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काल बन मध्य प्रदेश की तरफ बढ़ रहा टीबी!, कैसे लील रहा लोगों की जिंदगी - SEHORE TB VACCINATION CAMPAIGN FAIL

सीहोर में टीबी उन्मूलन अभियान बुरी तरह फेल. जिले में सिर्फ 10 फीसदी ही हुआ टीकाकरण, जाने पूरे प्रदेश में टीबी मरीजों का हाल.

SEHORE TB VACCINATION CAMPAIGN FAIL
सीहोर में फेल हुए टीबी वैक्सीनेशन अभियान (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : April 15, 2025 at 4:01 PM IST

9 Min Read

सीहोर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 मार्च 2018 को 'टीबी हारेगा देश जीतेगा' का नारा दिया और देश से टीबी जैसी गंभीर बीमारी के खत्मे का संकल्प लिया था. प्रधानमंत्री ने इसके लिए 2025 तक की डेडलाइन रखी थी. इसी संकल्प को पूरा करने के लिए देशभर में टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत 6 अलग-अलग श्रेणियों में चिन्हित वयस्क व्यक्ति को टीबी की वैक्सीन लगाई जा रही है. मध्य प्रदेश का सीहोर जिला इस अभियान से कोसों दूर नजर आ रहा है. इतने दिनों में हेल्थ डिपार्टमेंट ने जिले में सिर्फ 10 फीसदी ही वैक्सीनेशन का लक्ष्य प्राप्त किया है. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि इस तरह कैसे टीबी मुक्त भारत के संकल्प को पूरा किया जा सकता है.

सीहोर में 5 लाख वैक्सीनेशन का रखा गया था लक्ष्य

सीहोर में बीते साल मार्च 2024 में वैक्सीनेशन का अभियान शुरू किया गया था. जिले की कुल आबादी और टीबी रोगियों की संख्या को देखते हुए यहां 5 लाख वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया था. अभियान के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में टीबी वैक्सीन लगाए जा रहे थे. मार्च से दिसंबर तक केंद्रों पर टीके लगाए गए, लेकिन फिर एकाएक इस अभियान को बंद कर दिया गया. जबकि सीहोर में सिर्फ 50 हजार टीके लगाए गए थे जो कि लक्ष्य का सिर्फ 10 फीसदी ही है और लक्ष्य से कोसों दूर भी है. ऐसे में जिले में टीबी उन्मूलन कैसे किया जाएगा, ये चिंता का विषय है.

MP TB ERADICATION CAMPAIGN
मध्य प्रदेश के 10 जिलों में बढ़े टीबी के मरीज (ETV Bharat)

अभियान फेल होने में जागरुकता अभियान का अभाव

टीबी उन्मूलन अभियान के सीहोर में फ्लॉप होने के कई कारण बताए जा रहे हैं. एक तो अभियान का उतना जोर-शोर से प्रचार नहीं किया गया, जितना अन्य कई सारी स्कीमों या अभियानों का किया जाता है. प्रशासनिक स्तर पर भी इस अभियान को समर्थन नहीं मिला. अधिकारियों और कर्मचारियों ने खुद टीके नहीं लगवाए जो दूसरों के सामने उदाहरण पेश कर सकते थे. इसका एक बड़ा कारण और माना जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की प्रचारित खबरों ने लोगों के मन में इस वैक्सीन को लेकर भी आशंका पैदा कर दी. वहीं, कई लोगों का कहना है कि आंगनबाड़ी या फिर हेल्थ वर्कर ने टीके के संबंध में किसी को कोई जानकारी ही नहीं दी.

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं

ग्वाल टोली निवासी छोटेलाल यादव ने बताया कि इस वैक्सीन के बारे में उनके घर पर कोई जानकारी देने नहीं आया. ग्राम बैजनाथ निवासी बुजुर्ग महिला फूल कुंवर बाई ने बताया कि उन्हें टीबी वैक्सीन के सम्बंध में कोई जानकारी नहीं है. जिसकी वजह से उनको भी यह टीका नहीं लगा है. इसी प्रकार मंडी क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्ग मोहन यादव ने बताया, वह धूम्रपान करते हैं. उन्हें खांसी भी बहुत आती है. लेकिन उन्हें टीबी वैक्सीन के बारे में किसी ने जानकारी ही नहीं दी. अगर उन्हें पता होता तो वो जरूर टीका लगवाते.

