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सागर के संस्कृत महाविद्यालय में 200 रुपये में एडमिशन, किताबों के साथ रहना-खाना फ्री - SAGAR SANSKRIT COLLEGE 126 YEAR OLD

सागर के संस्कृत महाविद्यालय से डिग्री लेकर स्टूडेंट्स्, सेना में धर्म शिक्षक और स्कूल शिक्षा विभाग बन सकते हैं संस्कृत अध्यापक.

SAGAR SANSKRIT COLLEGE 126 YEAR OLD
सागर का संस्कृत महाविद्यालय (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 29, 2025 at 8:52 PM IST

4 Min Read

सागर: संस्कृत और भारतीय वैदिक परम्परा को शाश्वत रखने के उद्देश्य से आज से 126 साल पहले सागर में संस्कृत पाठशाला की शुरूआत की गई थी. आज ये पाठशाला एक आवासीय संस्कृत महाविद्यालय के रूप में संचालित हो रही है. जिसमें सिर्फ 200 रूपए फीस पर प्रवेश लिया जा सकता है. खास बात ये है कि यहां पर प्राचीन वैदिक परंपरा के तहत संस्कृत की शिक्षा के साथ ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद की शिक्षा विद्यार्थियों को दी जाती है. यहां के विद्यार्थियों को शिक्षा पूरी होने तक आवास,पाठ्य पुस्तकें और भोजन मुफ्त दिया जाता है.

खास बात ये है कि ये महाविद्यालय अपने संसाधनों और समाजसेवियों की मदद से संचालित हो रहा है. हालांकि महाविद्यालय संचालित करने वाली समिति का कहना है कि जब दूसरे धर्म के शैक्षणिक संस्थानों को सरकार अनुदान देती है, तो संस्कृत के लिए अनुदान क्यों नहीं दिया जाता है.

सागर के संस्कृत महाविद्यालय में 200 रुपये में एडमिशन (ETV Bharat)

कैसे हुई संस्कृत महाविद्यालय की शुरूआत

संस्कृत महाविद्यालय के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता के के सिलाकारी बताते हैं कि "संस्कृत पाठशाला की शुरूआत 1898 में बडा बाजार के दुलारी बाई मंदिर से हुई थी. तब सागर एक कस्बा हुआ करता था, यहां के 5 विद्वानों विश्वास राव भावे, नारायण राव जेग्वेकर, नंदीलाल सिलाकारी, भवानी शंकर शुक्ल और दुर्गाप्रसाद वैद्य ने मिलकर भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार और वैदिक परम्परा के संरक्षण के उद्देश्य से इसकी शुरूआत की थी."

126 years old Sanskrit College
126 साल हुई थी संस्कृत महाविद्यालय की शुरूआत (ETV Bharat)

के के सिलाकारी बताते हैं कि "इसके बाद बलदेव प्रसाद माहेश्वरी ने पाठशाला के संचालन के लिए एक मकान दान में दिया. जिसमें कई सालों तक संस्कृत पाठशाला संचालित हुई. इसके बाद छेदीलाल भार्गव ने लाखा बंजारा झील किनारे चकराघाट में एक मकान दिया, जहां पाठशाला संचालित होने लगी. पाठशाला के प्रधान अध्यापक पं. गोविंद प्रसाद सिलाकारी ने 26 एकड़ जमीन खरीदकर ब्रह्मचर्य आश्रम शुरू किया, तब पाठशाला चकराघाट में ही लगती थी. लेकिन सन 1961 में आश्रम में पहुंच गई. इसके बाद स्थानीय समाजसेवी और राजनीति से जुड़े लोगों ने संस्कृत पाठशाला के लिए कई तरह सहयोग किया."

वर्तमान केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार जब सागर सांसद हुआ करते थे तब उन्होंने पाठशाला परिसर की बाउंड्रीवाल बनवाई. पूर्व विधायक सुधा जैन ने सड़क और वर्तमान विधायक शैलेन्द्र जैन ने 3 कमरे बनवाएं हैं.

