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महाकाल की नगरी में लगता था साइबेरियन पक्षियों का डेरा, 7 समुंदर पार क्षिप्रा में स्नान - SIBERIAN BIRDS FAVORITE CAMP UJJAIN

एक समय साइबेरियन पक्षी हजारों किलोमीटर यात्रा कर बाबा महाकाल की नगरी पहुंचते थे. क्षिप्रा नदी के घाट और जंगल इनका आशियाना होते थे.

Siberian birds favorite camp Ujjain
क्षिप्रा नदी किनारे नजर आते थे साइबेरियन बर्ड्स (Getty Image)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : June 12, 2025 at 12:08 PM IST

4 Min Read

उज्जैन: उज्जैन प्राचीन काल से ही बड़ी ऐतिहासिक नगरी रही है. एक वक्त था जब साइबेरियन पक्षियों की चहचहाहट से नगरी गूंज उठती थी. सुबह सूर्य उदय होते ही ये पक्षी निकल पड़ते थे तीर्थों की परिक्रमा लगाने और सूर्य अस्त होते ही लौट आते थे कल कल बहती क्षिप्रा नदी किनारे घने जंगलों में, सप्त सागर किनारे अपने अपने बसेरों में डेरा डालने. बदलते वक्त में अब यह साइबेरियन पक्षी भी विलुप्त हो गए हैं. इन पक्षियों का धर्मनगरी उज्जैन से जो गहरा संबंध रहा है ये संबंध मानों अब टूट सा गया है. यह पक्षी कहां से आते थे, इनकी क्या खासियत थी? आइए जानते हैं इतिहासकार पुराविद डॉक्टर रमण सोलंकी से.

हजारोंं किलोमीटर दूर से उड़कर आते थे
पुराविद डॉ. रमण सोलंकी बताते हैं कि, ''अति प्राचीन काल से ही उज्जैन में विदेशी साइबेरियन पक्षियों का आना-जाना रहा है. इसका एक मुख्य कारण यहां बहने वाली कल कल मां क्षिप्रा नदी और सप्तसागरों का होना है. क्षिप्रा नदी 119 किलोमीटर का सफर तय करती है. यह चंबल नदी में जाकर मिलती है. चंबल नदी यमुना नदी में मिलती है और यमुना अपना विराट स्वरूप लेकर गंगा नदी में प्रवेश करती है. जब क्षिप्रा चंबल में चंबल यमुना में और यमुना गंगा में मिलती है तो यह सतरंगी दृश्य हो जाता है. ऐसे दृश्य विरले ही होते हैं. जहां एक साथ इस तरह का प्रवाह हो. क्षिप्रा का अर्थ ही सबसे तेज है. अति प्राचीन काल से तेज बहने वाली नदी क्षिप्रा, उज्जैन में सप्तसागरों का महत्व होने से ये पक्षी हजारों किलोमीटर दूरी तय कर हमारे देश के पक्षियों के साथ अभ्यारण करने चले आते थे.''

महाकाल की नगरी में लगता था साइबेरियन पक्षीयों का डेरा (ETV Bharat)

साइबेरियन में सबसे विशेष खरमोर आते थे
पुराविद डॉ. रमण सोलंकी के अनुसार, उज्जैन में खरमोर नामक पक्षी विशेष रूप से यहां पर पाया जाता था. लेकिन उज्जैन में बढ़ती आबादी, ऊंची इमारतों के निर्माण कार्य, घटते जंगल व क्षिप्रा और सप्त सागरों में पानी की अशुद्धता के कारण पक्षियों ने अपना रास्ता बदला और यह पक्षी अब रतलाम जिले के सैलाना में अपना डेरा डालने लगे हैं. खरमोर और मोरनी अब सैलाना में ही अपने परिवार को बढ़ा रहे हैं.''