स्वास्थ्य विभाग के दावे और हकीकत में फर्क

टीकाकरण अभियान के इतर जिले में 100 दिन में टीबी मुक्त सीहोर की कार्ययोजना तैयार की गई थी. जनवरी 2025 से यह अभियान शुरू किया गया. स्वास्थ्य विभाग जिलेभर में करीब 2 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग करने, टीबी जांच, एक्स रे करने का दावा करता है. लेकिन टीबी वैक्सीनेशन कार्यक्रम के असफल होने के बाद आरोप लग रहा है कि ये अभियान सिर्फ कागजों में चलाए जा रहे हैं. इसको कह सकते हैं कि विभागीय कर्मचारियों की उदासीनता, प्रचार-प्रसार की कमी के चलते अभियान की सार्थकता नहीं दिखाई दे रही है. जिस वजह से टीबी जैसी जानलेवा बीमारी का जोखिम आज भी बना हुआ है.

'कोरोना वैक्सीन के डर से लोगों ने नहीं लगवाया टीका'

इस सम्बंध में जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. मेहरवान सिंह ने बताया कि "वयस्क टीबी टीकाकरण कार्यक्रम बंद हो गया है. प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा सीहोर का लक्ष्य बेहतर है. अभियान का सही प्रचार-प्रसार नहीं हो सका. साथ ही लोगों में कोरोना वैक्सीन का डर भी बैठ गया है. इसलिए उम्मीद से कम वैक्सीनेशन हुआ." वहीं, इस सम्बंध में सिहोर के टीबी कार्यक्रम अधिकारी डॉ. जागेश्वर कोरी का कहना है कि "इसके बारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता. सीएमएचओ टीबी कार्यक्रम के हेड हैं. सारी जानकारी उन्हीं के पास है."

6 चरणों में किया जाता है टीबी का उन्मूलन

बता दें कि टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत 18 वर्ष के अधिक उम्र के लोगों को बीसीजी टीके लगाए जाते हैं. इसमें 6 श्रेणी के लोगों को शामिल किया गया है. पहला चरण होता है पता लगाना, जिसके तहत बीमारी का सटीक रूप से पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग और परीक्षण किया जाता है. दूसरी श्रेणी है उपचार. इसके तहत मरीज को इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध कराना. तीसरी श्रेणी रोकथाम होती है, जिसके तहत टीबी के प्रसार को रोकने के लिए निवारक उपाय किए जाते हैं, जैसे की टीबी मरीज के संपर्क में रहने वाले लोगों के लिए दवाइयां.

चौथी श्रेणी होती है निर्माण. इसमें टीबी के बारे में जानकारी देना, टीबी से संबंधित कलंक को कम करना, और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना शामिल है. 5वीं श्रेणी में टीबी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए उचित रणनितियां बनाना और उसके लिए इलाज करने जैसे हर जरूरी उपाय करना शामिल है. छठवीं और आखिरी श्रेणी होती है समर्थन. इसमें टीबी रोगियों को बीमारी के दौरान उनकी देखभाल की जाती है. इसके अलावा उन्हें पोषण, वित्तीय और अन्य जरूरी सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.

मध्य प्रदेश के 10 जिलों में बढ़े टीबी मरीज

सीहोर से इतर मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों की बात करे तो पिछले 1 साल में प्रदेश के 10 जिलों में टीबी के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इसमें राजधानी भोपाल भी शामिल है. जहां 2023 के मुकाबले 2024 में करीब 2 हजार टीबी के मरीज बढ़े हैं. इसके अलावा इंदौर, आगर मालवा, बड़वानी, भिंड, बुरहानपुर, दमोह, दतिया, देवास और धार जिले में 2023 के मुकाबले 2024 में टीबी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है.

वहीं, पूरे प्रदेश की बात करें तो मरीजों की संख्या में कमी आई है. साल 2024 में एमपी में टीबी मरीजों की कुल संख्या 1 लाख 80 हजार 290 दर्ज की गई, जबकि 2023 में ये 1 लाख 82 हजार 290 थी. वहीं, 2022 में मध्य प्रदेश में टीबी के मरीजों की संख्या 1 लाख 85 हजार 904 दर्ज की गई थी. टीबी से होने वाली मौतों के मामले में मध्य प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है. पिछले साल के अक्टूबर महीने तक प्रदेश में टीबी से 5,152 मरीजों की मौत हुई थी.

