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यूपी की राजनीति; फिल्म 'फुले' के जरिए दलित वोट बैंक साधने की कोशिश करेगी सपा, जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक? - VARANASI NEWS

पार्टी की तरफ से कराया जा रहा स्पेशल स्क्रीन प्ले, सपा नेताओं ने पूरे प्रदेश के लोगों को फिल्म दिखाने के लिए शुरू की मुहिम.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 21, 2025 at 10:26 PM IST

8 Min Read

वाराणसी : हाल के दिनों में देखा जाये तो कई ऐसी फिल्में आईं जिन्होंने सोशल मीडिया से लेकर विश्व के कई मंचों पर सुर्खियां बटोरीं. इनमें द केरल स्टोरी, कश्मीर फाइल जैसी फिल्में शामिल हैं, जिन्होंने हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दे को खासा हवा दी. माना जाता है कि कहीं न कहीं बीजेपी को फायदा भी हुआ.

यूपी की राजनीति (Video credit: ETV Bharat)

इसी तर्ज पर अब समाजवादी पार्टी भी शुरुआत करने जा रही है, जिसने भी फिल्म का सहारा लिया है. इस फिल्म के जरिए समाजवादी पार्टी ने दलित राजनीति को हवा देनी शुरू कर दी है. वाराणसी समेत पूरे प्रदेश में सपा नेताओं ने इस फिल्म को देखने का मुहिम शुरू की है, जिसकी शुरुआत बड़े पैमाने पर वाराणसी से हुई है.


सपा की अंबेडकर वाहिनी को दी गई जिम्मेदारी : बताते चलें कि, इस फिल्म 'फुले' के जरिए दलितों को साधने की तैयारी की जा रही है. यही कारण है कि इसकी जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी की अंबेडकर वाहिनी को दी गई है. जो देश के अलग-अलग हिस्सों में फिल्मों को दिखाकर समाजवादी पार्टी की विचारधारा को दलितों तक पहुंचाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके लिए पार्टी की तरफ से बाकायदा स्पेशल स्क्रीन प्ले कराया जा रहा है और लोगों को दलित के संघर्ष को बताने के साथ ही समाजवादी पार्टी के विचारधारा को भी बताया जा रहा है, जिससे दलित का कोर वोट समाजवादी पार्टी के साथ आ जाए.

'जन-जन तक पहुंचकर बताएंगे पार्टी की विचारधारा' : इस बारे में अंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव सत्य प्रकाश सोनकर बताते हैं कि, बीजेपी अपने इतिहास को अपने तरीके से परोसने का काम करती है, लेकिन समाजवादी पार्टी इतिहास की वास्तविक झलक समाज को दिखाना चाहती है और 'फुले' फिल्म इस बात को बताती है. यही वजह है कि हम PDA की विचारधारा और दलितों के हक को बताने के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग फुले फिल्म की कर रहे हैं, ताकि वह अपने अधिकार को जान सकें. उन्होंने बताया कि, इस फिल्म के बाद हम जन-जन तक पहुंच कर उनके अधिकार और पार्टी की विचारधारा को बताएंगे और उन्हें पार्टी से जोड़ने का काम करेंगे, क्योंकि समाजवादी पार्टी पिछड़ा अगड़ा अल्पसंख्यक दलित हर किसी की पार्टी है.



एक्सपेरिमेंट करते रहना पॉलिटिकल पार्टी का काम : सपा के नए एक्सपेरिमेंट पर राजनीतिक विश्लेषक प्रो. भावना त्रिवेदी कहती हैं कि, पॉलिटिकल पार्टी का काम है एक्सपेरिमेंट करते रहना, अपने नए जनाधार बनाना और उन्हें मजबूत करना. निश्चित रूप से भाजपा ने एक हिंदुत्व के विचारधारा को लेकर ऑडियो विजुअल माध्यम से बहुत सशक्त तरीके से देश भर में प्रचार-प्रसार किया और उसमें वह सफल हुए. यह एक प्रकार से दूसरे राजनीतिक दलों के लिए भी प्रभावित करने वाला था, समाजवादी पार्टी का प्रारंभ 1992 में हुआ है. चार बार यूपी में इनकी सरकार रही है.