महाकाल, क्षिप्रा की परिक्रमा आज भी करते हैं पक्षी
डॉ. रमण सोलंकी ने कहा कि, ''यह पक्षी शिखर नुमा आकार में उड़ते हैं. जब भी हम इन्हें ध्यान से देखेंगे तो यह अपने आप में एक शिखर नुमा आकर बनाते हैं और फिर परिक्रमा लगाते हैं. बाबा महाकाल के धाम में शिखर के आसपास सुबह-शाम एवं क्षिप्रा नदी किनारे व अन्य कई ऐसे तीर्थ स्थल है, जहां हमारे देशी प्रजाति के पक्षियों को आज भी देखा जा सकता है. इन पक्षियों का डेरा देर शाम एवं सवेरे सवेरे डलता है और अलग-अलग प्रजाति के यह पक्षी अपनी चहचहाहट से इस प्रकृति की खूबसूरती को और खूबसूरत बनाते हैं.

साइबेरियन पक्षी अक्टूबर एवं नवंबर माह में आते थे
साइबेरियन पक्षी अक्सर अक्टूबर और नवंबर माह में हमारे यहां आते थे. ठंड का मौसम शुरू होने के पूर्व ही ये पक्षी प्रवेश करते थे और मार्च अप्रैल की चिलचिलाती गर्मी से पहले यह पक्षी अपने देश लौट जाते हैं. इन पक्षियों में क्रेन, रफ, ब्लूथ्रोट, ग्रेटर फ्लेमिंगो, चित्तीदार रेडशेंक, गुलाबी पेलीकन, गड़वाल, उत्तरी शावलर, ब्लैल टेल्ड गोडविट, नीली पूंछ वाला भक्षक, सफेद सारस सहित लगभग 46 प्रकार की ये प्रजाति कनाडा, साइबेरिया से हमारे यहां आती है.

साइबेरियन पक्षियों की खासियत
साइबेरियन पक्षी कई किलोमीटर तक का सफर तय कर सकते हैं. एक बार में 6,000 किलोमीटर तक यह पहुंचते हैं. इनकी खासियत है कि यह अपने रंग आकार से पहचाने जाते हैं. साइबेरियन पक्षियों की स्मरण शक्ति इंसानों से भी बेहतर होती है. यह कभी भी अपना रास्ता नहीं भटकते. सही समय पर अपने तय स्थान पर पहुंचते हैं.

उज्जैन: उज्जैन प्राचीन काल से ही बड़ी ऐतिहासिक नगरी रही है. एक वक्त था जब साइबेरियन पक्षियों की चहचहाहट से नगरी गूंज उठती थी. सुबह सूर्य उदय होते ही ये पक्षी निकल पड़ते थे तीर्थों की परिक्रमा लगाने और सूर्य अस्त होते ही लौट आते थे कल कल बहती क्षिप्रा नदी किनारे घने जंगलों में, सप्त सागर किनारे अपने अपने बसेरों में डेरा डालने. बदलते वक्त में अब यह साइबेरियन पक्षी भी विलुप्त हो गए हैं. इन पक्षियों का धर्मनगरी उज्जैन से जो गहरा संबंध रहा है ये संबंध मानों अब टूट सा गया है. यह पक्षी कहां से आते थे, इनकी क्या खासियत थी? आइए जानते हैं इतिहासकार पुराविद डॉक्टर रमण सोलंकी से.