देश के 347 जिलों में चलाया गया 100 दिवसीय अभियान

देश के 347 जिलों में "100 दिवसीय नि-क्षय अभियान" चलाया गया. इसमें से मध्य प्रदेश के भी 23 जिले शामिल थे. 7 दिसंबर 2024 को नर्मदापुरम में इस अभियान की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि "प्रदेश में नि-क्षय मित्र पहल के तहत हम टीबी मरीजों को पोषण सहायता प्रदान कर हर संभव मदद पहुंचा रहे हैं. इसमें हम टीबी के मरीजों को प्रतिमाह पूरक खाद्य बास्केट प्रदान करते हैं, जिससे उनके शरीर को बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी ताकत मिल सके.

बता दें कि भारत में 2015 से 2023 तक टीबी के मरीजों में 17.7 प्रतिशत की गिरावट आई है यह दर वैश्विक गिरावट 8.3 प्रतिशत से दोगुना से भी अधिक है. 2015 में टी.बी. से होने वाली मृत्यु दर प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 28 थी, जो वर्ष 2023 में घटकर 22 हो गई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए वर्ष 2030 का लक्ष्य रखा है.

क्या होता है ट्यूबरक्लोसिस?

टीबी एक संक्रामक बीमारी जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है. इसे क्षय रोग या तपेदिक भी कहा जाता है. यह रोग मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है. यह एक वायु जनित संक्रमण है. यानी यह हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है. जैसे, इस संक्रमण से संक्रमित रोगी से के खांसने, छींकने, बात करने यहां तक की गाने और हंसने से भी इसका संक्रमण फैलता है.

कई लोगों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते. ऐसे टीबी को निष्क्रिय या सुप्त टीबी कहा जाता है. टीबी दो मुख्य प्रकार की होती है: फुफ्फुसीय टीबी और एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी. फुफ्फुसीय टीबी फेफड़ों को प्रभावित करती है,जबकि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करती है.

टीबी के प्रमुख लक्षण

तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी होना, सांस फूलना, सांस लेने में तकलीफ होना, शाम को बुखार का बढ़ जाना, सीने में तेज दर्द होना, अचानक से वजन का घटना, भूख में कमी आना, बलगम के साथ खून आना, फेफड़ों का संक्रमण होना, लगातार खांसी आना, अस्पष्टीकृत थकान होना और बुखार आना.

सीहोर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 मार्च 2018 को 'टीबी हारेगा देश जीतेगा' का नारा दिया और देश से टीबी जैसी गंभीर बीमारी के खत्मे का संकल्प लिया था. प्रधानमंत्री ने इसके लिए 2025 तक की डेडलाइन रखी थी. इसी संकल्प को पूरा करने के लिए देशभर में टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत 6 अलग-अलग श्रेणियों में चिन्हित वयस्क व्यक्ति को टीबी की वैक्सीन लगाई जा रही है. मध्य प्रदेश का सीहोर जिला इस अभियान से कोसों दूर नजर आ रहा है. इतने दिनों में हेल्थ डिपार्टमेंट ने जिले में सिर्फ 10 फीसदी ही वैक्सीनेशन का लक्ष्य प्राप्त किया है. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि इस तरह कैसे टीबी मुक्त भारत के संकल्प को पूरा किया जा सकता है.

सीहोर में 5 लाख वैक्सीनेशन का रखा गया था लक्ष्य

सीहोर में बीते साल मार्च 2024 में वैक्सीनेशन का अभियान शुरू किया गया था. जिले की कुल आबादी और टीबी रोगियों की संख्या को देखते हुए यहां 5 लाख वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया था. अभियान के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों में टीबी वैक्सीन लगाए जा रहे थे. मार्च से दिसंबर तक केंद्रों पर टीके लगाए गए, लेकिन फिर एकाएक इस अभियान को बंद कर दिया गया. जबकि सीहोर में सिर्फ 50 हजार टीके लगाए गए थे जो कि लक्ष्य का सिर्फ 10 फीसदी ही है और लक्ष्य से कोसों दूर भी है. ऐसे में जिले में टीबी उन्मूलन कैसे किया जाएगा, ये चिंता का विषय है.