2024 में देखने को मिला बड़ा बदलाव : वे बताती हैं कि सपा का हमेशा से वोट का कैलकुलेशन एमवाई समीकरण रहा है और यूपी में यादव की जो पापुलेशन है वह 7% और मुस्लिम की 19% के लगभग माना जाता है, फिर भी उन्होंने चार बार सक्सेसफुली अपना टेंयोर पूरा किया है. 2024 में समाजवादी पार्टी में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब समाजवादी पार्टी एमवाई समीकरण के आगे एक नया पीडीए समीकरण लेकर के आई और इन्होंने अपने क्षेत्र को आगे बढ़ाया और अपना परंपरागत वोट बैंक पीछे छोड़ा. उसके बाद उन्होंने जिस तरीके से अलग-अलग जाति वर्ग के लोगों को अपने खेमे में लाने की कोशिश की उन सभी प्रत्याशियों को टिकट देकर के अपनी पार्टी से जोड़ने का काम किया, निश्चित रूप से यह प्रयोग इनका सफल हुआ. लोकसभा में इन्हें एक बड़ी जीत मिली, जिसके बाद अब ये अपने इसी एक्सपेरिमेंट को आगे लेकर के चल रहे हैं.




'बीएसपी का कोर वोटर बीजेपी के खेमे में' : प्रो. त्रिवेदी बताती हैं कि, बात जब दलित वोट बैंक की आती है तो बीएसपी का जिक्र करना जरूर हो जाता है. बीएसपी का जो कोर वोटर रहा है वह अब बसपा से हटकर बीजेपी के खेमे में गया है, उनको वोट दे रहा है और उसके बाद कुछ हिस्सा समाजवादी पार्टी में भी आया है, जिसका असर 2024 में दिखा. जब 2024 में समाजवादी पार्टी को यह परिवर्तन दिखा, तब इन्होंने अपने परम्परागत क्षेत्र को और एक्सपेंड किया है. अब वह 2027 के विधानसभा चुनाव में इसी समीकरण को लेकर के आगे बढ़ रहे हैं, जिसके तहत वह दलित सियासत को चमकाने के लिए पहले पिक्चर के जरिए जन-जन तक अपनी बातों को पहुंचते हुए दिखाई दे रहे है. वो कहती हैं कि, बिना इस प्रयास के किसी भी राजनीतिक दल का सत्ता में आना मुश्किल है और सपा का पूरा प्रयास है कि यह अपने बड़े समीकरण की छतरी के नीचे अलग-अलग जाति के लोगों को जगह दें और यूपी में फिर से अपनी सरकार बनाएं.



वे कहती है कि, निश्चित रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक का अपना एक मजबूत प्रभाव रहा है. आज समाजवादी पार्टी को एक बड़ी अपॉर्चुनिटी समझ में आ रही है. जहां वह ओबीसी को तो अपने खेमे में लेकर के आए ही हैं, लेकिन अब दलित वोटर को लाने के प्रयास में जुट गए हैं. वो कहती हैं कि, यूपी में जीतने के लिए यह दलित वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद जरूरी है. ये वोट प्रतिशत के आंकड़े से ही समझा जा सकता है. यदि हम लगभग दलित वोट बैंक को देख तो 25 फीसदी से ज्यादा इनकी आबादी है, जिसमें अलग-अलग जातियां और उपजातियां शामिल हैं.

वे कहती हैं कि यदि इतिहास देखें तो बीजेपी ने इस बात को समझ लिया था, इसलिए अपने सवर्ण वोट बैंक पर फोकस किया तो वहीं उन्होंने मायावती के धराशाही होते हुए वोट बैंक पर भी तमाम सरकारी योजनाओं को देकर अपनी साथ लेकर के आए. जिसकी सकारात्मक तस्वीर भाजपा को 2014, 2019, 2022, 2024 के चुनाव में भी देखने को मिली. अब यह बात समाजवादी पार्टी को भी समझ में आ गई है कि, 90 का दशक बीत गया, जब मुस्लिम और यादव को साथ मिलाकर सत्ता तक पहुंच सकते थे, अब वो भी यह जानते हैं कि, अगर सिंगल हाथ सरकार बनानी है तो दलित कम्युनिटी को अपनी ओर लाना बेहद जरूरी है.

