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हिमाचल में किसानों को उपलब्ध होंगे गेहूं की नई किस्मों के बीज, मौसम की चिंता किए बगैर होगी बंपर पैदावार - FORTIFIED VARIETIES OF WHEAT

प्रदेश के किसानों को अब गेहूं की नई किस्मों के बीज उपलब्ध होंगे. इनमें प्रतिकूल मौसम से लड़ने की भी भरपूर क्षमता होगी.

हिमाचल में किसानों को उपलब्ध होंगे गेहूं की नई किस्मों के बीज
हिमाचल में किसानों को उपलब्ध होंगे गेहूं की नई किस्मों के बीज (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : April 7, 2025 at 7:58 AM IST

Updated : April 9, 2025 at 2:09 PM IST

5 Min Read

सिरमौर: हिमाचल प्रदेश के किसानों को अब गेहूं की नई किस्मों के बीज उपलब्ध होंगे, जो न केवल पैदावार बढ़ाएंगे बल्कि इनमें प्रतिकूल मौसम से लड़ने की भी भरपूर क्षमता होगी. यही नहीं ये किस्में बायोफोर्टिफाइड हैं, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद ही पौष्टिक मानी गई हैं. फिलहाल इनका उत्पादन जिला के कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रदर्शन फार्म में किया गया है. इसकी कटाई के बाद इसकी जांच की जाएगी कि इसका उत्पादन कितनी मात्रा में हुआ है. इसके बाद कृषि विभाग के माध्यम से इन किस्मों का बीज किसानों को उसी मात्रा में अगले रबी फसल के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा.

दरअसल कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि विभिन्न फसलों के बीजों की पैदावार के बाद किसानों को वितरित किया जा सके. इसी मकसद से इस मर्तबा कृषि विज्ञान केंद्र ने डीबीडब्ल्यू सीरीज के गेहूं की 2 नई किस्मों को अपने प्रदर्शन फार्म में करीब 4 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रायोगिक तौर पर लगाया है. इसकी जल्द कटाई शुरू होगी.

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रदर्शन फार्म में गेहूं की नई किस्मों का उत्पादन (ETV Bharat)

आईसीआर करनाल ने लांच की ये दोनों किस्में

ये दोनों किस्में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र (आईसीआर) करनाल ने लॉन्च की हैं. इसके साथ-साथ डीबीडब्ल्यू 303 सीरीज किस्म का गेहूं भी कृषि विज्ञान केंद्र में लगाया गया गया है. डीबीडब्ल्यू सीरीज आईसीआर करनाल ही लॉन्च करता है. वहीं एचडी 3226 किस्म गेहूं के बीज की भी यहां पैदावार की गई है. ये सभी किस्में लगभग नई हैं, लेकिन 327 और 371 किस्मों को पहली बार यहां प्रायोगिक तौर पर उगाया गया है.

इस वजह से पड़ी आवश्यकता

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने बताया कि, 'दरअसल 2022 में अचानक मौसम में परिवर्तन के चलते तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी होने से गेहूं के उत्पादन में भारी कमी आई थी. दो साल पहले गेहूं के उत्पादन में 30 से 35 फीसदी तक कमी दर्ज की गई थी. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की पुरानी किस्मों में प्रतिकूल मौसम से लड़ने की क्षमता नहीं थी. इस वजह से उत्पादन में भारी गिरावट आई. इसी के मद्देनजर आईसीआर करनाल ने डीबीडब्ल्यू सीरीज की दो नई किस्मों को मौसम से लड़ने, अच्छी पैदावार, पौष्टिकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है.'

धौलाकुआं में अभी तक के परिणाम उत्साहवर्धक

आईसीआर करनाल ने इन दोनों किस्मों का बीज विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों को मुहैया करवाया, ताकि उत्पादन के दौरान इनकी मौसम से लड़ने की क्षमता को परखा जा सके. साथ ही पैदावार के बाद इनके बीजों की गुणवत्ता जांची जा सके. विशेषज्ञों ने पाया कि धौलाकुआं में इन किस्मों की पैदावार काफी अच्छी हुई है और अब कटाई के बाद इसकी पैदावार का अन्य किस्मों के मुकाबले अनुमान लगाया जाएगा. इसके बाद इसका बीज किसानों को आवंटित होगा. विशेषज्ञों ने बताया कि धौलाकुआं में अन्य किस्मों की अपेक्षा इन किस्मों के अभी तक के परिणाम उत्साहवर्धक हैं और अधिक बीज पैदावार की उम्मीद है.

