ETV Bharat / state

रमजान में जकात और फितरा दान करना क्यों है महत्वपूर्ण, किन लोगों को दिया जा सकता है? - IMPORTANCE ZAKAT AND FITRA IN ISLAM

इस्लाम में रमजान के महीने में जकात और फितरा निकालने का महत्व और किन लोगों को दान करना जरूरी है? जानिए मुफ्ती शाकिर से.

IMPORTANCE ZAKAT AND FITRA IN ISLAM
इस्लाम में फितरा और जकात का महत्व क्या है. (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : March 28, 2025 at 5:49 PM IST

3 Min Read

राजगढ़: रमजान के महीने का दुनियाभर के मुसलमानों को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस महीने में रोजा-नमाज और कुरान की खूब तिलावत कर मगफिरत की दुआएं मांगते हैं. इसके साथ ही रमजान में जकात और फितरा देने की भी बड़ी अहमियत है. जोकि इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. जकात और फितरा को कैसे देना है और इसका इस्लाम में क्या महत्व है, साथ ही इसको गरीबों में बांटने की प्रक्रिया को लेकर मुफ्ती शाकिर फलाही ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

क्यों दिया जाता है जकात?

जकात अदा करना इस्लाम में बुनियादी इबादतों में से एक है. यह उन मुसलमानों पर फर्ज है जो निसाब के मुताबिक मालदार हों. फितरा एक खास किस्म का सदका है. जो रमजान के रोजों की तकमील और गरीबों की मदद के लिए ईद से पहले अदा किया जाता है. इसे "सदका-ए-फित्र" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह रोजेदारों की गलतियों का कफ्फारा भी बनता है.

किस पर वाजिब है फितरा अदा करना?

फितरा उन मुसलमानों पर वाजिब है जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा रुपए मौजूद हैं. उस रुपए की इतनी वैल्यू हो कि 612.36 ग्राम चांदी खरीदा जा सकता है. साथ ही फिरता उन मुसलमानों पर भी वाजिब है जो बहुत दौलतमंद नहीं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी की जरूरतें पूरी हो जाती हैं. यह अनाज के शक्ल में करीब 3 किलो 266 ग्राम दी जाती है. वर्तमान समय में इसके बराबर पैसे भी दिए जाते हैं.

माल के अलावा और किन चीजों पर निकता है जकात

वहीं, 612.36 ग्राम चांदी और 87.48 ग्राम सोना या फिर इसके बराबर पैसे जिन मुसमालों के पास है. उस पर जकात निकालना वाजिब है. मिसाल के तौर पर अगर किसी के पास पूरी साल खर्च करने के बाद रमजान में 100 रुपए बच गया है तो उसमें से 2.5 रुपए जकात निकालना वाजिब है. यह सोना, चांदी, नकद रुपए, बिजनेस का माल, मवेशी और किराए की आमदनी पर जकात निकालना जरूरी है.

कुरान में भी है जकात और फितरा का जिक्र

कुरान की आयत (सूरह अत-तौबा 9:60) में जकात और फितरा का जिक्र है. इसके अनुसार, जकात के रुपयों के हकदार लोगों पर बात की गई है. जैसे गरीब, मिस्कीन, गुलाम बनाए गए लोगों की आजादी के लिए और कर्जदार का कर्ज अदा करना शामिल है. हालांकि, जकात और फितरे के रुपए पर सबसे पहला अधिकारी अपने रिश्तेदारों का है. जो जरूरतमंदों, गरीब और मिशकीन है.

मुफ्ती शाकिर ने बताए इसके फायदे

राजगढ़ मदीना मस्जिद के इमाम मुफ्ती शाकिर ने कहा, "जकात और फितरा सिर्फ एक इबादत ही नहीं, बल्कि समाज को मजबूत करने का जरिया है. जो इंसान इसे अदा करता है, वह खुदा की रहमत और बरकत पाता है. इसे जो टालता है वह दुनिया और आखिरत दोनों में नुकसान उठाता है."

