रायसेन: मध्य प्रदेश के रायसेन में स्थित विश्व प्रसिद्ध सांची बौद्ध स्तूपों पर बुद्ध पूर्णिमा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन विश्व भर से बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग सांची पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं के लिए यहां पर विशेष इंतजाम किए गए हैं. जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग ने आयोजन से जुड़ी तमाम तैयारियां पूर्ण कर ली हैं. सुरक्षा व्यवस्था और साफ सफाई के साथ पेयजल व्यवस्था को भी प्रशासन ने सुनिश्चित किया है.
बुद्ध पूर्णिमा पर हुआ था गौतम बुद्ध का जन्म
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन गौतम बुद्ध की जयंती मनाई जाती है. इसलिए इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस दिन स्नान दान के साथ महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार प्रसार का भी बहुत महत्व होता है. जिसे बौद्ध धर्म के अनुयाई एक दूसरे के साथ साझा करते हैं. साथ ही पवित्र स्थलों पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है.
सम्राट अशोक ने बनाया था सांची बौद्ध स्तूप
रायसेन जिले के सांची में स्थित महा स्तूपों में से एक सांची बौद्ध स्तूप को तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने बनवाया था. यह स्तूप माल्टा एक अर्ध गोलाकार गुंबद के रूप में विराजमान है, जो बौद्ध धर्म के प्रतीक चिन्ह और उपदेशों को दर्शाता है. इस बौध स्तूप में कई बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई कलाकृतियों को उकेरा गया है. ज्यादातर पर्यटकों में श्रीलंका, म्यांमार, जापान और भूटान जैसे देशों से बौद्ध भिक्षुओं और श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद रहती है, जो हर वर्ष यहां आकर अपने बौद्ध धर्म से जुड़े हुए संवाद को साझा करते हैं.
सुंदर तोरण द्वार सजा है सांची स्तूप
सांची स्तूप बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है. इस स्तूप में महात्मा गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत्र और महामोग्गलायन के अस्थि कलश विराजमान हैं. प्रारंभ में इस स्तूप को केवल ईंटों से तैयार किया गया था जिसे बाद में सांगू और सातवाहन काल में पत्थरों और अद्भुत नक्काशी कर स्तूप के चारों ओर तोरण द्वारों से सजाया गया.
यह तोरण द्वार न केवल वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत सुंदर है बल्कि इसमें बुद्ध के जीवन की घटनाओं को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है. जिसमें ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण जैसे प्रसंग को कलात्मक शैली में उकेरा गया है. बुद्ध प्रतीक जैसे अशोक चक्र, हाथी घोड़ा और वट वृक्ष के माध्यम से बुद्ध की उपस्थिति को दर्शाया गया है, क्योंकि उस काल में बुद्ध की प्रतिमा का निर्माण प्रचलन में नहीं था.
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यूनेस्को की विश्व धरोहर है सांची
1989 में सांची को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल गया था, जो इसके वैश्विक महत्व को दर्शाता है. विश्व भर के पर्यटक इतिहासकार और कला प्रेमियों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है. सांची के स्तूप परिसर में स्थित संग्रहालय में प्राचीन बौद्ध मूर्तियां मुद्राएं अभिलेख और अन्य ऐतिहासिक अवशेष संरक्षित हैं, जो भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत की गवाही देते हैं. यही कारण है कि विश्व भर के इतिहास प्रेमियों के लिए सांची का स्तूप किसी खजाने से काम नहीं है. साथ ही यहां आने वाले वास्तुकला प्रेमियों के लिए भी यह आकर्षण का एक केंद्र है. क्योंकि हजारों वर्ष बाद भी यह इमारत अपनी बुलंदी पर स्थिर है.