सागर: आगामी 12 जून को डॉ. हरीसिंह गौर यूनिवर्सिटी का 33वां दीक्षांत समारोह मनाया जाएगा. इस दीक्षांत समारोह में जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य को मानद डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा. इसको लेकर यूनिवर्सिटी में तैयारियां तेज हो गई हैं. कुलपति नीलिमा गुप्ता की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में आयोजन की तैयारियों को लेकर विस्तार से चर्चा की गई. इसके साथ ही दीक्षांत समारोह में अपनी डिग्रियां लेने आने वाले छात्र-छात्राओं के लिए ड्रेस कोड भी तय किया गया है.
जगद्गुरू रामभद्राचार्य को मिलेगी मानद डी लिट उपाधि
गौरतलब है कि सागर यूनिवर्सिटी ने स्वामी रामभद्राचार्य को मानद डी लिट उपाधि से सम्मानित करने के लिए राष्ट्रपति से अनुमति मांगी थी. अनुमति मिलने के बाद तय किया गया था कि इसी साल होने वाले दीक्षांत समारोह में रामभद्राचार्य को डी लिट उपाधि से सम्मानित किया जाएगा. यूनिवर्सिटी के मीडिया अधिकारी डाॅ. विवेक जायसवाल ने बताया कि "दीक्षांत समारोह के लिए 1225 स्टूडेंट ने रजिस्ट्रेशन कराया है. जिनमें पीजी के 426 यूजी के 482 और पीएचडी के 49 स्टूडेंट हैं. जिसमें से 957 स्टूडेंट्स ने दीक्षांत समारोह में पहुंचकर डिग्री लेने पर सहमति जताई है."
यूनिवर्सिटी ने तय किया है ड्रेस कोड
रजिस्टर्ड स्टूडेंट्स के लिए 9, 10 और 11 जून 2025 को दोपहर 11 बजे से शाम 4 बजे के बीच गौर प्रांगण में डिग्री, फाइल, पगड़ी और स्टॉल वितरित किए जाएंगे. यूनिवर्सिटी द्वारा तय ड्रेस कोड के तहत छात्र सफेद कुर्ता और पायजामा. वहीं, छात्राएं सफेद सलवार और कुर्ता पहनेंगी. इसकी व्यवस्था उन्हें खुद करनी होगी. विश्वविद्यालय की तरफ से स्टॉल और बुंदेली सतरंगी पगड़ी दी जाएगी.
रिहर्सल और बैठक व्यवस्था
दीक्षांत समारोह के मुख्य समन्वयक प्रो. नवीन कानगो ने बताया कि "10 और 11 जून दोपहर 3 बजे से गौर प्रांगण में दीक्षांत समारोह की रिहर्सल होगी. डिग्री हासिल करने वाले स्टूडेंट्स विश्वविद्यालय द्वारा दी गई बुंदेली सतरंगी पगड़ी और स्टॉल, रिहर्सल और दीक्षांत समारोह प्रांगण में प्रवेश के लिए प्रवेश पत्र, फोटो, आईडी दिखाकर ले सकते हैं. यूनिवर्सिटी ने रजिस्टर्ड पदक प्राप्तकर्ता, पीएचडी, पीजी, यूजी और रजिस्टर्ड स्टूडेंट्स के साथ आने वाले लोग भी गौर प्रांगण में बैठ सकेंगे."
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जन्म के 2 माह बाद चली गई थी आंखें
स्वामी रामभद्राचार्य एक प्रवचनकर्ता, शिक्षाविद और बहुभाषाविद के तौर पर जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्में स्वामी रामभद्राचार्य का वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है. महज 2 माह की उम्र में उनकी आंखों की रोशनी चली गयी थी. इसके बावजूद उन्होंने 22 भाषाएं सीखी और लगभग 80 ग्रंथों की रचना की है. जिनमें 4 महाकाव्य है, जिनमें 2 संस्कृत और 2 हिंदी में है. स्वामी रामभद्राचार्य ने एक विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है. भारत सरकार ने 2015 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया है. इसके अलावा अभी हाल ही में राष्ट्रपति के हाथों उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला है.