Govind Prasad Silakari
गोविंद प्रसाद सिलाकारी (ETV Bharat)

वर्तमान में अपने संसाधनों से संचालित होता है महाविद्यालय

वर्तमान में संस्कृत महाविद्यालय अपने संसाधनों के जरिए ही महाविद्यालय का संचालन कर रहा है. महाविद्यालय की 26 एकड़ जमीन, इसके अलावा शहर में स्थित व्यावसायिक दुकान से होने वाली आमदनी से महाविद्यालय का संचालन किया जाता है. पहले सरकार द्वारा अनुदान में यहां के शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों के समान वेतन दिया जाता था, लेकिन अनुदान बंद होने के बाद अब महाविद्यालय ही शिक्षकों का वेतन देता है. खेती की जमीन और व्यावसायिक परिसर से करीब 4 लाख आमदनी होती है. जिससे महाविद्यालय संचालन किया जाता है. महाविद्यालय के विद्यार्थियों के भोजन, आवास और पाठ्य पुस्तकों की व्यवस्था इसी आमदनी से होती है.

SANSKRIT COLLEGE VAIDIK TRADITION
संस्कृत के साथ वैदिक परंपरा की शिक्षा (ETV Bharat)

संस्कृत के साथ वैदिक विषयों का अध्ययन

महाविद्यालय समिति के अध्यक्ष के के सिलाकारी बताते हैं कि "ये महाविद्यालय शुरूआत से लेकर अब तक वैदिक परम्परा के अनुसार संचालित हो रहा है. यहां पर संस्कृत के अध्ययन के अलावा वैदिक, गणित, ज्योतिष, वास्तु और धार्मिक कर्मकांड की शिक्षा भी दी जाती है. यहां विद्यार्थियों को 6 वीं कक्षा से प्रवेश मिलता है और 12वीं महाविद्यालय संचालित होता है. यहां से उत्तीर्ण विद्यार्थी सेना में धर्म शिक्षक और स्कूल शिक्षा विभाग संस्कृत अध्यापक बन सकते हैं. इस महाविद्यालय से संस्कृत के कई विद्वान निकले हैं, जिन्होंने देश और दुनिया में संस्कृत का परचम लहराया है.

संस्कृत बचाने अनुदान जरूरी

महाविद्यालय के अध्यक्ष के के सिलाकारी का कहना है कि महाविद्यालय अच्छी तरह से संचालित हो रहा है, बच्चे अच्छी तरह से पढ़ रहे हैं लेकिन मुझे भविष्य की चिंता है. क्योकिं शिक्षकों को वेतन मिलना चाहिए. दिग्विजय सिंह सरकार के समय अनुदान से शिक्षकों को वेतन मिलता था लेकिन अब हमें खुद वेतन देना पड़ रहा है. इसलिए हम शिक्षकों को आज के समय के हिसाब से वेतन नहीं दे पा रहे हैं, अगर हमें अनुदान मिलने लगे, तो हमारा महाविद्यालय बढ़िया तरीके से संचालित होता रहेगा."

सागर: संस्कृत और भारतीय वैदिक परम्परा को शाश्वत रखने के उद्देश्य से आज से 126 साल पहले सागर में संस्कृत पाठशाला की शुरूआत की गई थी. आज ये पाठशाला एक आवासीय संस्कृत महाविद्यालय के रूप में संचालित हो रही है. जिसमें सिर्फ 200 रूपए फीस पर प्रवेश लिया जा सकता है. खास बात ये है कि यहां पर प्राचीन वैदिक परंपरा के तहत संस्कृत की शिक्षा के साथ ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद की शिक्षा विद्यार्थियों को दी जाती है. यहां के विद्यार्थियों को शिक्षा पूरी होने तक आवास,पाठ्य पुस्तकें और भोजन मुफ्त दिया जाता है.

खास बात ये है कि ये महाविद्यालय अपने संसाधनों और समाजसेवियों की मदद से संचालित हो रहा है. हालांकि महाविद्यालय संचालित करने वाली समिति का कहना है कि जब दूसरे धर्म के शैक्षणिक संस्थानों को सरकार अनुदान देती है, तो संस्कृत के लिए अनुदान क्यों नहीं दिया जाता है.

सागर के संस्कृत महाविद्यालय में 200 रुपये में एडमिशन (ETV Bharat)

कैसे हुई संस्कृत महाविद्यालय की शुरूआत

संस्कृत महाविद्यालय के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता के के सिलाकारी बताते हैं कि "संस्कृत पाठशाला की शुरूआत 1898 में बडा बाजार के दुलारी बाई मंदिर से हुई थी. तब सागर एक कस्बा हुआ करता था, यहां के 5 विद्वानों विश्वास राव भावे, नारायण राव जेग्वेकर, नंदीलाल सिलाकारी, भवानी शंकर शुक्ल और दुर्गाप्रसाद वैद्य ने मिलकर भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार और वैदिक परम्परा के संरक्षण के उद्देश्य से इसकी शुरूआत की थी."

