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उत्तराखंड-यूपी परिसंपत्ति विवाद: 24 साल बाद भी नहीं सुलझा मामला, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी या कुछ और? - UP UTTARAKHAND ASSET DISPUTE

उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग हुए 24 साल हो गय. लेकिन आज तक दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्ति विवाद अभी तक बना हुआ है.

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24 साल बाद भी नहीं सुलझा मामला उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्ति विवाद. (FILE PHOTO- उत्तराखंड शासन)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : April 14, 2025 at 6:32 PM IST

8 Min Read

देहरादून (किरणकांत शर्मा): उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्ति विवाद 24 साल बाद भी सुलझा नहीं है. हर दो-चार महीने के बाद होने वाली बैठक और उसके बाद आने वाले बयान लगभग एक समान ही होते हैं. उत्तराखंड में कितनी सरकारी आईं और कितनी चली गईं लेकिन परिसंपत्ति विवाद आज भी जस का तस बना हुआ है. आलम ये है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में 9 सालों से भाजपा की सरकार होने के बाद भी ये मसला अबतक हल नहीं हुआ. परिसंपत्ति का बंटवारा न होने की वजह से उत्तराखंड को न केवल आर्थिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. ये चर्चा एक बार फिर से इसलिए हो रही है क्योंकि फिर से सरकार ने ही परिसंपत्तियों का जिक्र छेड़ा है.

कौन करेगा ये विवाद खत्म: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पदभार ग्रहण करने के बाद एक बार लखनऊ में परिसंपत्ति की बैठक में शामिल होकर आ चुके हैं. हालांकि, बैठक के बाद यह कहा गया था कि 24 सालों में जो काम नहीं हुआ, वो अब जाकर हुआ है. यानी सरकार ने 18 नवंबर 2021 को हुई बैठक के बाद ये कहा था कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों की बैठक में 21 साल पुराने इस विवाद को निपटा लिया गया है. बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय भी हुए लेकिन 4 साल बीतने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं. इतना ही नहीं, उस दौरान परिसंपत्तियों के सर्वे के बाद बंटवारे की बात की गई थी. लेकिन आज तक ना तो सर्वे हुआ और न ही परिसंपत्तियों का बंटवारा.

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त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस का मामला सुलझा था. (FILE PHOTO- उत्तराखंड शासन)

मीटिंग पर मीटिंग, लेकिन फायदा कुछ खास नहीं: ऐसा नहीं है कि संपत्तियों को लेकर बैठक सिर्फ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल के दौरान ही की गई. बल्कि 6 अगस्त 2017 को भी इसी तरह की एक बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक के बाद भी यह निर्णय लिया गया था कि दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद निपटा लिया गया है. उस दौरान उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के नाम से हरिद्वार, देहरादून, श्रीनगर और आसपास के इलाकों में जो गेस्ट हाउस हैं, वो उत्तराखंड के होंगे. इतना ही नहीं, जिस जमीन पर हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है, उस जमीन को भी लेकर कई बातें की गई थीं. बैठक के बाद उस दौरान के उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने उत्तराखंड सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार का शुक्रिया अदा भी किया था.

साल 2017 के बाद आज तक सतपाल महाराज परिसंपत्ति विवाद बंटवारे को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं. हाल ही में फिर बयान दिया. उन्होंने कहा कि जल्द दोनों राज्यों की एक साथ बैठक आयोजित की जाएगी. बैठक में परिसंपत्ति विवाद का निपटारा हो जाएगा.

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दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्ति विवाद पर मंत्री सतपाल महाराज सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ चर्चा कर चुके हैं. (FILE PHOTO- उत्तराखंड शासन)

इसके अलावा त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान भी इस तरह की बैठक आयोजित की गई थी. लेकिन हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस के अलावा फिलहाल कोई बड़ा निर्णय उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार की तरफ से नहीं लिया गया.

सिंचाई विभाग की सबसे ज्यादा संपत्ति: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के परिसंपत्तियों के मामले को बेहद करीब से जानने वाले आदेश त्यागी कहते हैं कि राज्य बनने के बाद से आजतक केवल प्रयास ही चल रहा है.

यह मामला 9 नवंबर 2000 से आज तक लगातार चल रहा है. उत्तराखंड में जो भी सरकार आई, उसने प्रयास तो किया लेकिन प्रयास सिर्फ प्रयास ही बनकर रहे. ऊपर से उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत परिसंपत्तियों के बंटवारे में जो देरी हो रही है, वह अलग है.

