूद है. मुझे नीट क्वालिफाई करके बहुत अच्छा लग रहा है. मैं अच्छा डॉक्टर बनकर सभी की मदद करना चाहता हूं.
'छू लो आसमान ने दी उड़ान': दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार विकास, विश्वास, सुरक्षा की तर्ज पर नक्सलगढ़ में काम कर रही है. नक्सलगढ़ की तस्वीर बदलने में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन का अहम योगदान है. जिला प्रशासन ने अतिसंवेदनशील इलाकों के बच्चों के लिए नि:शुल्क हॉस्टल, आश्रम और शैक्षणिक प्रगति के लिए 'छू लो आसमान', आवासीय परिसर बनाया है. इस आवासीय परिसर में बच्चों को नि:शुल्क रहने खाने की व्यवस्था दी जाती है ताकि ऐसे बच्चे अपने सपनों को साकार कर सकें.
संस्था से मिले छात्रों को सफलता के पंख: दंतेवाड़ा जिले में कई ट्रेनिंग सेंटर चलाए जा रहे हैं, जिसमें टीचर्स द्वारा सभी वर्गों के लिए शैक्षणिक ट्रेनिंग दी जा रही है. कई बच्चों ने अपने सपनों को साकार करते हुए इस ट्रेनिंग सेंटर से उड़ान भरी है. कई बच्चे इन संस्थाओं से निकलकर आज की तारीख में डॉक्टर इंजीनियर बन चुके हैं, जो जिले के लिए गौरव की बात है.