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झालावाड़ में वसंत दशहरे पर रावण दहन, करीब 200 साल की परंपरा बरकरार - VASANT DUSSEHRA OFF JHALAWAR

झालावाड़ में चैत्र नवरात्रा के बाद दशमी पर दशहरा मनाया गया. वसंत दशहरे पर रावण के पुतला दहन पर 25000 लोग मौजूद थे.

Ravan Dahan on Vasant Dussehra in Jhalawar
झालावाड़ में वसंत दशहरे पर रावण दहन (ETV Bharat Jhalawar)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : April 8, 2025 at 9:22 AM IST

2 Min Read

झालावाड़ : शहर में 200 साल पुरानी वर्ष में दो बार रावण दहन की परंपरा कायम है. इसी कड़ी में सोमवार रात राड़ी के बालाजी मंदिर में रावण दहन किया गया. इस दौरान मंदिर परिसर में करीब 25 हजार दर्शक मौजूद रहे. झालावाड़ में प्रत्येक नवरात्रा के बाद दशमी के दिन रावण दहन होता है. माना जाता है कि यह परंपरा महाराजा मदन सिंह ने 1800 में शुरू की थी. करीब 200 साल पुरानी परंपरा को वसंत ऋतु के दौरान बुराई पर अच्छाई का जश्न माना जाता है. इस शाही विरासत को आज भी यहां के लोग बरकरार रखे हैं. झालावाड़ शहर में शरद ऋतु के दौरान ​अ​श्विनी माह में नगर परिषद की ओर से रावण के पुतले का दहन किया जाता है जबकि चैत्र नवरात्र में इस परंपरा झालावाड़ का श्री महावीर सेवा दल निभाया रहा है.

श्री महावीर सेवा दल के अध्यक्ष संजय जैन ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चैत्र नवरात्र की समाप्ति पर दशहरे के दिन रावण दहन किया गया. इस वर्ष करीब 35 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया. इसे देखने हजारों शहर वासी मौजूद रहे. यह भव्य आयोजन बालाजी मंदिर मैदान में हुआ, जो स्थानीय लोगों के लिए ऐतिहासिक और आध्यात्मिक केंद्र है.

पढ़ें: जयपुर के दशहरा मैदान में हुआ रावण दहन, आतिशबाजी में दिखा नियाग्रा फॉल और स्टार वार्स जैसा नजारा -

शोभायात्रा निकाली : उन्होंने बताया कि पुतला दहन से पहले शहर के पंचमुखी बालाजी धाम से भगवान राम, लक्ष्मण तथा सीता की शोभायात्रा निकाली गई. इसमें कई पारंपरिक अखाड़े शामिल थे. कलाकारों ने कई हैरतअंगेज स्टंट दिखाए. शोभायात्रा के मंदिर परिसर में पहुंचने के बाद भव्य आतिशबाजी हुई, जहां झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने भगवान राम की आरती उतारी व रावण दहन का कार्यक्रम संपन्न किया गया.

जड़ें शाही परिवार से जुड़ी: प्राचीन काल से इसे वसंत दशहरे का रूप में मनाया जाता रहा है. इस परंपरा की जड़ें झालावाड़ की शाही परिवार से जुड़ी है, जिन्होंने अपनी वीरता और आध्यात्मिक भावनाओं को दर्शाने के लिए इस वसंत दशहरे की शुरुआत की थी. माना जाता था कि यहां के राजा मदन सिंह लोगों को शरद ऋतु में ही नहीं, वसंत ऋतु में भी बुराई पर अच्छाई की जीत का भगवान राम का पाठ याद दिलाना चाहते थे. इसके पीछे मंशा थी कि लोगों में वर्ष भर धार्मिकता का भाव बना रहे.

झालावाड़ : शहर में 200 साल पुरानी वर्ष में दो बार रावण दहन की परंपरा कायम है. इसी कड़ी में सोमवार रात राड़ी के बालाजी मंदिर में रावण दहन किया गया. इस दौरान मंदिर परिसर में करीब 25 हजार दर्शक मौजूद रहे. झालावाड़ में प्रत्येक नवरात्रा के बाद दशमी के दिन रावण दहन होता है. माना जाता है कि यह परंपरा महाराजा मदन सिंह ने 1800 में शुरू की थी. करीब 200 साल पुरानी परंपरा को वसंत ऋतु के दौरान बुराई पर अच्छाई का जश्न माना जाता है. इस शाही विरासत को आज भी यहां के लोग बरकरार रखे हैं. झालावाड़ शहर में शरद ऋतु के दौरान ​अ​श्विनी माह में नगर परिषद की ओर से रावण के पुतले का दहन किया जाता है जबकि चैत्र नवरात्र में इस परंपरा झालावाड़ का श्री महावीर सेवा दल निभाया रहा है.

श्री महावीर सेवा दल के अध्यक्ष संजय जैन ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चैत्र नवरात्र की समाप्ति पर दशहरे के दिन रावण दहन किया गया. इस वर्ष करीब 35 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया. इसे देखने हजारों शहर वासी मौजूद रहे. यह भव्य आयोजन बालाजी मंदिर मैदान में हुआ, जो स्थानीय लोगों के लिए ऐतिहासिक और आध्यात्मिक केंद्र है.

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शोभायात्रा निकाली : उन्होंने बताया कि पुतला दहन से पहले शहर के पंचमुखी बालाजी धाम से भगवान राम, लक्ष्मण तथा सीता की शोभायात्रा निकाली गई. इसमें कई पारंपरिक अखाड़े शामिल थे. कलाकारों ने कई हैरतअंगेज स्टंट दिखाए. शोभायात्रा के मंदिर परिसर में पहुंचने के बाद भव्य आतिशबाजी हुई, जहां झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने भगवान राम की आरती उतारी व रावण दहन का कार्यक्रम संपन्न किया गया.

जड़ें शाही परिवार से जुड़ी: प्राचीन काल से इसे वसंत दशहरे का रूप में मनाया जाता रहा है. इस परंपरा की जड़ें झालावाड़ की शाही परिवार से जुड़ी है, जिन्होंने अपनी वीरता और आध्यात्मिक भावनाओं को दर्शाने के लिए इस वसंत दशहरे की शुरुआत की थी. माना जाता था कि यहां के राजा मदन सिंह लोगों को शरद ऋतु में ही नहीं, वसंत ऋतु में भी बुराई पर अच्छाई की जीत का भगवान राम का पाठ याद दिलाना चाहते थे. इसके पीछे मंशा थी कि लोगों में वर्ष भर धार्मिकता का भाव बना रहे.

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