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मां काली मंदिर में मंत्रों के सहारे प्रतीकात्मक बलि, यहां पाई थी बीरबल ने सिद्धियां - SIDHI GOT SYMBOLIC SACRIFICE

सीधी जिले के घोघरा गांव में मां काली के मंदिर से बीरबल को सिद्धियां मिली थीं. यहां बकरे की बलि भी खास अंदाज में.

Sidhi got Symbolic sacrifice
मां काली मंदिर में मंत्रों के सहारे प्रतीकात्मक बलि (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : April 7, 2025 at 1:46 PM IST

3 Min Read

सीधी: सीधी जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पहाड़ियों और नदियों के बीच बसा है एक छोटा-सा गांव है घोघरा. इस गांव में स्थित मां काली का मंदिर पूरे क्षेत्र में आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है. ये मंदिर काफी रहस्यमयी भी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि अकबर के दरबार में नवरत्नों में शामिल बीरबल को यहीं आकर साधना के जरिए विशेष सिद्धियां प्राप्त हुई थीं. इसी के बाद बीरबल को ऐसी शक्ति प्राप्त हुई, जिसने उसे इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया.

प्रतीकात्मक बलि देखने लगती है भीड़

प्राचीन काल से ही से यह स्थान साधना और शक्ति-पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाने लगा. इस मंदिर की सबसे खास बात यहां बलि प्रथा है, जो नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से देखी जाती है. पारंपरिक पशु बलि के विपरीत, यहां किसी जानवर का खून नहीं बहाया जाता बल्कि मंत्रोच्चारण के माध्यम से जिंदा बकरे की प्रतीकात्मक बलि दी जाती है. इस प्रक्रिया में बकरे को विशेष मंत्रों से अचेत कर दिया जाता है. वह कुछ पलों के लिए मूर्छित होकर गिर जाता है, मानो उसकी बलि चढ़ा दी गई हो, लेकिन कुछ समय बाद वह बकरा पुनः चेतना में आ जाता है और सामान्य रूप से खड़ा हो जाता है. यह दृश्य अत्यंत चौंकाने वाला होता है. इससे मां काली की अलौकिक शक्ति दिखती हैं.

सीधी जिले के घोघरा गांव में मां काली मंदिर (ETV BHARAT)

केवल मंत्रों के माध्यम से बकरे की बलि

मंदिर के पुजारी सदानंद तिवारी बताते हैं "लगभग 50 वर्ष पूर्व उनके दादा जी को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिए थे. मां ने कहा कि अब किसी भी निर्दोष जीव की बलि नहीं दी जानी चाहिए. तब से यह नई परंपरा शुरू हुई, जिसमें बकरे को केवल मंत्रों के माध्यम से बलि दी जाती है. इसके बाद उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है, जहां वह स्वतंत्र रूप से विचरण करता है." श्रद्धालु मानते हैं कि यह चमत्कारी प्रक्रिया केवल मां काली की विशेष कृपा से ही संभव है. उनका विश्वास है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से मां की उपासना करता है, तो उसकी हर मुराद अवश्य पूरी होती है. यही कारण है कि हर साल नवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और इस अद्भुत अनुष्ठान के साक्षी बनते हैं.

सीधी: सीधी जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पहाड़ियों और नदियों के बीच बसा है एक छोटा-सा गांव है घोघरा. इस गांव में स्थित मां काली का मंदिर पूरे क्षेत्र में आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है. ये मंदिर काफी रहस्यमयी भी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि अकबर के दरबार में नवरत्नों में शामिल बीरबल को यहीं आकर साधना के जरिए विशेष सिद्धियां प्राप्त हुई थीं. इसी के बाद बीरबल को ऐसी शक्ति प्राप्त हुई, जिसने उसे इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया.

प्रतीकात्मक बलि देखने लगती है भीड़

प्राचीन काल से ही से यह स्थान साधना और शक्ति-पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाने लगा. इस मंदिर की सबसे खास बात यहां बलि प्रथा है, जो नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से देखी जाती है. पारंपरिक पशु बलि के विपरीत, यहां किसी जानवर का खून नहीं बहाया जाता बल्कि मंत्रोच्चारण के माध्यम से जिंदा बकरे की प्रतीकात्मक बलि दी जाती है. इस प्रक्रिया में बकरे को विशेष मंत्रों से अचेत कर दिया जाता है. वह कुछ पलों के लिए मूर्छित होकर गिर जाता है, मानो उसकी बलि चढ़ा दी गई हो, लेकिन कुछ समय बाद वह बकरा पुनः चेतना में आ जाता है और सामान्य रूप से खड़ा हो जाता है. यह दृश्य अत्यंत चौंकाने वाला होता है. इससे मां काली की अलौकिक शक्ति दिखती हैं.

सीधी जिले के घोघरा गांव में मां काली मंदिर (ETV BHARAT)

केवल मंत्रों के माध्यम से बकरे की बलि

मंदिर के पुजारी सदानंद तिवारी बताते हैं "लगभग 50 वर्ष पूर्व उनके दादा जी को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिए थे. मां ने कहा कि अब किसी भी निर्दोष जीव की बलि नहीं दी जानी चाहिए. तब से यह नई परंपरा शुरू हुई, जिसमें बकरे को केवल मंत्रों के माध्यम से बलि दी जाती है. इसके बाद उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है, जहां वह स्वतंत्र रूप से विचरण करता है." श्रद्धालु मानते हैं कि यह चमत्कारी प्रक्रिया केवल मां काली की विशेष कृपा से ही संभव है. उनका विश्वास है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से मां की उपासना करता है, तो उसकी हर मुराद अवश्य पूरी होती है. यही कारण है कि हर साल नवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और इस अद्भुत अनुष्ठान के साक्षी बनते हैं.

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