MP TB ERADICATION CAMPAIGN
मध्य प्रदेश के 10 जिलों में बढ़े टीबी के मरीज (ETV Bharat)

अभियान फेल होने में जागरुकता अभियान का अभाव

टीबी उन्मूलन अभियान के सीहोर में फ्लॉप होने के कई कारण बताए जा रहे हैं. एक तो अभियान का उतना जोर-शोर से प्रचार नहीं किया गया, जितना अन्य कई सारी स्कीमों या अभियानों का किया जाता है. प्रशासनिक स्तर पर भी इस अभियान को समर्थन नहीं मिला. अधिकारियों और कर्मचारियों ने खुद टीके नहीं लगवाए जो दूसरों के सामने उदाहरण पेश कर सकते थे. इसका एक बड़ा कारण और माना जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की प्रचारित खबरों ने लोगों के मन में इस वैक्सीन को लेकर भी आशंका पैदा कर दी. वहीं, कई लोगों का कहना है कि आंगनबाड़ी या फिर हेल्थ वर्कर ने टीके के संबंध में किसी को कोई जानकारी ही नहीं दी.

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं

ग्वाल टोली निवासी छोटेलाल यादव ने बताया कि इस वैक्सीन के बारे में उनके घर पर कोई जानकारी देने नहीं आया. ग्राम बैजनाथ निवासी बुजुर्ग महिला फूल कुंवर बाई ने बताया कि उन्हें टीबी वैक्सीन के सम्बंध में कोई जानकारी नहीं है. जिसकी वजह से उनको भी यह टीका नहीं लगा है. इसी प्रकार मंडी क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्ग मोहन यादव ने बताया, वह धूम्रपान करते हैं. उन्हें खांसी भी बहुत आती है. लेकिन उन्हें टीबी वैक्सीन के बारे में किसी ने जानकारी ही नहीं दी. अगर उन्हें पता होता तो वो जरूर टीका लगवाते.

स्वास्थ्य विभाग के दावे और हकीकत में फर्क

टीकाकरण अभियान के इतर जिले में 100 दिन में टीबी मुक्त सीहोर की कार्ययोजना तैयार की गई थी. जनवरी 2025 से यह अभियान शुरू किया गया. स्वास्थ्य विभाग जिलेभर में करीब 2 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग करने, टीबी जांच, एक्स रे करने का दावा करता है. लेकिन टीबी वैक्सीनेशन कार्यक्रम के असफल होने के बाद आरोप लग रहा है कि ये अभियान सिर्फ कागजों में चलाए जा रहे हैं. इसको कह सकते हैं कि विभागीय कर्मचारियों की उदासीनता, प्रचार-प्रसार की कमी के चलते अभियान की सार्थकता नहीं दिखाई दे रही है. जिस वजह से टीबी जैसी जानलेवा बीमारी का जोखिम आज भी बना हुआ है.

'कोरोना वैक्सीन के डर से लोगों ने नहीं लगवाया टीका'

इस सम्बंध में जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. मेहरवान सिंह ने बताया कि "वयस्क टीबी टीकाकरण कार्यक्रम बंद हो गया है. प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा सीहोर का लक्ष्य बेहतर है. अभियान का सही प्रचार-प्रसार नहीं हो सका. साथ ही लोगों में कोरोना वैक्सीन का डर भी बैठ गया है. इसलिए उम्मीद से कम वैक्सीनेशन हुआ." वहीं, इस सम्बंध में सिहोर के टीबी कार्यक्रम अधिकारी डॉ. जागेश्वर कोरी का कहना है कि "इसके बारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता. सीएमएचओ टीबी कार्यक्रम के हेड हैं. सारी जानकारी उन्हीं के पास है."

6 चरणों में किया जाता है टीबी का उन्मूलन

बता दें कि टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत 18 वर्ष के अधिक उम्र के लोगों को बीसीजी टीके लगाए जाते हैं. इसमें 6 श्रेणी के लोगों को शामिल किया गया है. पहला चरण होता है पता लगाना, जिसके तहत बीमारी का सटीक रूप से पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग और परीक्षण किया जाता है. दूसरी श्रेणी है उपचार. इसके तहत मरीज को इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध कराना. तीसरी श्रेणी रोकथाम होती है, जिसके तहत टीबी के प्रसार को रोकने के लिए निवारक उपाय किए जाते हैं, जैसे की टीबी मरीज के संपर्क में रहने वाले लोगों के लिए दवाइयां.

