सिरोही: प्रदेश के सबसे बड़े घासबीड़ क्षेत्र वाड़ाखेड़ा जोड़ को कंजर्वेशन घोषित करने के बाद जिले के 22 गांव और 8 पंचायतों के पशुपालकों के सामने संकट गहरा गया. क्षेत्र के लगभग एक लाख पशुओं के चराई पर रोक लग गई. इससे गुस्साए पशुपालकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में कंजर्वेशन अधिसूचना रद्द करने की मांग की. हाईकोर्ट ने मामले में वन विभाग के महाधिवक्ता को नोटिस जारी कर 5 मई तक जवाब मांगा है.
वाड़ाखेड़ा जोड़ संघर्ष समिति के अध्यक्ष दिलीप सिंह मांडणी और याचिकाकर्ता परमवीर सिंह ऊड़ का कहना है कि यदि हाईकोर्ट से स्टे नहीं मिला तो पशुपालकों के पास अपने पशुओं को जंगल में छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. समिति ने सरकार से मांग की कि पशुपालकों के जीवन और जीविका को ध्यान में रखते हुए वाड़ाखेड़ा जोड़ को पुनः चारागाह के रूप में बहाल किया जाए. मालूम हो, वाड़ाखेड़ा जोड़ जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर 17 हजार बीघा में फैला है. इसे प्रदेश का सबसे बड़ा घासबीड़ क्षेत्र माना जाता है. क्षेत्र के विकास के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने 3.15 करोड़ रुपए बजट मंजूर किया था.
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उल्लेखनीय है कि वाड़ाखेड़ा जोड़ के 17 हजार बीघा क्षेत्र में वर्षों से आसपास के गांवों के पशुपालक मवेशी चराते आ रहे थे. वर्ष 2022 में सरकार ने इस क्षेत्र को कंजर्वेशन घोषित कर दिया. इसके बाद यहां पशुओं को चराने पर रोक लगा दी गई. पशुपालकों का कहना है कि वाड़ाखेड़ा के अलावा उनके पास और कोई बड़ा चरागाह नहीं है. जहां वे इतने बड़े पैमाने पर पशुओं को चरा सकें.
शुरुआत से विरोध: पशुपालकों और पंचायतों ने शुरुआत से ही इस क्षेत्र को आरक्षित घोषित करने का विरोध किया था. बावजूद इसके, पिछली सरकार ने अधिकारियों पर दबाव बनाकर इसे कंजर्वेशन क्षेत्र घोषित कर दिया. इस निर्णय के खिलाफ ऊड़ निवासी परमवीर सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई.
धरना-प्रदर्शन से संघर्ष समिति तक: पिछले वर्ष अगस्त 2024 में वाड़ाखेड़ा जोड़ में चराई रोकने के विरोध में पशुपालकों ने सारणेश्वर महादेव मंदिर परिसर में धरना दिया था. राज्यमंत्री ओटाराम देवासी के आश्वासन के बाद आंदोलन स्थगित किया गया. बाद में संघर्ष को संगठित करने के लिए वाड़ाखेड़ा जोड़ संघर्ष समिति का गठन किया गया. इसमें महंत तीर्थगिरी महाराज संरक्षक, दिलीप सिंह मांडणी अध्यक्ष, कुलदीप सिंह पालड़ी उपाध्यक्ष और परमवीर सिंह ऊड़ सदस्य बनाए गए.