उत्तराखंड में सबसे अधिक परिसंपत्तियां सिंचाई विभाग की है. इसमें लगभग 13 हजार हेक्टेयर जमीन और 2 हजार से अधिक बिल्डिंग, आवास और गेस्ट हाउस प्रदेश के नियंत्रण में नहीं है. इसमें नहर और बैराज भी शामिल हैं. अगर इन संपत्तियों का बंटवारा हो जाता है तो उत्तराखंड को आर्थिक और सामाजिक रूप से भी फायदा होगा.
- आदेश त्यागी, वरिष्ठ पत्रकार -

फिर मांगा मंत्री ने अधिकारियों से प्रस्ताव: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच जो प्रमुख संपत्तियां हैं उसमें, भीमगोडा बैराज, बनबसा का लोहिया हेड बैराज, कालागढ़ रामगंगा बैराज और टिहरी गंगा जैसी नदी पर बनी तमाम योजनाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार का हक है. कुंभ और कांवड़ मेले की भूमि भी उत्तर प्रदेश सरकार की है. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक जो संपत्ति उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश की है उसकी कीमत करीब 20 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक है.

हालांकि, एक बार फिर से सरकार ने परिसंपत्तियों का जिक्र छेड़ा है. कहा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच जो संपत्तियों का विवाद है, उसका दोबारा से प्रस्ताव तैयार करवाया जा रहा है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने अपने विभागों को निर्देश दिए हैं कि सभी के प्रस्ताव जल्द से जल्द तैयार किए जाएं. यानी 24 साल बाद भी राज्य सरकार प्रस्ताव और बैठकों में ही उलझी हुई है.

साल दर साल बीत रहे, नहीं हुआ फैसला: उत्तराखंड की राजनीति को समझने वाले जय सिंह रावत इस पूरे विवाद को लेकर विस्तार से बताते हैं. उनका कहना है कि राज्य सरकारों में जो भी मुख्यमंत्री आए, उन्होंने चुनाव के समय चुनावी फायदा लेने के लिए परिसंपत्ति विवाद निपटारे का आश्वासन दिया, लेकिन 24 साल बाद भी दोनों राज्यों के बीच मामले का निपटारा नहीं हो सका.

जबकि 9 साल से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. ऐसे में केंद्र सरकार को खुद हस्तक्षेप करके परिसंपत्ति विवाद को निपटाना चाहिए. उत्तराखंड में आज भी कई विद्युत परियोजना, शैक्षिक संस्थान उत्तर प्रदेश के हैं. वहीं उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच कई तरह की देनदारी है. परिसंपत्तियों के साथ-साथ दूसरे भी बंटवारे पेंडिंग में पड़े हुए हैं.

यह बात शायद किसी को समझ में ना आए, लेकिन अगर परिसंपत्तियों का बंटवारा हो जाता है तो उत्तराखंड को आर्थिक रूप से इसका फायदा मिलेगा. लेकिन इच्छाशक्ति की कमी के कारण आज तक यह नहीं हो पाया. उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 यह साफ कहता है कि जो संपत्ति जैसी है, जहां है, वैसी ही रहेगी. उत्तराखंड उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता जबकि उत्तराखंड में ही वह संपत्तियां मौजूद हैं. सर्वे और मूल्यांकन की बात हमेशा से होती रही है. यह सुनते हुए सालों बीत गए. लेकिन अभी तक इसका निर्णय किसी भी सरकार द्वारा नहीं लिया गया.
- जय सिंह रावत, राजनीतिक जानकार -

कांग्रेस भी ले रही है चुटकी: परिसंपत्तियों को लेकर अब बार-बार बीजेपी सरकार की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया और बैठक के बाद दिए जाने वाले बयान को लेकर कांग्रेस भी चुटकी ले रही है. हाल ही में कांग्रेस वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सतपाल महाराज पर निशाना साधते हुए कहा कि 9 सालों में उत्तराखंड सरकार उत्तर प्रदेश से कुछ भी नहीं ले पाई. एक बार फिर से परिसंपत्तियों को लेकर राज्य के एक मंत्री लगातार बयान दे रहे हैं. हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी सरकार के दौरान परिसंपत्तियों को लेकर क्या कुछ किया गया इसको लेकर भी विस्तारपूर्वक लिखा है.

कब होगी मांग पूरी: इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य गठन के बाद से लेकर आज तक उत्तराखंड की सरकारें उत्तर प्रदेश की तरफ आशा भरी निगाह से देखती रही हैं. लेकिन 24 साल बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात है.

