सराज: देवी देवताओं की धरती कही जाने वाली सराज घाटी में कई ऐतिहासिक और चमत्कारिक धार्मिक स्थल मौजूद हैं. घाटी की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान माता शिकारी देवी मंदिर इन धार्मिक स्थलों में से एक हैं. यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. बर्फबारी के बीच मंदिर का नजारा बेहद खूबसूरत दिखता है. यहां पर कई फीट तक बर्फबारी होती है. मंदिर तक पहुंचने के लिए पगडंडियों और दर्रों से गुजरना पड़ता है. ये दर्रे और रास्तों पर यात्रा करने का अनुभव रोहतांग जैसा ही है.
इस बार भी बर्फबारी के चलते नवंबर माह में मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे. दिसंबर में बर्फबारी के बाद रास्ते बंद होने के कारण यहां लोगों की आवाजाही थम गई थी. पिछले दो माह से रायगढ़-शिकारी सड़क बर्फ के कारण बंद पड़ी है. यहां कई फीट बर्फ जमी हुई है, लेकिन अब लोक निर्माण विभाग ने रास्तों से बर्फ हटाना शुरू कर दिया है, ताकि श्रद्धालु नवरात्रों में मंदिर के दर्शन कर सकें. लोक निर्माण विभाग ने एक जेसीबी एक स्नो कटर की सहायता से रायगढ़-शिकारी देवी सड़क सहित अन्य रास्तों से बर्फ हटाने का काम शुरू कर दिया है. मार्ग के बहाल होते ही लोग गाड़ी के माध्यम से शिकारी देवी के दर्शनों के लिए पहुंच सकते हैं.

कार्यकारी एसडीएम थुनाग लक्ष्मण कनैत ने कहा कि, 'कल तक शिकारी देवी तक सड़क मार्ग से बर्फ को हटाकर इसे बहाल कर दिया जाएगा. पहले नवरात्रे से मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे. मंदिर आने वाले श्रद्धालु अपने साथ गर्म कपड़े जरूर रखें, क्योंकि अभी भी कई स्थानों पर बर्फ जमने के कारण काफी ठंड है. इसके साथ मंदिर के आस-पास प्लास्टिक की बोतल समेत कूड़ा कर्कट ने फेंके और साफ सफाई का ध्यान रखें.'

इस बार मनमोहक है माता शिकारी का सफर
बर्फबारी का सीजन खत्म होते ही शिकारी देवी का सफर मनमोहक हो जाता है. यहां अभी भी आठ से 10 फीट बर्फ जमी हुई है. लोक निर्माण विभाग के एक्सन रोशन ठाकुर ने बताया कि, 'जब तक बर्फ पूरी तरह पिघल नहीं जाती तब तक रायगढ़ से शिकारी माता सड़क का सफर बहुत मनमोहन रहेगा, क्योंकि कई जगहों पर सड़क के दोनों ओर बर्फ की चार से छह फीट की ऊंची-ऊंची दीवारें बनी नजर आएंगी जो लोगों को रोहतांग की याद दिलाती नजर आएंगी.'

मई जून में श्रद्धालुओं की संख्या में होती है बढ़ोतरी
जिला मंडी के तहत आने वाली सराज घाटी में स्थित शिकारी देवी माता का मंदिर समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. बर्फबारी होने के कारण सर्दियों में यह मंदिर नवम्बर से 3 से 4 माह तक श्रद्धालुओं के लिए बंद रहता है, जिसके बाद मार्च माह के अंत या अप्रैल के पहले सप्ताह में इस मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं. अप्रैल, मई और जून में श्रद्धालुओं के आने की संख्या में ज्यादा बढ़ोतरी होती है.

मूर्ति पर नहीं जमती बर्फ
शिकारी शिखर की पहाड़ियों पर हर साल सर्दियों में कई फीट तक स्नोफॉल होता है. मंदिर के प्रांगण में भी कई फीट तक बर्फ गिर जाती है, लेकिन छत न होने के बाद भी माता की मूर्ति पर ना बर्फ टिकती है और ना ही जमती है. मंदिर कमेटी के सदस्य धनीराम ठाकुर ने बताया कि, 'कई कोशिशों के बाद भी इस रहस्यमय शिकारी देवी मंदिर की छत नहीं बन पाई. शिकारी माता खुले स्थान पर आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती है. कई कोशिशें करने के बाद माता ने मंदिर पर छत बनाने की अनुमति नहीं दी. माता की अनुमति के बिना यहां एक पत्थर भी नहीं लगाया जा सकता है. बारिश, आंधी, तूफान और बर्फबारी में भी शिकारी माता खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती हैं. वीरभद्र सिंह और मंदिर कमेटी ने यहां पद छत डालने का काफी प्रयास किया लेकिन माता ने इसकी इजाजत नहीं दी.'

जन्नत से कम नहीं है ये जगह
माता शिकारी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आजकल किसी जन्नत से कम नहीं है. मन्नत पूरी होने के साथ-साथ यहां पहुंचने पर भक्तों को ठंड का एहसास भी होता है. मन्नत पूरी होने पर लोग यहां चांदी से बनी प्रतिमा यहां चढ़ाते हैं.
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