शिवपुरी (यतीश मोनू प्रधान): मध्य प्रदेश के अधिकतर जिले किसी ने किसी टाइगर रिजर्व या बड़े जंगल से सटे हुए हैं. शिवपुरी भी उन्हीं में से एक है. मध्य प्रदेश का नया नवेला टाइगर रिजर्व, माधव टाइगर रिजर्व शिवपुरी में स्थित है. इस रिजर्व में बाघ, चीता और तेंदुए सहित कई खूंखार जंगली जानवर पाए जाते हैं. कई बार तेंदुए जंगल से निकलकर आसपास के गांवों में पहुंच जाते हैं. जिससे पालतू जानवरों और इंसानों के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है. लेकिन शिवपुरी में जंगल से कुछ ही दूरी पर एक गांव ऐसा भी है, जहां तेंदुए गलती से भी नहीं जाते. इसके पीछे एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है.
एक समय गांव में था तेंदुए का आतंक
जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव का नाम तेंदुआ है. इसका नाम तेंदुआ क्यों पड़ा इसकी भी कहानी है. ग्रामीणों ने बताया कि उनके दादा-परदादा के समय इस क्षेत्र में जंगली जानवरों खासकर तेंदुए का बड़ा आतंक था. आए दिन वो गांवों में घुस आते थे और किसी न किसी को अपना शिकार बना लेते थे. इससे बचने के लिए उन्होंने गांव में एक देवी के मूर्ति की स्थापना की जिसमें देवी को तेंदुए पर विराजमान दिखाया गया है.

ग्रामीणों ने गांव में स्थापित किया तेंदुआ माता मंदिर
एक मंदिर बनाकर देवी की प्रतिमा को स्थापित कर दिया. इसके बाद सभी ग्रामीणों ने मिलकर देवी माता से प्रार्थना की कि 'हे देवी तेंदुए से हमारी रक्षा करो'. माता ने ग्रामीणों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और ऐसा चमत्कार किया की तेंदुए गांव वालों के दोस्त बन गए. 50 वर्षीय फूल सिंह धाकड़ ने बताया कि "उनके दादा बताते थे कि तब से जब भी माता की आरती होती तो तेंदुए मंदिर आते और आरती पूरी होने के बाद वापस जंगल चले जाते हैं. तभी से गांव का नाम तेंदुआ और देवी का नाम तेंदुआ वाली माता पड़ गया."

सरकारी रिकॉर्ड में भी गांव में नहीं आया है तेंदुआ
इस पूरे इलाके में कई गांव लगते हैं, लेकिन तेंदुआ गांव एक ऐसा गांव है जहां वन मंडल के रिकॉर्ड में भी तेंदुए की आवक दर्ज नहीं की गई है. कई साल बीत जाने के बाद भी इस गांव में कोई तेंदुआ प्रवेश नहीं किया है. जबकि इसके पास लगे हुए टोमोग्राफी पर सामान, लालगढ़ जैसे गांव में तेंदुए का आवागमन दर्ज हुआ है. वो कई बार आसपास के गांवों में घुसकर मवेशियों को अपना शिकार बना चुके हैं. अभी हाल ही में तेंदुआ गांव के बगल के गांव में चीता भी घुस आया था.
माता ने तेंदुए को गांव आने से किया था मना
ग्रामीणों ने बताया कि पूर्वज बताते थे कि पहले इस गांव में तेंदुए की मूवमेंट लगातार बनी रहती थी. देवी की मूर्ति की स्थापना के बाद आरती के समय भी कई तेंदुए आते थे, लेकिन वो ग्रामीणों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाते थे. एक किवदंती है कि अंग्रेजी हुकूमत के समय एक अंग्रेज अधिकारी ने इस गांव में एक तेंदुए का शिकार किया था. माता ने अपनी शक्ति से अंग्रेजों को वापस खदेड़ दिया और तेंदुए को गांव में आने से मना कर दिया था. माना जाता है कि तभी से तेंदुए ने इस गांव के रास्ते को भुला दिया और दोबारा फिर इस गांव में नहीं लौटे.
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डकैत समस्या के चलते खुला थाना
कोलारस वन परिक्षेत्र के डिप्टी रेंजर साहब सिंह राजपूत ने बताया कि "जब से मैं इस क्षेत्र में ड्यूटी कर रहा हूं, तब से मैंने कभी भी तेंदुआ गांव में किसी तेंदुए की मूवमेंट न देखी है और न सुनी है." एक समय यहां पर डकैतों का ठिकाना हुआ करता था. दस्यु गतिविधियों के कारण तेंदुआ गांव में पुलिस थाने की स्थापना की गई थी. हालांकि अब डकैतों की समस्या खत्म हो चुकी है, लेकिन फिर भी तेंदुआ थाना यथावत कार्यरत है और क्षेत्र की कानून व्यवस्था बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. वर्तमान में विवेक यादव तेंदुआ थाने के प्रभारी हैं.