रतलाम: किसी दौर में रतलाम शहर की पहचान बावड़ियों के शहर के रूप में की जाती थी, लेकिन अब प्राचीन बावड़ियों का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है. अधिकांश बावड़िया सूख चुकी हैं. जिन्हें स्थानीय लोगों ने कचरा फेंकने की जगह बना दिया है. इन्हीं प्राचीन बावड़ियों को सहेजने के लिए रतलाम महापौर प्रहलाद पटेल, स्थानीय संस्थाएं और आम लोग सामने आए हैं. जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत रतलाम में 2 मुंह की बावड़ी और अमृत सागर तालाब पर श्रमदान कर बावड़ियों की सफाई की शुरुआत की गई है.
बदहाल बावड़ियों की ली गई सुध
रतलाम महापौर प्रहलाद पटेल ने बताया, "निजी और सामाजिक संस्थाओं के आव्हान पर इस अभियान की शुरुआत की गई है, जिसमें शहर की प्राचीन बावड़ियों और जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने की पहल की गई है. रविवार को लोगों ने श्रमदान कर बावड़ियों की सफाई की शुरुआत की है. हम लोगों को अधिक से अधिक संख्या में इस अभियान से जुड़ने और शहर को साफ स्वच्छ और जल स्रोतों को कचरा मुक्त बनाने का संकल्प दिलवा रहे हैं." इस अभियान में रतलाम महापौर सहित विभिन्न संगठनों के लोग श्रमदान के लिए पहुंचे और शहर की प्राचीन धरोहर बावड़ियों और जल स्रोतों को सहेजने का संकल्प भी लिया.
बावड़ियों के अनोखे नाम
शहर की पहचान केवल सेव, सोना और साड़ी से ही नहीं बल्कि यहां की प्राचीन बावड़ियों से भी है. राजशाही के दौर में इन बावड़ियों का अलग-अलग समय पर निर्माण करवाया गया, जिनके नाम अपने आप में यूनिक हैं. रतलाम में 2 मुंह की बावड़ी, लाल बावड़ी, केर वाली बावड़ी, थाने वाली बावड़ी, यति जी की बावड़ी , बोयरा बावड़ी, रुण्डी की बावड़ी और डॉक्टर की बावड़ी जैसे यूनिक नाम वाली करीब 2 दर्जन बावड़िया हैं.
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फिर लौटेगी जल स्रोतों की रौनक
रतलाम शहर में एक बार फिर जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों ने शहर की प्राचीन विरासत इन बावड़ियों को पुनर्जीवित और कचरा मुक्त करने का प्रयास शुरू किया है, जिससे एक बार फिर शहर की प्यास बुझाने वाले इन प्राचीन जल स्रोतों की रौनक लौट सकेगी.