रायसेन: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की ग्रामीण महिलाओं की रूचि अब अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होती दिखाई दे रही है. गरीब तबके से आने वाली ये ग्रामीण महिलाएं मोटे अनाज से तरह-तरह के स्वादिष्ट लड्डू बना रही है. जिनका स्वाद तो अनोखा है ही. साथ ही ये बाजार में मिलने वाले पोषण विहीन मिठाइ कई गुणा गुणकरी है. जो कुपोषण का अंत करने के लिए किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है.
जब देश में हुई थी खाद्यान की कमी
साल 1965 भारत में खाद्यान का संकट अपने चरम पर था. देश दूसरे देशों के अनाज के आयात पर निर्भर था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने सरकारी आवास पर खेती की और जय जवान जय किसान का नारे के साथ देश के किसानों को खेत में जाने का आव्हान किया था. जिससे देश आत्मनिर्भर बन सके. फिर हरित क्रांति ने देश की तस्वीर बदली. भारत खाद्यान्न उत्पादन में अग्रणी हो गया और अन्य देशों की जरूरत को भी पूरा करने लगा.
देश में मिलेट्स को बढ़ावा
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में फैल रहे कुपोषण पर प्रहार करने के लिए देश में उत्पन्न होने वाले जरुरी पोषक तत्वों से युक्त मिलेट्स को प्रोत्साहित किया. मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कंगकी, कोदो, कुटकी जैसे अनाज को मिलेट्स कहा जाता है. इसमें शरीर की जरूरत पूरा करने के पर्याप्त पोषक तत्व और खनिज होते हैं. प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स की मात्रा अधिक होती है. ये अनाज बच्चों में कुपोषण और एनीमिया को कम करने में मदद करते हैं. साथ ही मोटे अनाज को कम बारिश और गर्म जलवायु में उगाया जा सकता है.
रायसेन में महिलाओं ने मिलेट्स से बनाए मिठाई
ये फसलें सूखा और बाढ़ के प्रति भी अधिक सहनशील होती हैं. जो देश के पर्यावरण के अनुकूल है, पर इसके पोषक तत्वों और स्वाद की जानकारी शायद हर किसी को नहीं है. मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के एक छोटे से गांव रतनपुर की कुछ महिलाएं मोटे अनाजों से कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाने के नुख्से सीख रही हैं. जिनका स्वाद बाजार में मिलने वाली महंगी मिठाइयों से ज्यादा और पोषण युक्त होता है. इन महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे मोटे अनाज के लड्डू कुपोषण के खिलाफ जंग में किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है.
महिलाएं खुद तो इस तरह की रेसिपी को बनाना सीख रही हैं. साथ ही वह कह रही हैं कि अपने बच्चों को और आसपास की महिलाओं को भी इसके बारे में बताएंगी. ताकि वह कम खर्चे में इन्हें बना सके और कुपोषण के खिलाफ चल रही जंग में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ सकें.
क्या बोलीं ग्रामीण महिलाएं
पोषण के लड्डुओं के प्रति जागरूक हो रही ग्रामीण महिला गरिमा का कहना है कि "पहले उन्हें इस तरह के लड्डू बनाना नहीं आता था. वह चावल और बेसन के लड्डू बनाया करती थी. जब दीदी ने हमें यहां बुलाया और लड्डू बनाना सिखाया, तो हमें यह काफी आसान लगा. अब हम ज्वार बाजरा कोदू के लड्डू बनाते हैं. जो स्वाद में तो बहुत अच्छे हैं. साथ ही इनमें जरूरी पोषक तत्व हैं. अगर हमें यह पहले बनाना आता, तो हमारे गांव की स्थिति पहले से अच्छी होती.

गर्भवती महिलाओं को कर रहीं जागरुक
ग्रामीण महिलाओं को पोषण आहार के प्रति जागरूक करने वाली अंजू दीदी बताती हैं कि "वह पिछले 4-5 सालों से ये काम कर रही है. गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार के प्रति जागरूक करना उनका लक्ष्य है. जो महिलाएं मोटे अनाज का सेवन नहीं करती थीं. वह भी इस तरह बनाए गए मोटे अनाज के खाद्य पदार्थो का सेवन कर पर्याप्त पोषण आहार ले सकती हैं."
महिलाओं के बीच पोषण आहार की जागरूकता को लेकर जब महिला बाल विकास अधिकारी बृजेश जैन से बात की गई तो "उन्होंने बताया है कि अंजू जिस तरह का काम कर रही है. वह अपने आप में एक अच्छा काम है, जो महिलाएं स्वाद न होने के कारण मोटे अनाज और पोषण आहार का सेवन नहीं किया करती थीं. इस तरह से बनाई गई रेसिपियों और खाद्य पकवानों का इस्तेमाल कर वह पर्याप्त मात्रा में पोषण आहर ले रहे हैं. एक समय ऐसा था, जब यहां पर कुपोषित बच्चों की संख्या 100 के आसपास थी, पर अंजू के इस तरह के प्रयासों से यह संख्या घटकर अब महज चार रह गई है."
भारत में कुपोषण की स्थिति
आजादी के बाद से ही भारत में कुपोषण की स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी नहीं रही है. खासकर गर्भवती महिलाएं और नवजात बच्चों में कुपोषण की गंभीर स्थिति देखने को मिलती है. पर्याप्त पोषक तत्वों के न मिलने के कारण गर्भावस्था में महिलाओं को जहां खून की कमी के कारण एनीमिया जैसे रोगों का सामना करना पड़ता है, तो वहीं जन्म के बाद बच्चों में पोषक तत्वों के न मिलने के कारण कुपोषण के चलते बच्चों का वजन भी काम रहता है. बच्चों के हाथ पर जहां काफी पतले दिखाई देते हैं, तो उनका पेट बाहर निकला हुआ रहता है.

क्या है मोटा अनाज और इसमें क्या है पोषक तत्व
भारत में उत्पन्न होने वाले मोटे अनाज की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, सावा, जैसे मोटे अनाज आते हैं. जिसमे प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स की मात्रा अधिक होती है. ये अनाज बच्चों और महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया को कम करने में मदद करते हैं.
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2023 मोटा अनाज अन्न श्री घोषित
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था. 2022-23 के दौरान भारत में मोटे अनाज जिसे श्रीअन्न के नाम से भी जाना जाता है. उसका कुल उत्पादन 17.32 मिलियन टन रहा था. अब देश के साथ राज्यों की सरकारें भी इसको बढ़ावा देने के लिए मुहिम चला रही हैं. जिससे कि इसका उत्पादन बढ़ाया जा सके.