रीवा: हिन्दू मान्यता के अनुसार सोलह संस्कारों की अनिवार्यता मानी जाती है, जिसे इस संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी को पालन करना चाहिए. इनमें से एक संस्कार है यज्ञोपवीत का जिसे उपनयन या व्रतबंध और बरुआ भी कहा जाता है. जिसकी अनिवार्यता मुख्य तौर पर ब्राह्मण वर्ग के लोगों के लिए विशेष मानी जाती है. इसी तरह के यज्ञोपवीत संस्कार को बुधवार के दिन रीवा में भी पूरा किया गया. जहां क्षेत्र की एक सामाजिक संगठन ने ब्राह्मण बालकों के व्रतबंध संस्कार को पूरा करने का बीड़ा उठाया, जिसमें संगठन के द्वारा शहर के पवित्र स्थल लक्ष्मण बाग मंदिर संस्थान में 11 ब्राह्मण बटुकों के यज्ञोपवीत संस्कार को पूर्ण कराया गया.
ब्राह्मण समाज के लिए अनिवार्य माना जाता है व्रतबंध संस्कार
कहते हैं कोई भी व्यक्ति भले ही ब्राह्मण वर्ग में जन्म लेता हो परंतु वह व्रतबंध के उपरांत ही पूर्ण ब्राह्मण कहलाता है. जिसके कारण ब्राह्मण वर्ग के लोग इस संस्कार को बड़े ही विधि-विधान से पूरा करते हैं. परंतु आज के समय में कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास आर्थिक समस्या रहती है. वहीं, कइयों के घर का नियम ही होता है कि उनके यहां अकेले बालक का व्रतबंध संस्कार नहीं किया जाता, जिसके चलते वह समाज के लोगों से मदद प्राप्त कर इस संस्कार को पूरा करते हैं.
रीवा में समाजसेवी संगठन की अनोखी पहल
बताया जा रहा है कि इस संगठन के लोग हमेशा तरह-तरह के सामाजिक आयोजनों में अपनी हिस्सेदारी रखते हैं, जिससे वह कभी असहाय लोगों की आर्थिक मदद करने में अपने को आगे लाते हैं. कभी गरीब बच्चियों की शादी कार्यक्रम का आयोजन कर समाज को एक अच्छा संदेश देकर लोगों को प्रेरित करते हैं. वहीं, अब इस संगठन के द्वारा ब्राह्मण बालकों के व्रतबंध संस्कार को पूरा कर ब्राह्मण वर्ग के लोगों की खुशी में अपनी हिस्सेदारी निभाई गई है.

सोलह संस्कारों में से यज्ञोपवीत विशेष
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सोलह संस्कार में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि को विशेष तौर पर मान्यता दी गई है. परंतु इसमें भी यज्ञोपवीत को विशेष महत्व दिया जाता है; जिसे हम व्रतबंध या उपनयन या बरुआ संस्कार कहते हैं.

लक्ष्मण बाग में 11 बटुक ब्राह्मण बच्चों का उपनयन संस्कार
सामाजिक संगठन के सचिव कौशलेश मिश्रा ने बताया कि "लक्ष्मण बाग संस्थान में 11 ब्राह्मण बटुको का सामूहिक उपनयन संस्कार का आयोजन किया गया. यह सामाजिक आयोजन जिले में दूसरी बार आयोजित किया जा रहा है. इसके पूर्व पिछले वर्ष भी उपनयन संस्कार कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें 5 बटुक ब्राह्मण बच्चों का उपनयन संस्कार किया गया था.

इस कार्यक्रम को करने का मुख्य उद्देश्य था कि समाज मे जो भी आर्थिक रूप से कमजोर है या फिर किसी व्यस्तता या किसी परेशानी के कारण बच्चो का व्रतबंध संस्कार नहीं कर पा रहा है उनके लिए हमारी तरफ से निशुल्क व्रतबंध कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है."
16 संस्कारों मे से एक ब्रतबंध
कौशलेश मिश्रा ने बताया कि "बटुको के बरुआ रिशवाई से लेकर पूजा पाठ की समाग्री और कपड़ों के साथ ही अन्य समाग्री की व्यवस्था समिति की ओर से की जाती है. व्रतबंध संस्कार 16 संस्कारो में से एक है और ब्राम्हण समाज में इस संस्कार का बड़ा महत्त्व है. शादी की तरह ही इस कार्यक्रम का आयोजन होता है. यह संस्कार बच्चों को शिक्षा देने का संस्कार होता है. सभी 11 बच्चों को आज से जनेऊ पहनाकर ब्राह्मण समाज के धर्म और कर्म की बारे में प्रेरणा दी जाती है."
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6-7 घंटे तक चलता है कार्यक्रम
व्रतबंध की प्रक्रिया थोड़ी लंबी है, जिसकी वजह से ये कार्यक्रम 6-7 घंटे तक चलता है. सुबह सबसे पहले अठ बम्हना से कार्यक्रम का आयोजन शुरू होता है, जिसमे बटुक ब्राह्मण बच्चे 8 पूज्य ब्राह्मणों से भिक्षा मांगते है. इसके बाद सभी पूज्य ब्राह्मण भोजन करते हैं. इसके बाद बटुक ब्राह्मण का मुंडन संस्कार किया जाता है. उनके सिर पर शिखा रखी जाएगी.
इसके बाद आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित लोग भीखी देते हैं, जिसमें बटुकों को फूल पैसे सहित अन्य सामग्री भेंट की जाती है. जिसके बाद भेंट में मिली सामग्री को पूज्य ब्राह्मण और बटुक ब्राह्मण के बुआ को आपस में आधा-आधा बांट दिया जाता है. तत्पश्चात नहछू संस्कार होने के बाद बटुक तैयार होते हैं, फिर रूठे हुए बटुक बच्चों को मनाने के लिए उसके मामा आते हैं.