मुफ्ती शाकिर फलाही के मुताबिक, जकात और फितरा की राशि पर सबसे पहले समाज के उन जरूरतमंद गरीबों और रिश्तेदारों का हक है जो अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं. ईद की नमाज से पहले जकात और फितरे की राशि गरीबों तक पहुंचाने का मकसद है कि सभी लोग सही से ईद का त्योहार मना सकें.

राजगढ़: रमजान के महीने का दुनियाभर के मुसलमानों को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस महीने में रोजा-नमाज और कुरान की खूब तिलावत कर मगफिरत की दुआएं मांगते हैं. इसके साथ ही रमजान में जकात और फितरा देने की भी बड़ी अहमियत है. जोकि इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. जकात और फितरा को कैसे देना है और इसका इस्लाम में क्या महत्व है, साथ ही इसको गरीबों में बांटने की प्रक्रिया को लेकर मुफ्ती शाकिर फलाही ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

क्यों दिया जाता है जकात?

जकात अदा करना इस्लाम में बुनियादी इबादतों में से एक है. यह उन मुसलमानों पर फर्ज है जो निसाब के मुताबिक मालदार हों. फितरा एक खास किस्म का सदका है. जो रमजान के रोजों की तकमील और गरीबों की मदद के लिए ईद से पहले अदा किया जाता है. इसे "सदका-ए-फित्र" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह रोजेदारों की गलतियों का कफ्फारा भी बनता है.

किस पर वाजिब है फितरा अदा करना?

फितरा उन मुसलमानों पर वाजिब है जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा रुपए मौजूद हैं. उस रुपए की इतनी वैल्यू हो कि 612.36 ग्राम चांदी खरीदा जा सकता है. साथ ही फिरता उन मुसलमानों पर भी वाजिब है जो बहुत दौलतमंद नहीं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी की जरूरतें पूरी हो जाती हैं. यह अनाज के शक्ल में करीब 3 किलो 266 ग्राम दी जाती है. वर्तमान समय में इसके बराबर पैसे भी दिए जाते हैं.

माल के अलावा और किन चीजों पर निकता है जकात

वहीं, 612.36 ग्राम चांदी और 87.48 ग्राम सोना या फिर इसके बराबर पैसे जिन मुसमालों के पास है. उस पर जकात निकालना वाजिब है. मिसाल के तौर पर अगर किसी के पास पूरी साल खर्च करने के बाद रमजान में 100 रुपए बच गया है तो उसमें से 2.5 रुपए जकात निकालना वाजिब है. यह सोना, चांदी, नकद रुपए, बिजनेस का माल, मवेशी और किराए की आमदनी पर जकात निकालना जरूरी है.

कुरान में भी है जकात और फितरा का जिक्र

कुरान की आयत (सूरह अत-तौबा 9:60) में जकात और फितरा का जिक्र है. इसके अनुसार, जकात के रुपयों के हकदार लोगों पर बात की गई है. जैसे गरीब, मिस्कीन, गुलाम बनाए गए लोगों की आजादी के लिए और कर्जदार का कर्ज अदा करना शामिल है. हालांकि, जकात और फितरे के रुपए पर सबसे पहला अधिकारी अपने रिश्तेदारों का है. जो जरूरतमंदों, गरीब और मिशकीन है.

मुफ्ती शाकिर ने बताए इसके फायदे

राजगढ़ मदीना मस्जिद के इमाम मुफ्ती शाकिर ने कहा, "जकात और फितरा सिर्फ एक इबादत ही नहीं, बल्कि समाज को मजबूत करने का जरिया है. जो इंसान इसे अदा करता है, वह खुदा की रहमत और बरकत पाता है. इसे जो टालता है वह दुनिया और आखिरत दोनों में नुकसान उठाता है."

मुफ्ती शाकिर फलाही के मुताबिक, जकात और फितरा की राशि पर सबसे पहले समाज के उन जरूरतमंद गरीबों और रिश्तेदारों का हक है जो अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं. ईद की नमाज से पहले जकात और फितरे की राशि गरीबों तक पहुंचाने का मकसद है कि सभी लोग सही से ईद का त्योहार मना सकें.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.