हजारोंं किलोमीटर दूर से उड़कर आते थे
पुराविद डॉ. रमण सोलंकी बताते हैं कि, ''अति प्राचीन काल से ही उज्जैन में विदेशी साइबेरियन पक्षियों का आना-जाना रहा है. इसका एक मुख्य कारण यहां बहने वाली कल कल मां क्षिप्रा नदी और सप्तसागरों का होना है. क्षिप्रा नदी 119 किलोमीटर का सफर तय करती है. यह चंबल नदी में जाकर मिलती है. चंबल नदी यमुना नदी में मिलती है और यमुना अपना विराट स्वरूप लेकर गंगा नदी में प्रवेश करती है. जब क्षिप्रा चंबल में चंबल यमुना में और यमुना गंगा में मिलती है तो यह सतरंगी दृश्य हो जाता है. ऐसे दृश्य विरले ही होते हैं. जहां एक साथ इस तरह का प्रवाह हो. क्षिप्रा का अर्थ ही सबसे तेज है. अति प्राचीन काल से तेज बहने वाली नदी क्षिप्रा, उज्जैन में सप्तसागरों का महत्व होने से ये पक्षी हजारों किलोमीटर दूरी तय कर हमारे देश के पक्षियों के साथ अभ्यारण करने चले आते थे.''

महाकाल की नगरी में लगता था साइबेरियन पक्षीयों का डेरा (ETV Bharat)

साइबेरियन में सबसे विशेष खरमोर आते थे
पुराविद डॉ. रमण सोलंकी के अनुसार, उज्जैन में खरमोर नामक पक्षी विशेष रूप से यहां पर पाया जाता था. लेकिन उज्जैन में बढ़ती आबादी, ऊंची इमारतों के निर्माण कार्य, घटते जंगल व क्षिप्रा और सप्त सागरों में पानी की अशुद्धता के कारण पक्षियों ने अपना रास्ता बदला और यह पक्षी अब रतलाम जिले के सैलाना में अपना डेरा डालने लगे हैं. खरमोर और मोरनी अब सैलाना में ही अपने परिवार को बढ़ा रहे हैं.''

महाकाल, क्षिप्रा की परिक्रमा आज भी करते हैं पक्षी
डॉ. रमण सोलंकी ने कहा कि, ''यह पक्षी शिखर नुमा आकार में उड़ते हैं. जब भी हम इन्हें ध्यान से देखेंगे तो यह अपने आप में एक शिखर नुमा आकर बनाते हैं और फिर परिक्रमा लगाते हैं. बाबा महाकाल के धाम में शिखर के आसपास सुबह-शाम एवं क्षिप्रा नदी किनारे व अन्य कई ऐसे तीर्थ स्थल है, जहां हमारे देशी प्रजाति के पक्षियों को आज भी देखा जा सकता है. इन पक्षियों का डेरा देर शाम एवं सवेरे सवेरे डलता है और अलग-अलग प्रजाति के यह पक्षी अपनी चहचहाहट से इस प्रकृति की खूबसूरती को और खूबसूरत बनाते हैं.

साइबेरियन पक्षी अक्टूबर एवं नवंबर माह में आते थे
साइबेरियन पक्षी अक्सर अक्टूबर और नवंबर माह में हमारे यहां आते थे. ठंड का मौसम शुरू होने के पूर्व ही ये पक्षी प्रवेश करते थे और मार्च अप्रैल की चिलचिलाती गर्मी से पहले यह पक्षी अपने देश लौट जाते हैं. इन पक्षियों में क्रेन, रफ, ब्लूथ्रोट, ग्रेटर फ्लेमिंगो, चित्तीदार रेडशेंक, गुलाबी पेलीकन, गड़वाल, उत्तरी शावलर, ब्लैल टेल्ड गोडविट, नीली पूंछ वाला भक्षक, सफेद सारस सहित लगभग 46 प्रकार की ये प्रजाति कनाडा, साइबेरिया से हमारे यहां आती है.

साइबेरियन पक्षियों की खासियत
साइबेरियन पक्षी कई किलोमीटर तक का सफर तय कर सकते हैं. एक बार में 6,000 किलोमीटर तक यह पहुंचते हैं. इनकी खासियत है कि यह अपने रंग आकार से पहचाने जाते हैं. साइबेरियन पक्षियों की स्मरण शक्ति इंसानों से भी बेहतर होती है. यह कभी भी अपना रास्ता नहीं भटकते. सही समय पर अपने तय स्थान पर पहुंचते हैं.

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