जबलपुर : 1985-86 में आदिवासी की जमीन गैर आदिवासी को बेचे जाने के मामले में अहम फैसला आया है. जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने अपने अहम आदेश में कहा है कि कलेक्टर के नीचे के राजस्व अधिकारी की अनुमति से आदिवासी की जमीन का विक्रय किया जाना शून्य है. इस आदेश के साथ हाईकोर्ट ने राजस्व मंडल ग्वालियर के अध्यक्ष द्वारा जारी आदेश की पुष्टि करते हुए याचिका को खारिज कर दिया.
क्या है आदिवासी की जमीन बेचने का मामला?
दरअसल, नर्मदापुरम निवासी आर एन श्रीवास्तव की ओर से राजस्व मंडल ग्वालियर के अध्यक्ष द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए ये याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि सर्वेक्षण क्रमांक 75 में स्थित जमीन 1983-84 को आदिवासी खुमान सिंह के नाम पर दर्ज थी. इसके बाद वर्ष 1985-1986 में गैर आदिवासी व्यक्ति बालकृष्ण शर्मा ने इसे खरीदकर अपने नाम दर्ज करवा लिया था. बालकृष्ण शर्मा के बेटे ने बाद में ये जमीन याचिकाकर्ता सहित अन्य व्यक्तियों को बेच दी थी.
मूल मालिक के पोते ने दायर किया था आवेदन
मूल जमीन मालिक खुमान सिंह के पोते व अनावेदकों ने एसडीएम के समक्ष जमीन अपने नाम दर्ज कराने आवेदन दायर किया था. आवेदन में कहा गया था कि भूमि मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 के तहत कलेक्टर की अनुमति के बिना गैर आदिवासी व्यक्तियों को नहीं बेची जा सकती. इसके बाद एसडीएम ने खुमान सिंह के पोते के पक्ष में आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ कलेक्टर, आयुक्त व राजस्व मंडल ग्वालियर के अध्यक्ष के समक्ष अपील दायर की गई थी. अपील खारिज होने के बाद कोर्ट में ये याचिका दायर की गई जिसपर सोमवार को सुनवाई हुई.
कलेक्टर की अनुमति के बिना ऐसा हस्तांतरण शून्य
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने एसडीएम के आदेश के खिलाफ समय सीमा का तर्क दिया. हालांकि, जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा, '' याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया है कि आदिवासी व्यक्ति की जमीन बेचने के लिए कलेक्टर से अनुमति प्रदान नहीं की गई थी.'' एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि कलेक्टर की अनुमति के बिना किया गया हस्तांतरण शून्य, अमान्य तथा अवैध है.
यह भी पढ़ें -