ये भी पढ़ें: हरीश रावत ने फिर उठाया परिसंपत्तियों का मुद्दा, मंत्री पर साधा निशाना, अपनी सरकार की गिनाई उपलब्धि

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्रियों की मुलाकात के बाद फिर उठा परिसंपत्ति विवाद, कांग्रेस बोली- 'छोटे भाई' को मिलना चाहिए पूरा हक

देहरादून (किरणकांत शर्मा): उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्ति विवाद 24 साल बाद भी सुलझा नहीं है. हर दो-चार महीने के बाद होने वाली बैठक और उसके बाद आने वाले बयान लगभग एक समान ही होते हैं. उत्तराखंड में कितनी सरकारी आईं और कितनी चली गईं लेकिन परिसंपत्ति विवाद आज भी जस का तस बना हुआ है. आलम ये है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में 9 सालों से भाजपा की सरकार होने के बाद भी ये मसला अबतक हल नहीं हुआ. परिसंपत्ति का बंटवारा न होने की वजह से उत्तराखंड को न केवल आर्थिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. ये चर्चा एक बार फिर से इसलिए हो रही है क्योंकि फिर से सरकार ने ही परिसंपत्तियों का जिक्र छेड़ा है.

कौन करेगा ये विवाद खत्म: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पदभार ग्रहण करने के बाद एक बार लखनऊ में परिसंपत्ति की बैठक में शामिल होकर आ चुके हैं. हालांकि, बैठक के बाद यह कहा गया था कि 24 सालों में जो काम नहीं हुआ, वो अब जाकर हुआ है. यानी सरकार ने 18 नवंबर 2021 को हुई बैठक के बाद ये कहा था कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों की बैठक में 21 साल पुराने इस विवाद को निपटा लिया गया है. बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय भी हुए लेकिन 4 साल बीतने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं. इतना ही नहीं, उस दौरान परिसंपत्तियों के सर्वे के बाद बंटवारे की बात की गई थी. लेकिन आज तक ना तो सर्वे हुआ और न ही परिसंपत्तियों का बंटवारा.

UP UTTARAKHAND ASSET DISPUTE
त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस का मामला सुलझा था. (FILE PHOTO- उत्तराखंड शासन)

मीटिंग पर मीटिंग, लेकिन फायदा कुछ खास नहीं: ऐसा नहीं है कि संपत्तियों को लेकर बैठक सिर्फ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल के दौरान ही की गई. बल्कि 6 अगस्त 2017 को भी इसी तरह की एक बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक के बाद भी यह निर्णय लिया गया था कि दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद निपटा लिया गया है. उस दौरान उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के नाम से हरिद्वार, देहरादून, श्रीनगर और आसपास के इलाकों में जो गेस्ट हाउस हैं, वो उत्तराखंड के होंगे. इतना ही नहीं, जिस जमीन पर हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है, उस जमीन को भी लेकर कई बातें की गई थीं. बैठक के बाद उस दौरान के उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने उत्तराखंड सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार का शुक्रिया अदा भी किया था.

साल 2017 के बाद आज तक सतपाल महाराज परिसंपत्ति विवाद बंटवारे को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं. हाल ही में फिर बयान दिया. उन्होंने कहा कि जल्द दोनों राज्यों की एक साथ बैठक आयोजित की जाएगी. बैठक में परिसंपत्ति विवाद का निपटारा हो जाएगा.

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दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्ति विवाद पर मंत्री सतपाल महाराज सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ चर्चा कर चुके हैं. (FILE PHOTO- उत्तराखंड शासन)

इसके अलावा त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान भी इस तरह की बैठक आयोजित की गई थी. लेकिन हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस के अलावा फिलहाल कोई बड़ा निर्णय उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार की तरफ से नहीं लिया गया.

सिंचाई विभाग की सबसे ज्यादा संपत्ति: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के परिसंपत्तियों के मामले को बेहद करीब से जानने वाले आदेश त्यागी कहते हैं कि राज्य बनने के बाद से आजतक केवल प्रयास ही चल रहा है.

यह मामला 9 नवंबर 2000 से आज तक लगातार चल रहा है. उत्तराखंड में जो भी सरकार आई, उसने प्रयास तो किया लेकिन प्रयास सिर्फ प्रयास ही बनकर रहे. ऊपर से उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत परिसंपत्तियों के बंटवारे में जो देरी हो रही है, वह अलग है.