126 years old Sanskrit College
126 साल हुई थी संस्कृत महाविद्यालय की शुरूआत (ETV Bharat)

के के सिलाकारी बताते हैं कि "इसके बाद बलदेव प्रसाद माहेश्वरी ने पाठशाला के संचालन के लिए एक मकान दान में दिया. जिसमें कई सालों तक संस्कृत पाठशाला संचालित हुई. इसके बाद छेदीलाल भार्गव ने लाखा बंजारा झील किनारे चकराघाट में एक मकान दिया, जहां पाठशाला संचालित होने लगी. पाठशाला के प्रधान अध्यापक पं. गोविंद प्रसाद सिलाकारी ने 26 एकड़ जमीन खरीदकर ब्रह्मचर्य आश्रम शुरू किया, तब पाठशाला चकराघाट में ही लगती थी. लेकिन सन 1961 में आश्रम में पहुंच गई. इसके बाद स्थानीय समाजसेवी और राजनीति से जुड़े लोगों ने संस्कृत पाठशाला के लिए कई तरह सहयोग किया."

वर्तमान केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार जब सागर सांसद हुआ करते थे तब उन्होंने पाठशाला परिसर की बाउंड्रीवाल बनवाई. पूर्व विधायक सुधा जैन ने सड़क और वर्तमान विधायक शैलेन्द्र जैन ने 3 कमरे बनवाएं हैं.

Govind Prasad Silakari
गोविंद प्रसाद सिलाकारी (ETV Bharat)

वर्तमान में अपने संसाधनों से संचालित होता है महाविद्यालय

वर्तमान में संस्कृत महाविद्यालय अपने संसाधनों के जरिए ही महाविद्यालय का संचालन कर रहा है. महाविद्यालय की 26 एकड़ जमीन, इसके अलावा शहर में स्थित व्यावसायिक दुकान से होने वाली आमदनी से महाविद्यालय का संचालन किया जाता है. पहले सरकार द्वारा अनुदान में यहां के शिक्षकों को सरकारी शिक्षकों के समान वेतन दिया जाता था, लेकिन अनुदान बंद होने के बाद अब महाविद्यालय ही शिक्षकों का वेतन देता है. खेती की जमीन और व्यावसायिक परिसर से करीब 4 लाख आमदनी होती है. जिससे महाविद्यालय संचालन किया जाता है. महाविद्यालय के विद्यार्थियों के भोजन, आवास और पाठ्य पुस्तकों की व्यवस्था इसी आमदनी से होती है.

SANSKRIT COLLEGE VAIDIK TRADITION
संस्कृत के साथ वैदिक परंपरा की शिक्षा (ETV Bharat)

संस्कृत के साथ वैदिक विषयों का अध्ययन

महाविद्यालय समिति के अध्यक्ष के के सिलाकारी बताते हैं कि "ये महाविद्यालय शुरूआत से लेकर अब तक वैदिक परम्परा के अनुसार संचालित हो रहा है. यहां पर संस्कृत के अध्ययन के अलावा वैदिक, गणित, ज्योतिष, वास्तु और धार्मिक कर्मकांड की शिक्षा भी दी जाती है. यहां विद्यार्थियों को 6 वीं कक्षा से प्रवेश मिलता है और 12वीं महाविद्यालय संचालित होता है. यहां से उत्तीर्ण विद्यार्थी सेना में धर्म शिक्षक और स्कूल शिक्षा विभाग संस्कृत अध्यापक बन सकते हैं. इस महाविद्यालय से संस्कृत के कई विद्वान निकले हैं, जिन्होंने देश और दुनिया में संस्कृत का परचम लहराया है.

संस्कृत बचाने अनुदान जरूरी

महाविद्यालय के अध्यक्ष के के सिलाकारी का कहना है कि महाविद्यालय अच्छी तरह से संचालित हो रहा है, बच्चे अच्छी तरह से पढ़ रहे हैं लेकिन मुझे भविष्य की चिंता है. क्योकिं शिक्षकों को वेतन मिलना चाहिए. दिग्विजय सिंह सरकार के समय अनुदान से शिक्षकों को वेतन मिलता था लेकिन अब हमें खुद वेतन देना पड़ रहा है. इसलिए हम शिक्षकों को आज के समय के हिसाब से वेतन नहीं दे पा रहे हैं, अगर हमें अनुदान मिलने लगे, तो हमारा महाविद्यालय बढ़िया तरीके से संचालित होता रहेगा."

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