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हाईकोर्ट का आदेश: अकेले निजी व्यक्ति के खिलाफ नहीं चलाया जा सकता धारा 7ए का मामला - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा लोक सेवक की संलिप्तता के बिना भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 7ए के तहत निजी व्यक्ति पर मामला नहीं चलाया जा सकता.

राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : April 16, 2025 at 1:49 PM IST

3 Min Read

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7ए के तहत किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ तब तक मामला नहीं चलाया जा सकता, जब तक उस मामले में किसी लोक सेवक की संलिप्तता या सह आरोपी की भूमिका ना हो. इसके साथ ही अदालत ने मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ एसीबी कोर्ट, जयपुर में लंबित आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. जस्टिस गणेश राम मीणा की एकलपीठ ने यह आदेश प्रमोद शर्मा की आपराधिक याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एसीबी प्रकरण में तत्कालीन भरतपुर रेंज डीआईजी लक्ष्मण गौड़ की संलिप्तता से इनकार करते हुए एफआर पेश कर चुकी है. वहीं, प्रकरण में याचिकाकर्ता निजी व्यक्ति के अलावा अन्य कोई लोक सेवक शामिल नहीं है. ऐसे में केवल एक निजी व्यक्ति के खिलाफ धारा 7ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

इसे भी पढ़ें- 17 साल पुराने चश्मा वितरण घोटाले में कार्रवाई, 9 आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश

याचिका में अधिवक्ता राजेष महर्षि ने अदालत को बताया कि कोटा के उद्योग नगर थानाधिकारी चंद्रप्रकाश ने 23 जून, 2020 को एसीबी में रिपोर्ट दी थी. रिपोर्ट में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने उसकी पदोन्नति सुनिश्चित करने और उसे अपने चहेतों में शामिल करने के लिए डीआईजी लक्ष्मण गौड़ के नाम पर दस लाख रुपए मांगे गए थे. एसीबी ने रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए 24 जून को याचिकाकर्ता को ट्रेप किया और उसकी कार से पांच लाख रुपए बरामद किए. वहीं, बाद में एसीबी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7ए के तहत आरोप पत्र पेश करते हुए डीआईजी लक्ष्मण गौड़ के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत जांच लंबित रखी. याचिका में कहा गया कि एसीबी ने बाद में मामले में लक्ष्मण गौड़ की भूमिका से इनकार करते हुए उन्हें क्लीन चिट देते हुए एफआर पेश कर दी.

याचिकाकर्ता की ओर से उसके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्रवाई को चुनौती देते हुए कहा गया कि प्रकरण में लोक सेवक को क्लीन चिट दी जा चुकी है. वहीं, उसके सिवाय अन्य लोक सेवक मामले में शामिल नहीं है. ऐसे में किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ धारा 7ए के तहत आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती, जिसका विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि एसीबी ने जांच के बाद याचिकाकर्ता को दोषी मानकर आरोप पत्र पेश किया था. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है.

इसे भी पढ़ें- राजस्थान हाईकोर्ट: एसीबी केस में पूर्व आईएएस पहाड़िया के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई रद्द

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7ए के तहत किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ तब तक मामला नहीं चलाया जा सकता, जब तक उस मामले में किसी लोक सेवक की संलिप्तता या सह आरोपी की भूमिका ना हो. इसके साथ ही अदालत ने मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ एसीबी कोर्ट, जयपुर में लंबित आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. जस्टिस गणेश राम मीणा की एकलपीठ ने यह आदेश प्रमोद शर्मा की आपराधिक याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एसीबी प्रकरण में तत्कालीन भरतपुर रेंज डीआईजी लक्ष्मण गौड़ की संलिप्तता से इनकार करते हुए एफआर पेश कर चुकी है. वहीं, प्रकरण में याचिकाकर्ता निजी व्यक्ति के अलावा अन्य कोई लोक सेवक शामिल नहीं है. ऐसे में केवल एक निजी व्यक्ति के खिलाफ धारा 7ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

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याचिका में अधिवक्ता राजेष महर्षि ने अदालत को बताया कि कोटा के उद्योग नगर थानाधिकारी चंद्रप्रकाश ने 23 जून, 2020 को एसीबी में रिपोर्ट दी थी. रिपोर्ट में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने उसकी पदोन्नति सुनिश्चित करने और उसे अपने चहेतों में शामिल करने के लिए डीआईजी लक्ष्मण गौड़ के नाम पर दस लाख रुपए मांगे गए थे. एसीबी ने रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए 24 जून को याचिकाकर्ता को ट्रेप किया और उसकी कार से पांच लाख रुपए बरामद किए. वहीं, बाद में एसीबी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7ए के तहत आरोप पत्र पेश करते हुए डीआईजी लक्ष्मण गौड़ के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत जांच लंबित रखी. याचिका में कहा गया कि एसीबी ने बाद में मामले में लक्ष्मण गौड़ की भूमिका से इनकार करते हुए उन्हें क्लीन चिट देते हुए एफआर पेश कर दी.

याचिकाकर्ता की ओर से उसके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्रवाई को चुनौती देते हुए कहा गया कि प्रकरण में लोक सेवक को क्लीन चिट दी जा चुकी है. वहीं, उसके सिवाय अन्य लोक सेवक मामले में शामिल नहीं है. ऐसे में किसी निजी व्यक्ति के खिलाफ धारा 7ए के तहत आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती, जिसका विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि एसीबी ने जांच के बाद याचिकाकर्ता को दोषी मानकर आरोप पत्र पेश किया था. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है.

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