इन जिलों में 25 प्रतिशत से अधिक है दलित आबादी
जिलाआबादी (प्रतिशत में)
सोनभद्र 41.92
कौशाम्बी 36.10
सीतापुर 31.87
हरदोई 31.36
उन्नाव 30.64
रायबरेली 29.83
औरैया 29.69
झांसी 28.07
जालौन 27.04
बहराइच 26.89
चित्रकूट 26.34
महोबा 25.78
मीरजापुर 25.76
आजमगढ 25.73
लखीमपुर खीरी 25.58
महामाया नगर 25.20
फतेहपुर 25.04
ललितपुर 25.01
कानपुर देहात 25.08
अंबेडकर नगर 25.14



2027 में कितना काम करेगा PDA मैजिक? : प्रो. त्रिवेदी कहती हैं कि, वर्तमान में अभी बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ना राज्य स्तर के चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए कठिन है, हालांकि अभी 2 वर्ष बाकी है राज्यसभा चुनाव के लिए. केंद्र की राजनीति में क्या उठा पटक होगी इस बात पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है, यदि हम वर्तमान परिस्थितियों को देखकर उस वक्त का आकलन करें तो अभी कहीं ना कहीं समाजवादी पार्टी के लिए पूरी तरह से दलित वोट बैंक को अपने खेमें में लाना एक बड़ा चैलेंज है और अभी इनको कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा, लेकिन यदि ये अपने इसी समीकरण को लेकर के आगे बढ़ेंगे तो निश्चित रूप से कुछ परिणाम उनके लिए सकारात्मक होते हुए भी दिखाई दे रहे हैं.


लोकसभा में 17 सीटें हैं आरक्षित : नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर व राबर्ट्सगंज.




यह भी पढ़ें : फुले X रिव्यू: प्रतीक-चित्रलेखा की नेशनल अवार्ड विनिंग एक्टिंग, कॉन्ट्रोवर्सी के बीच जानें दर्शकों को कैसी लगी फिल्म

यह भी पढ़ें : फिल्म 'छावा' में BJP की क्या भूमिका है? उद्धव ठाकरे ने साधा निशाना, देवेंद्र फडणवीस को भी दिया जवाब

वाराणसी : हाल के दिनों में देखा जाये तो कई ऐसी फिल्में आईं जिन्होंने सोशल मीडिया से लेकर विश्व के कई मंचों पर सुर्खियां बटोरीं. इनमें द केरल स्टोरी, कश्मीर फाइल जैसी फिल्में शामिल हैं, जिन्होंने हिंदू और हिंदुत्व के मुद्दे को खासा हवा दी. माना जाता है कि कहीं न कहीं बीजेपी को फायदा भी हुआ.

यूपी की राजनीति (Video credit: ETV Bharat)

इसी तर्ज पर अब समाजवादी पार्टी भी शुरुआत करने जा रही है, जिसने भी फिल्म का सहारा लिया है. इस फिल्म के जरिए समाजवादी पार्टी ने दलित राजनीति को हवा देनी शुरू कर दी है. वाराणसी समेत पूरे प्रदेश में सपा नेताओं ने इस फिल्म को देखने का मुहिम शुरू की है, जिसकी शुरुआत बड़े पैमाने पर वाराणसी से हुई है.


सपा की अंबेडकर वाहिनी को दी गई जिम्मेदारी : बताते चलें कि, इस फिल्म 'फुले' के जरिए दलितों को साधने की तैयारी की जा रही है. यही कारण है कि इसकी जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी की अंबेडकर वाहिनी को दी गई है. जो देश के अलग-अलग हिस्सों में फिल्मों को दिखाकर समाजवादी पार्टी की विचारधारा को दलितों तक पहुंचाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके लिए पार्टी की तरफ से बाकायदा स्पेशल स्क्रीन प्ले कराया जा रहा है और लोगों को दलित के संघर्ष को बताने के साथ ही समाजवादी पार्टी के विचारधारा को भी बताया जा रहा है, जिससे दलित का कोर वोट समाजवादी पार्टी के साथ आ जाए.

