प्रयागराज : “मेरी मां रविकला मिश्रा (58) मौनी अमावस्या पर (28 जनवरी) को महाकुंभ में स्नान करने पहुंची थीं. उनके साथ मेरी मौसी-मौसा और गांव के 4 लोग थे. सभी संगम नोज पर रात में ही पहुंच गए थे. रात करीब 1:30 बजे भगदड़ के दौरान मेरी मां मौसा-मौसी और गांव के लोगों से बिछड़ गईं.
अगले दिन उनकी डेड बॉडी मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के चीरघर में मिली. अफसोस इस बात का है कि मां की मृत्य के 52 दिन बाद भी हमें डेथ सर्टिफिकेट नहीं दिया गया है. डेथ सर्टिफिकेट के लिए प्रयागराज के कई दफ्तरों के चक्कर लगा चुका हूं, लेकिन मेरी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है".
यह कहना है रविकला के बेटे रत्नेश मिश्रा का. रत्नेश बताते हैं कि मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में तमाम निवेदन के बावजूद वहां पोस्टमार्टम करने से मना कर दिया गया था. कहा गया कि ऊपर से आदेश है कि पोस्टमार्टम न किया जाए.
इसके बाद हमें प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस और 15 हजार रुपये कैश देकर रवाना कर दिया गया. बताया गया कि डेथ सर्टिफिकेट और अन्य पेपर आपको ईमेल से भेज दिए जाएंगे. इसके बाद अतरौलिया थाने पर भेजा गया. जहां जीडी भरकर मां का शव दाह संस्कार के लिए दे दिया गया.
बहरहाल अब तक 52 दिन हो चुके हैं, पर अभी तक कोई प्रपत्र नहीं मिला है. जानकारी करने के लिए मैंने प्रयागराज के मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. वात्सला मिश्रा से मिला, पर उन्होंने डेथ सर्टिफिकेट जारी करने से मना कर दिया.
इसके बाद एनाटॉमी डिपार्टमेंट की डॉ. कृष्णा के संपर्क किया. उन्होंने डेथ सर्टिफिकेट जारी करने से मना करते हुए हमें स्वरूप रानी नेहरू चिकित्सालय जाने को कहा. वहां भी निराशा हाथ लगी और कोई सहायता नहीं की गई.
रत्नेश मिश्रा के मुताबिक केंद्रीय चिकित्सालय, परेड ग्राउंड महाकुंभ मेला भी भेजा गया. जहां डॉ. सिद्धार्थ पांडेय के पास 18 फरवरी को डेथ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया. यहां बताया गया कि 26 फरवरी से 7 मार्च के बीच आपकाे डेथ सर्टिफिकेट मिल जाएगा, लेकिन हमें वहां से भी कोई सूचना नहीं मिली.
इसके बाद दूसरा आवेदन अश्वनी यादव के पास किया. अश्वनी यादव अशोकनगर स्थित कंटोनमेंट बोर्ड अस्पताल में हैं. उन्होंने बोला कि आपका एक हफ्ते में सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. इसके अलावा डीआईटी महाकुंभ, मेलाधिकारी, एडीजी, पुलिस कमिश्नर दफ्तर के भी कई बार चक्कर लगा चुका हूं. हमें हर जगह से निराशा ही हाथ लग रही है.
हाथ पर लिखा था 17, डेड बॉडी के बैग पर पड़ा था 54 नंबर: रत्नेश ने बताया कि मां की डेड बॉडी के बैग पर 54 नंबर लिखा हुआ था. हमारी मां के हाथ में 17 नंबर लिखा था. मां के साथ गए लोगों में मौसी चंद्रावती देवी, मौसा शंकर तिवारी सहित 6 लोगों का कहना है कि मां की डेथ संगम नोज पर हुई.
वह हमसे हादसे वाले दिन यहीं से बिछड़ गई थीं. भगदड़ के दौरान सब लोग इधर उधर हो गए. बावजूद प्रयागराज प्रशासन मां की मौत को झूंसी साइड पर होने का जबरन दावा कर रहा है और डेथ सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जा रहा है.
मेडिकल कॉलेज के सूचना पट्ट पर लगी मरने वालों की तस्वीर: रत्नेश मिश्रा बताते हैं कि मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की माेर्चरी के बाहर मरने वालों की तस्वीरें लगाई गई थीं. उनमें मेरी मां रविकला की तस्वीर थी. उसी तस्वीर से हमने अपनी मां की शिनाख्त की थी.
इसके बावजूद मां का डेथ सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जा रहा है. रत्नीश का कहना है कि जब मृतक आश्रितों को अनुदान दिया जा रहा है तो डेथ सर्टिफिकेट भी जारी किया जाए. इसकी वजह के कई काम अटके हुए हैं.
इस संबंध में मेलाधिकारी विजय किरण आनंद का कहना है कि मुझे डिटेल्स दीजिए, मैं चेक करूंगा. सभी परिवारों को मृत्यु प्रमाण पत्र और मुआवजा दिया गया. मुझे डिटेल्स चेक करनी होंगी.
अखिलेश यादव का बयान, महाकुंभ गए 1000 से अधिक श्रद्धालु लापता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा में महाकुंभ को लेकर लोकसभा में दिए गए बयान पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुधवार को लोकसभा में तीखी प्रतिक्रिया दी.
उन्होंने आरोप लगाया कि महाकुंभ में गए 1000 से अधिक श्रद्धालु लापता हैं. यूपी सरकार लापता लोगों को लेकर लगाए गए पोस्टर हटवा रही है. महाकुंभ का आयोजन आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है, जिसे बार-बार याद किया जाता है.
सभी सरकारें इसे बेहतर बनाने की कोशिश करती हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि केंद्र सरकार ने आयोजन के लिए कितना बजट आवंटित किया. उत्तर प्रदेश सरकार को कितना बजट मिला, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रही है.
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