क्या हैं बायोफोर्टिफाइड

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बायोफोर्टिफाइड फसलें, वो फसलें होती हैं, जिनमें पोषक तत्वों की मात्रा ज्यादा होती है. इन फसलों को उगाने के लिए, पारम्परिक पौध प्रजनन, उन्नत कृषि पद्धतियों और आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता है. बायोफोर्टिफाइड फसलों से पोषण की कमी को दूर किया जा सकता है. इसकी भी वैज्ञानिक पैदावार के बाद जांच करेंगे.

सोना-मोती गेहूं का भी प्रायोगिक उत्पादन

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर में हजारों वर्ष पुरानी सोना-मोती गेहूं का प्रायोगिक उत्पादन भी किया गया है. चाहे डीबीडब्ल्यू या एचडी सीरीज की गेहूं की किस्में हो या फिर सोना मोती, इन सभी किस्मों की खासियत अलग-अलग हैं. सोना मोती गेहूं को हड़प्पा सभ्यताकालीन गेहूं माना जाता है, जो अन्य सभी गेहूं की किस्मों से काफी अलग हैं. इसका भी पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर ने उत्पादन किया है. अब इन सभी किस्मों की पैदावार के बाद ही वैज्ञानिक इनकी गुणवत्ता, पौष्टिकता सहित अन्य मानकों का गहन अध्ययन करेंगे. इसके साथ-साथ किसानों को भी उपलब्ध करवाया जाएगा.

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक?

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पंकज मित्तल ने बताया कि, 'प्रदर्शन फार्म में गेहूं की कई किस्में लगाई गई हैं. डीबीडब्ल्यू 327 और 371 नई किस्में हैं, जो अन्य किस्मों के मुकाबले बेहतर किस्म मानी गई हैं. इनमें प्रतिकूल मौसम से लड़ने की क्षमता है और इस बार प्रदर्शन फार्म में भी इसे साफ तौर पर देखा और परखा गया. कृषि विज्ञान केंद्र नई-नई किस्मों के बीज एवं पौध उत्पादन द्वारा किसानों को सशक्त बनाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.' कुल मिलाकर कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा हैं और इन्हीं तकनीकों में से गेहूं की ये किस्में भी शामिल हैं.

ये भी पढ़ें: मरीजों-तीमारदारों समेत डॉक्टरों को इन्फेक्शन से बचाएगा ये मेडिकल कॉलेज, जानें कैसे?

सिरमौर: हिमाचल प्रदेश के किसानों को अब गेहूं की नई किस्मों के बीज उपलब्ध होंगे, जो न केवल पैदावार बढ़ाएंगे बल्कि इनमें प्रतिकूल मौसम से लड़ने की भी भरपूर क्षमता होगी. यही नहीं ये किस्में बायोफोर्टिफाइड हैं, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद ही पौष्टिक मानी गई हैं. फिलहाल इनका उत्पादन जिला के कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रदर्शन फार्म में किया गया है. इसकी कटाई के बाद इसकी जांच की जाएगी कि इसका उत्पादन कितनी मात्रा में हुआ है. इसके बाद कृषि विभाग के माध्यम से इन किस्मों का बीज किसानों को उसी मात्रा में अगले रबी फसल के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा.

दरअसल कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि विभिन्न फसलों के बीजों की पैदावार के बाद किसानों को वितरित किया जा सके. इसी मकसद से इस मर्तबा कृषि विज्ञान केंद्र ने डीबीडब्ल्यू सीरीज के गेहूं की 2 नई किस्मों को अपने प्रदर्शन फार्म में करीब 4 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रायोगिक तौर पर लगाया है. इसकी जल्द कटाई शुरू होगी.

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रदर्शन फार्म में गेहूं की नई किस्मों का उत्पादन (ETV Bharat)

आईसीआर करनाल ने लांच की ये दोनों किस्में

ये दोनों किस्में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र (आईसीआर) करनाल ने लॉन्च की हैं. इसके साथ-साथ डीबीडब्ल्यू 303 सीरीज किस्म का गेहूं भी कृषि विज्ञान केंद्र में लगाया गया गया है. डीबीडब्ल्यू सीरीज आईसीआर करनाल ही लॉन्च करता है. वहीं एचडी 3226 किस्म गेहूं के बीज की भी यहां पैदावार की गई है. ये सभी किस्में लगभग नई हैं, लेकिन 327 और 371 किस्मों को पहली बार यहां प्रायोगिक तौर पर उगाया गया है.