'जन-जन तक पहुंचकर बताएंगे पार्टी की विचारधारा' : इस बारे में अंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव सत्य प्रकाश सोनकर बताते हैं कि, बीजेपी अपने इतिहास को अपने तरीके से परोसने का काम करती है, लेकिन समाजवादी पार्टी इतिहास की वास्तविक झलक समाज को दिखाना चाहती है और 'फुले' फिल्म इस बात को बताती है. यही वजह है कि हम PDA की विचारधारा और दलितों के हक को बताने के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग फुले फिल्म की कर रहे हैं, ताकि वह अपने अधिकार को जान सकें. उन्होंने बताया कि, इस फिल्म के बाद हम जन-जन तक पहुंच कर उनके अधिकार और पार्टी की विचारधारा को बताएंगे और उन्हें पार्टी से जोड़ने का काम करेंगे, क्योंकि समाजवादी पार्टी पिछड़ा अगड़ा अल्पसंख्यक दलित हर किसी की पार्टी है.



एक्सपेरिमेंट करते रहना पॉलिटिकल पार्टी का काम : सपा के नए एक्सपेरिमेंट पर राजनीतिक विश्लेषक प्रो. भावना त्रिवेदी कहती हैं कि, पॉलिटिकल पार्टी का काम है एक्सपेरिमेंट करते रहना, अपने नए जनाधार बनाना और उन्हें मजबूत करना. निश्चित रूप से भाजपा ने एक हिंदुत्व के विचारधारा को लेकर ऑडियो विजुअल माध्यम से बहुत सशक्त तरीके से देश भर में प्रचार-प्रसार किया और उसमें वह सफल हुए. यह एक प्रकार से दूसरे राजनीतिक दलों के लिए भी प्रभावित करने वाला था, समाजवादी पार्टी का प्रारंभ 1992 में हुआ है. चार बार यूपी में इनकी सरकार रही है.

2024 में देखने को मिला बड़ा बदलाव : वे बताती हैं कि सपा का हमेशा से वोट का कैलकुलेशन एमवाई समीकरण रहा है और यूपी में यादव की जो पापुलेशन है वह 7% और मुस्लिम की 19% के लगभग माना जाता है, फिर भी उन्होंने चार बार सक्सेसफुली अपना टेंयोर पूरा किया है. 2024 में समाजवादी पार्टी में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब समाजवादी पार्टी एमवाई समीकरण के आगे एक नया पीडीए समीकरण लेकर के आई और इन्होंने अपने क्षेत्र को आगे बढ़ाया और अपना परंपरागत वोट बैंक पीछे छोड़ा. उसके बाद उन्होंने जिस तरीके से अलग-अलग जाति वर्ग के लोगों को अपने खेमे में लाने की कोशिश की उन सभी प्रत्याशियों को टिकट देकर के अपनी पार्टी से जोड़ने का काम किया, निश्चित रूप से यह प्रयोग इनका सफल हुआ. लोकसभा में इन्हें एक बड़ी जीत मिली, जिसके बाद अब ये अपने इसी एक्सपेरिमेंट को आगे लेकर के चल रहे हैं.




'बीएसपी का कोर वोटर बीजेपी के खेमे में' : प्रो. त्रिवेदी बताती हैं कि, बात जब दलित वोट बैंक की आती है तो बीएसपी का जिक्र करना जरूर हो जाता है. बीएसपी का जो कोर वोटर रहा है वह अब बसपा से हटकर बीजेपी के खेमे में गया है, उनको वोट दे रहा है और उसके बाद कुछ हिस्सा समाजवादी पार्टी में भी आया है, जिसका असर 2024 में दिखा. जब 2024 में समाजवादी पार्टी को यह परिवर्तन दिखा, तब इन्होंने अपने परम्परागत क्षेत्र को और एक्सपेंड किया है. अब वह 2027 के विधानसभा चुनाव में इसी समीकरण को लेकर के आगे बढ़ रहे हैं, जिसके तहत वह दलित सियासत को चमकाने के लिए पहले पिक्चर के जरिए जन-जन तक अपनी बातों को पहुंचते हुए दिखाई दे रहे है. वो कहती हैं कि, बिना इस प्रयास के किसी भी राजनीतिक दल का सत्ता में आना मुश्किल है और सपा का पूरा प्रयास है कि यह अपने बड़े समीकरण की छतरी के नीचे अलग-अलग जाति के लोगों को जगह दें और यूपी में फिर से अपनी सरकार बनाएं.