उत्तराखंड में सबसे अधिक परिसंपत्तियां सिंचाई विभाग की है. इसमें लगभग 13 हजार हेक्टेयर जमीन और 2 हजार से अधिक बिल्डिंग, आवास और गेस्ट हाउस प्रदेश के नियंत्रण में नहीं है. इसमें नहर और बैराज भी शामिल हैं. अगर इन संपत्तियों का बंटवारा हो जाता है तो उत्तराखंड को आर्थिक और सामाजिक रूप से भी फायदा होगा.
- आदेश त्यागी, वरिष्ठ पत्रकार -

फिर मांगा मंत्री ने अधिकारियों से प्रस्ताव: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच जो प्रमुख संपत्तियां हैं उसमें, भीमगोडा बैराज, बनबसा का लोहिया हेड बैराज, कालागढ़ रामगंगा बैराज और टिहरी गंगा जैसी नदी पर बनी तमाम योजनाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार का हक है. कुंभ और कांवड़ मेले की भूमि भी उत्तर प्रदेश सरकार की है. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक जो संपत्ति उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश की है उसकी कीमत करीब 20 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक है.

हालांकि, एक बार फिर से सरकार ने परिसंपत्तियों का जिक्र छेड़ा है. कहा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच जो संपत्तियों का विवाद है, उसका दोबारा से प्रस्ताव तैयार करवाया जा रहा है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने अपने विभागों को निर्देश दिए हैं कि सभी के प्रस्ताव जल्द से जल्द तैयार किए जाएं. यानी 24 साल बाद भी राज्य सरकार प्रस्ताव और बैठकों में ही उलझी हुई है.

साल दर साल बीत रहे, नहीं हुआ फैसला: उत्तराखंड की राजनीति को समझने वाले जय सिंह रावत इस पूरे विवाद को लेकर विस्तार से बताते हैं. उनका कहना है कि राज्य सरकारों में जो भी मुख्यमंत्री आए, उन्होंने चुनाव के समय चुनावी फायदा लेने के लिए परिसंपत्ति विवाद निपटारे का आश्वासन दिया, लेकिन 24 साल बाद भी दोनों राज्यों के बीच मामले का निपटारा नहीं हो सका.

जबकि 9 साल से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. ऐसे में केंद्र सरकार को खुद हस्तक्षेप करके परिसंपत्ति विवाद को निपटाना चाहिए. उत्तराखंड में आज भी कई विद्युत परियोजना, शैक्षिक संस्थान उत्तर प्रदेश के हैं. वहीं उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच कई तरह की देनदारी है. परिसंपत्तियों के साथ-साथ दूसरे भी बंटवारे पेंडिंग में पड़े हुए हैं.

यह बात शायद किसी को समझ में ना आए, लेकिन अगर परिसंपत्तियों का बंटवारा हो जाता है तो उत्तराखंड को आर्थिक रूप से इसका फायदा मिलेगा. लेकिन इच्छाशक्ति की कमी के कारण आज तक यह नहीं हो पाया. उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 यह साफ कहता है कि जो संपत्ति जैसी है, जहां है, वैसी ही रहेगी. उत्तराखंड उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता जबकि उत्तराखंड में ही वह संपत्तियां मौजूद हैं. सर्वे और मूल्यांकन की बात हमेशा से होती रही है. यह सुनते हुए सालों बीत गए. लेकिन अभी तक इसका निर्णय किसी भी सरकार द्वारा नहीं लिया गया.
- जय सिंह रावत, राजनीतिक जानकार -

कांग्रेस भी ले रही है चुटकी: परिसंपत्तियों को लेकर अब बार-बार बीजेपी सरकार की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया और बैठक के बाद दिए जाने वाले बयान को लेकर कांग्रेस भी चुटकी ले रही है. हाल ही में कांग्रेस वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सतपाल महाराज पर निशाना साधते हुए कहा कि 9 सालों में उत्तराखंड सरकार उत्तर प्रदेश से कुछ भी नहीं ले पाई. एक बार फिर से परिसंपत्तियों को लेकर राज्य के एक मंत्री लगातार बयान दे रहे हैं. हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी सरकार के दौरान परिसंपत्तियों को लेकर क्या कुछ किया गया इसको लेकर भी विस्तारपूर्वक लिखा है.

कब होगी मांग पूरी: इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य गठन के बाद से लेकर आज तक उत्तराखंड की सरकारें उत्तर प्रदेश की तरफ आशा भरी निगाह से देखती रही हैं. लेकिन 24 साल बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात है.

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