सागर (कपिल तिवारी): आज गर्मी के मौसम में ठंडा पानी पीने के लिए तरह-तरह के इंतजाम हैं. खासकर गर्मी के मौसम में लोग मटके या फ्रिज का पानी पीकर अपना गला तर करते हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा था, जब फ्रिज तो दूर बिजली तक का इंतजाम नहीं था. तब लोग मटके का पानी पीकर गर्मियों में प्यास बुझाते थे. लेकिन लोगों को समस्या तब खड़ी हो जाती थी, जब लोगों को कहीं सफर में जाना होता था या फिर खेती के कामकाज के लिए घर से बाहर होते थे.
तब ठंडे पानी के इंतजाम के लिए बुंदेलखंड के लोग तरह-तरह के उपाय करते थे. खासकर लौकी या तुंबा के फल को सुखाकर उसमें पानी भरते थे, जो सफर के दौरान भी ठंडा रहता था. सागर के अहमदनगर के पंडित दामोदर अग्निहोत्री ने अपने घर को बुंदेली संग्रहालय बनाकर रखा है. जहां गर्मी के मौसम में पानी के इंतजाम के लिए पुराने समय में उपयोग आने वाली चीजें आज भी सुरक्षित रखी हैं.
बुंदेलखंड में गर्मी में पानी ठंडा करने के इंतजाम
सागर के सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय में रखे पोतला के साथ लौकी और तुंबा के बर्तननुमा पात्र उस जमाने के हैं, जब गर्मी के मौसम में पानी ठंडा करने का इंतजाम सिर्फ मिट्टी के मटके होते थे. घर पर तो मिट्टी के मटके से ठंडा पानी आसानी से मिल जाता था, लेकिन सफर या खेती के कामकाज से खेत पर रहने वाले किसानों को गर्मी में ठंडे पानी का इंतजाम कठिन हो जाता था. तब बुंदेलखंड के ग्रामीण पोतला का उपयोग करते थे. ये एक तरह से मिट्टी की छोटी सी मटकी होती थी, जिसे आसानी से कहीं भी टांगा जा सकता था. इसलिए इसको बाहर ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होती थी.

लौकी और तुंबा फल के बर्तन
इसके अलावा बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों में लोग ठंडा पानी पीने के लिए लौकी और तुंबा फल का जमकर उपयोग करते थे. ग्रामीण गर्मी के पहले ही लौकी या तुंबा फल जो पककर काफी बडे़ हो जाते थे, उनको सुखाते थे और फिर उनके भीतर साफ सफाई करके पूरी तरह से खाली कर देते थे. फिर गरमी के मौसम में इनमें पानी भरकर रख देते थे, जो कुछ ही देर में ठंडा हो जाता था और काफी देर तक ठंडा रहता था. दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि, ''जिन बुजुर्गों ने इनका उपयोग किया है, वो बताते हैं कि ये पानी ठंडा तो होता ही था, साथ में गर्मी में होने वाले रोगों से भी लोगों को बचाता था.''

गर्मी में थर्मस का काम करता है पोतला
सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय के पंडित दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि, ''पहले अतीत में हमारे पूर्वज प्राकृतिक और हाथ से बने बर्तनों का गर्मी में उपयोग करते थे. उस दौर के ये बर्तन हमारे संग्रहालय में रखे हैं. पोतला मिट्टी से हाथ से बनाया जाता था, इसका उपयोग कृषि कार्य और यात्रा के दौरान किया जाता था. इसको किसान अपने साथ में लेकर खेत जाते थे, कहीं पेड पर टांग देते थे. इसका पानी बहुत ठंडा रहता था और इसका पानी बहुत ठंडा रहता था. बुंदेलखंड में कई जगह पोतले का उपयोग आज भी देखने मिलता है.''

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शरीर के लिए अमृत समान है तुंबे का पानी
इसके साथ लौकी और तुंबा इनके फलों को पकाकर उनको सुखाकर इसके अंदर पानी को ठंडा करने के लिए रखते हैं. इससे पानी काफी ठंडा रहता था. गांवों के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि सेहत के लिए ये बहुत फायदेमंद रहता था. खासकर लीवर के लिए ये अमृत माना जाता था. इससे लोग प्यास बुझाने के साथ-साथ बीमारियों से बचे रहते हैं. ऐसे में पात्रों को हमने संरक्षित किया है. इसके साथ-साथ ब्रिटिशकाल में हाथ से बनी सुराही हमारे पास है. जो 1930-35 की है, जिसका उपयोग लोग पानी ठंडा करने करते थे. इसके अलावा कैनवास के झागल भी उपयोग में लाते थे. जिनका प्रयोग करीब 20 साल पहले होता रहा है, लेकिन अब कम देखने मिलती है. इन झागलों का उपयोग ज्यादातर ट्रक और बस ड्राइवर करते थे. प्राकृतिक तरीके से झागल में पानी काफी ठंडा हो जाता है.