चौथी श्रेणी होती है निर्माण. इसमें टीबी के बारे में जानकारी देना, टीबी से संबंधित कलंक को कम करना, और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना शामिल है. 5वीं श्रेणी में टीबी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए उचित रणनितियां बनाना और उसके लिए इलाज करने जैसे हर जरूरी उपाय करना शामिल है. छठवीं और आखिरी श्रेणी होती है समर्थन. इसमें टीबी रोगियों को बीमारी के दौरान उनकी देखभाल की जाती है. इसके अलावा उन्हें पोषण, वित्तीय और अन्य जरूरी सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.

मध्य प्रदेश के 10 जिलों में बढ़े टीबी मरीज

सीहोर से इतर मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों की बात करे तो पिछले 1 साल में प्रदेश के 10 जिलों में टीबी के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इसमें राजधानी भोपाल भी शामिल है. जहां 2023 के मुकाबले 2024 में करीब 2 हजार टीबी के मरीज बढ़े हैं. इसके अलावा इंदौर, आगर मालवा, बड़वानी, भिंड, बुरहानपुर, दमोह, दतिया, देवास और धार जिले में 2023 के मुकाबले 2024 में टीबी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है.

वहीं, पूरे प्रदेश की बात करें तो मरीजों की संख्या में कमी आई है. साल 2024 में एमपी में टीबी मरीजों की कुल संख्या 1 लाख 80 हजार 290 दर्ज की गई, जबकि 2023 में ये 1 लाख 82 हजार 290 थी. वहीं, 2022 में मध्य प्रदेश में टीबी के मरीजों की संख्या 1 लाख 85 हजार 904 दर्ज की गई थी. टीबी से होने वाली मौतों के मामले में मध्य प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है. पिछले साल के अक्टूबर महीने तक प्रदेश में टीबी से 5,152 मरीजों की मौत हुई थी.

देश के 347 जिलों में चलाया गया 100 दिवसीय अभियान

देश के 347 जिलों में "100 दिवसीय नि-क्षय अभियान" चलाया गया. इसमें से मध्य प्रदेश के भी 23 जिले शामिल थे. 7 दिसंबर 2024 को नर्मदापुरम में इस अभियान की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि "प्रदेश में नि-क्षय मित्र पहल के तहत हम टीबी मरीजों को पोषण सहायता प्रदान कर हर संभव मदद पहुंचा रहे हैं. इसमें हम टीबी के मरीजों को प्रतिमाह पूरक खाद्य बास्केट प्रदान करते हैं, जिससे उनके शरीर को बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी ताकत मिल सके.

बता दें कि भारत में 2015 से 2023 तक टीबी के मरीजों में 17.7 प्रतिशत की गिरावट आई है यह दर वैश्विक गिरावट 8.3 प्रतिशत से दोगुना से भी अधिक है. 2015 में टी.बी. से होने वाली मृत्यु दर प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 28 थी, जो वर्ष 2023 में घटकर 22 हो गई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए वर्ष 2030 का लक्ष्य रखा है.

क्या होता है ट्यूबरक्लोसिस?

टीबी एक संक्रामक बीमारी जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है. इसे क्षय रोग या तपेदिक भी कहा जाता है. यह रोग मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है. यह एक वायु जनित संक्रमण है. यानी यह हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है. जैसे, इस संक्रमण से संक्रमित रोगी से के खांसने, छींकने, बात करने यहां तक की गाने और हंसने से भी इसका संक्रमण फैलता है.

कई लोगों में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते. ऐसे टीबी को निष्क्रिय या सुप्त टीबी कहा जाता है. टीबी दो मुख्य प्रकार की होती है: फुफ्फुसीय टीबी और एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी. फुफ्फुसीय टीबी फेफड़ों को प्रभावित करती है,जबकि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करती है.

टीबी के प्रमुख लक्षण

तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी होना, सांस फूलना, सांस लेने में तकलीफ होना, शाम को बुखार का बढ़ जाना, सीने में तेज दर्द होना, अचानक से वजन का घटना, भूख में कमी आना, बलगम के साथ खून आना, फेफड़ों का संक्रमण होना, लगातार खांसी आना, अस्पष्टीकृत थकान होना और बुखार आना.

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