वे कहती है कि, निश्चित रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक का अपना एक मजबूत प्रभाव रहा है. आज समाजवादी पार्टी को एक बड़ी अपॉर्चुनिटी समझ में आ रही है. जहां वह ओबीसी को तो अपने खेमे में लेकर के आए ही हैं, लेकिन अब दलित वोटर को लाने के प्रयास में जुट गए हैं. वो कहती हैं कि, यूपी में जीतने के लिए यह दलित वोट बैंक किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद जरूरी है. ये वोट प्रतिशत के आंकड़े से ही समझा जा सकता है. यदि हम लगभग दलित वोट बैंक को देख तो 25 फीसदी से ज्यादा इनकी आबादी है, जिसमें अलग-अलग जातियां और उपजातियां शामिल हैं.

वे कहती हैं कि यदि इतिहास देखें तो बीजेपी ने इस बात को समझ लिया था, इसलिए अपने सवर्ण वोट बैंक पर फोकस किया तो वहीं उन्होंने मायावती के धराशाही होते हुए वोट बैंक पर भी तमाम सरकारी योजनाओं को देकर अपनी साथ लेकर के आए. जिसकी सकारात्मक तस्वीर भाजपा को 2014, 2019, 2022, 2024 के चुनाव में भी देखने को मिली. अब यह बात समाजवादी पार्टी को भी समझ में आ गई है कि, 90 का दशक बीत गया, जब मुस्लिम और यादव को साथ मिलाकर सत्ता तक पहुंच सकते थे, अब वो भी यह जानते हैं कि, अगर सिंगल हाथ सरकार बनानी है तो दलित कम्युनिटी को अपनी ओर लाना बेहद जरूरी है.

इन जिलों में 25 प्रतिशत से अधिक है दलित आबादी
जिलाआबादी (प्रतिशत में)
सोनभद्र 41.92
कौशाम्बी 36.10
सीतापुर 31.87
हरदोई 31.36
उन्नाव 30.64
रायबरेली 29.83
औरैया 29.69
झांसी 28.07
जालौन 27.04
बहराइच 26.89
चित्रकूट 26.34
महोबा 25.78
मीरजापुर 25.76
आजमगढ 25.73
लखीमपुर खीरी 25.58
महामाया नगर 25.20
फतेहपुर 25.04
ललितपुर 25.01
कानपुर देहात 25.08
अंबेडकर नगर 25.14



2027 में कितना काम करेगा PDA मैजिक? : प्रो. त्रिवेदी कहती हैं कि, वर्तमान में अभी बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ना राज्य स्तर के चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए कठिन है, हालांकि अभी 2 वर्ष बाकी है राज्यसभा चुनाव के लिए. केंद्र की राजनीति में क्या उठा पटक होगी इस बात पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है, यदि हम वर्तमान परिस्थितियों को देखकर उस वक्त का आकलन करें तो अभी कहीं ना कहीं समाजवादी पार्टी के लिए पूरी तरह से दलित वोट बैंक को अपने खेमें में लाना एक बड़ा चैलेंज है और अभी इनको कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा, लेकिन यदि ये अपने इसी समीकरण को लेकर के आगे बढ़ेंगे तो निश्चित रूप से कुछ परिणाम उनके लिए सकारात्मक होते हुए भी दिखाई दे रहे हैं.


लोकसभा में 17 सीटें हैं आरक्षित : नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर व राबर्ट्सगंज.




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