सीधी: मध्य प्रदेश को भारत का वन प्रदेश भी कहा जाता है. प्रदेश अपनी जनजातीय संस्कृति, प्राचीन परंपराओं, खानपान, वास्तुकला और महलों के लिए तो प्रसिद्ध है ही. साथ ही यहां रहस्यमयी और आकर्षक जगहों की कोई कमी नहीं है. आज हम आपको रहस्य से भरे एक गांव की कहानी बताने जा रहे हैं. यह गांव सीधी जिले में स्थित है, जिसका नाम है मेडेरा, जिसे लोग 'पत्थरों के गांव' के नाम से जानते हैं.
यहां की मिट्टी में कुछ तो खास है, लेकिन उससे भी ज्यादा रहस्यमयी हैं वो विशाल पत्थर, जो गांव के हर खेत, हर कुएं, हर पगडंडी तक बिखरे हुए हैं. यहां कदम रखते ही आपको लगेगा कि मानों किसी अनदेखे लोक में प्रवेश कर गए हों. हालांकि यह पत्थर कहां से आए, इनका क्या इतिहास है. इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है.
गांव में फैले टनों वजनी पत्थर
चारों ओर बिखरे पड़े सैकड़ों टन वजनी पत्थर, कोई 50 टन, कोई 200 टन, तो कोई 300 टन से भी भारी. ये सिर्फ पत्थर नहीं, बल्कि गांव की रक्षक सीमा माने जाते हैं. मान्यता है कि, ये पत्थर गांव की ऐसी दीवार खींचते हैं, जिसके अंदर प्रवेश करते ही व्यक्ति सुरक्षित अनुभव करता है. गांव में स्थित मां सिंह वाहिनी की प्राचीन मूर्ति, बरगद का विशाल वृक्ष और आसपास फैले हुए ये पत्थर, तीनों मिलकर गांव को ऐसा आभामंडल देते हैं, जिसे गांव वाले 'शक्ति की परिधि' कहते हैं. ग्रामीणों के अनुसार, ''जब आसपास के क्षेत्र में संकट फैला, तब भी इस गांव में लोगों ने राहत की सांस ली.''

पत्थरों को ग्रामीण मानते हैं रक्षक
करीब 1000 साल पुरानी कथाओं के अनुसार, जब आसपास के इलाके में बुरा समय छाया हुआ था, तब भी इस गांव की सीमा पर आते ही हर संकट ठहर गया. यही नहीं, बीते वर्षों में जब देशभर में स्वास्थ्य को लेकर संकट गहराया, तब भी यहां आने वाले कई लोगों ने राहत महसूस की. गांव के व्यक्ति राजकुमार तिवारी मुस्कराते हुए कहते हैं, ''इन पत्थरों का रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा सका. ये हमारे रक्षक हैं, देवता के भेजे गए प्रहरी हैं.''
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इतिहासकार रविंद्र सिंह ने बताया कि, ''यह पत्थर कहां से आए हैं, इस बात की कोई जानकारी नहीं है. लेकिन केवल यही एक ऐसा गांव है जिससे गांव की सीमा पत्थरों से निर्धारित होती है. यहां चारों तरफ बड़े पत्थर हैं. जिन्हें क्रेन की मदद से भी उठा पाना मुश्किल है. ऐसे में इस गांव में पत्थर होना एक अत्यंत ही चमत्कारिक घटना मानी जाती है.'' गांव के शिव भजन यादव बताते हैं कि, ''संभवतः यहां के लोग बाहरी संपर्क में कम रहते हैं, जिससे अप्रत्याशित लाभ मिला. पर ग्रामीण इसे किसी दैवी चमत्कार से कम नहीं मानते.''

सीधी जिले के इतिहासकार प्रोफेसर अनिल साकेत ने बताया कि, ''ग्राम मेडेरा में पाए जाने वाले पत्थर ठोस बलुई पत्थर के रूप में हैं. इन पत्थरों की उम्र लगभग 2000 सालों से भी ज्यादा है. हालांकि इस गांव में ही पत्थर क्यों पाए जाते हैं? इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है. क्योंकि इस गांव से 10 किलोमीटर की दूरी पर छोटे पहाड़ स्थित हैं. लेकिन गांव के आसपास ऐसी कोई भी पत्थर की संरचना नहीं है, जिसकी वजह से यहां पत्थरों के पाए जाने की जानकारी हो.''
क्या कहती हैं जियोलॉजिस्ट ?
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय की जियोलॉजिस्ट वनिशा सिंह "जिस तरह के पत्थर फोटो में दिखाई दे रहे हैं, उसमें अचंभा जैसा कुछ नहीं है. यह एक तरह के सामान्य पत्थर हैं, सालों तक पानी और पर्यावरण के कारण यह काले दिखाई देने लगे हैं. बाकी हो सकता है कि इसमें आयरन की मात्रा कुछ ज्यादा हो तो यह वजन में भारी हो सकते हैं."