धमतरी:आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी कला और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं.एक वक्त था जब हम बड़े शौक से अपने यहां होने वाले धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गर्व के साथ शामिल होते, लोगों को भी बुलाते. भीड़ जुटाने के लिए लोगों को कभी निमंत्रण इस तरह के आयोजनों में नहीं दिया जाता. वक्त बदला और अब इस तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों की कमी होने लगी. साथ बैठकर रामायण और महाभारत के सीरियल भी अब हम नहीं देखते.
आपके शहर में रामायण मंडली: धमतरी में इन दिनों ऐसे ही कलाकारों की मंडली जुटी है जो चलित रामायण पेश कर लोगों की तालियां बटोर रही है. कर्नाटक के लोगों की ये नाट्य मंडली लोगों को द्वापर और त्रेतायुग के दर्शन इस आधुनिक युग में करा रही है. कलाकार के संवाद और उनकी अदाकारी हर किसी का मन मोह ले रही है.

कर्नाटक के कलाकार बस गए दुर्ग में: द्वापर और त्रेतायुग के नायकों का भेष धरकर ये कलाकार गली गली और दुकान दुकान जाकर अपनी कला से लोगों का दिल जीत रहे हैं. ये कलाकार रावण, सूर्पनखा, चित्रगुप्त, श्री कृष्ण, भगवान हनुमान का रुप धरकर सड़कों पर निकल जाते हैं. पहली नजर में इनको देखने वाला भौचक्का रह जाता है.
चलित रामायण मंडली: चलित रामायण मंडली के कलाकार गोविंद निषाद ने बताया कि यह परंपरा उनके दादा परदादा के समय से चली आ रही है. पिछले 30 सालों से वो इस कला का प्रदर्शन लोगों के सामने करते आ रहे हैं.
सांस्कृतिक विरासत और महापुरुषों को भूल रहे लोग: चलित रामायण मंडली के कलाकार कृष्णा कहते हैं कि रामायण और महाभारत के जो महान किरदार हैं उनको लोग भूलते जा रहे हैं. फिल्मों में सभी की रुचि लगातार बढ़ती जा रही है. हम लोक कथाओं और लोक संगीत के जरिए सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की कोशिशों में जुटे हैं.
हम एक शहर से दूसरे शहर में जाकर आपना कार्यक्रम पेश करते हैं. 30 सालों से इस काम में पूरी लगन के साथ जुटा हूं. मेरे परिवार के लोग भी इस काम में जुटे हैं. अपनी कला के प्रदर्शन से हमें जो भी पैसा मिलता है उससे हमारा परिवार गुजर बसर करता है: गोविंद निषाद, कलाकार, चलित रामायण मंडली
रहने वाले तो हम मूल रुप से कर्नाटक के हैं लेकिन अब हम भिलाई में घर बनाकर रह रहे हैं: कृष्णा, कलाकार, चलित रामायण मंडली
हम अपनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं. विलुप्त होती इस परंपरा को ये कलाकार जीवित रखे हुए हैं. इन कलाकारों की बदौलत हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इन सांस्कृतिक विरासत से रुबरु करा रहे हैं: दुकानदार
कलाकारों को मिल रहा जनता का प्यार: बेशक ये कलाकार अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए कभी रावण तो कभी सूर्पनखा बनकर गलियों में घूम रहे हैं. लेकिन सच ये है कि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक चेतना की जड़ों से कटते जा रहे हैं. हमें इन कलाकारों को धन्यवाद देना चाहिए जो हमें उस महान युग की गाथा सुना रहे हैं.