इस वजह से पड़ी आवश्यकता

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने बताया कि, 'दरअसल 2022 में अचानक मौसम में परिवर्तन के चलते तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी होने से गेहूं के उत्पादन में भारी कमी आई थी. दो साल पहले गेहूं के उत्पादन में 30 से 35 फीसदी तक कमी दर्ज की गई थी. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की पुरानी किस्मों में प्रतिकूल मौसम से लड़ने की क्षमता नहीं थी. इस वजह से उत्पादन में भारी गिरावट आई. इसी के मद्देनजर आईसीआर करनाल ने डीबीडब्ल्यू सीरीज की दो नई किस्मों को मौसम से लड़ने, अच्छी पैदावार, पौष्टिकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है.'

धौलाकुआं में अभी तक के परिणाम उत्साहवर्धक

आईसीआर करनाल ने इन दोनों किस्मों का बीज विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों को मुहैया करवाया, ताकि उत्पादन के दौरान इनकी मौसम से लड़ने की क्षमता को परखा जा सके. साथ ही पैदावार के बाद इनके बीजों की गुणवत्ता जांची जा सके. विशेषज्ञों ने पाया कि धौलाकुआं में इन किस्मों की पैदावार काफी अच्छी हुई है और अब कटाई के बाद इसकी पैदावार का अन्य किस्मों के मुकाबले अनुमान लगाया जाएगा. इसके बाद इसका बीज किसानों को आवंटित होगा. विशेषज्ञों ने बताया कि धौलाकुआं में अन्य किस्मों की अपेक्षा इन किस्मों के अभी तक के परिणाम उत्साहवर्धक हैं और अधिक बीज पैदावार की उम्मीद है.

क्या हैं बायोफोर्टिफाइड

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बायोफोर्टिफाइड फसलें, वो फसलें होती हैं, जिनमें पोषक तत्वों की मात्रा ज्यादा होती है. इन फसलों को उगाने के लिए, पारम्परिक पौध प्रजनन, उन्नत कृषि पद्धतियों और आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता है. बायोफोर्टिफाइड फसलों से पोषण की कमी को दूर किया जा सकता है. इसकी भी वैज्ञानिक पैदावार के बाद जांच करेंगे.

सोना-मोती गेहूं का भी प्रायोगिक उत्पादन

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर में हजारों वर्ष पुरानी सोना-मोती गेहूं का प्रायोगिक उत्पादन भी किया गया है. चाहे डीबीडब्ल्यू या एचडी सीरीज की गेहूं की किस्में हो या फिर सोना मोती, इन सभी किस्मों की खासियत अलग-अलग हैं. सोना मोती गेहूं को हड़प्पा सभ्यताकालीन गेहूं माना जाता है, जो अन्य सभी गेहूं की किस्मों से काफी अलग हैं. इसका भी पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर ने उत्पादन किया है. अब इन सभी किस्मों की पैदावार के बाद ही वैज्ञानिक इनकी गुणवत्ता, पौष्टिकता सहित अन्य मानकों का गहन अध्ययन करेंगे. इसके साथ-साथ किसानों को भी उपलब्ध करवाया जाएगा.

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक?

कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पंकज मित्तल ने बताया कि, 'प्रदर्शन फार्म में गेहूं की कई किस्में लगाई गई हैं. डीबीडब्ल्यू 327 और 371 नई किस्में हैं, जो अन्य किस्मों के मुकाबले बेहतर किस्म मानी गई हैं. इनमें प्रतिकूल मौसम से लड़ने की क्षमता है और इस बार प्रदर्शन फार्म में भी इसे साफ तौर पर देखा और परखा गया. कृषि विज्ञान केंद्र नई-नई किस्मों के बीज एवं पौध उत्पादन द्वारा किसानों को सशक्त बनाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.' कुल मिलाकर कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा हैं और इन्हीं तकनीकों में से गेहूं की ये किस्में भी शामिल हैं.

ये भी पढ़ें: मरीजों-तीमारदारों समेत डॉक्टरों को इन्फेक्शन से बचाएगा ये मेडिकल कॉलेज, जानें कैसे?

Last Updated : April 9, 2025 at 2:09 PM IST
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