उत्तरकाशी: तकनीकी युग में नगदी फसलों का गढ़ कहे जाने वाले रवांई घाटी के खेतों में बैलों की घंटी की जगह अब पावर वीडर की आवाज गूंज रही है. यहां अब काश्तकार खेती के लिए आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन यंत्रों के इस्तेमाल से काश्तकारों की समय की बचत के साथ ही फसलों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है. जबकि, पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर काश्तकारों को हल जुताई और फसलों के बीज बोने में कई बार मौसम की बेरुखी के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता था.
आधुनिक कृषि यंत्रों से खेती हुई आसान: प्रगतिशील किसान स्यालिक राम नौटियाल, धीरेंद्र चौहान, संजय भारती, अतोल चौहान, अनुज असवाल आदि बताते हैं कि पहले उन्हें करीब 3-4 नाली का खेत बनाने और हल जोतने में दो से तीन दिन का समय लगता था, जो कि अब आधुनिक कृषि यंत्रों से महज एक घंटे में हो जाती है. उन्होंने बताया कि पहले बारिश न होने पर खेत सख्त हो जाने पर बैलों से उन पर हल चलाना संभव नहीं हो पाता था. साथ ही इसके लिए बारिश का इंतजार ही करना पड़ता था. अब पावर वीडर की मदद से सख्त से सख्त खेत की आसानी से जुताई हो जाती है.
पावर वीडर को लेकर समस्या: उनका कहना है कि हालांकि, इसके कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं. जैसे कि पहाड़ी खेतों में ढलान होने के साथ ही वो उबड़ खाबड़ होते हैं, पावर वीडर या टिलर मशीन को एक खेत से दूसरे खेत तक पहुंचाने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. साथ ही मशीन में कुछ खराबी आने पर आसानी से पहाड़ों में मैकेनिक नहीं मिल पाते हैं. इसलिए काश्तकारों ने मांग की है कि सरकार काश्तकारों को कृषि यंत्रों की मरम्मत करने का प्रशिक्षण दें.
पावर वीडर के लिए सरकार दे रही सब्सिडी: काश्तकारों का कहना है कि आज वो इन यंत्रों के सहारे धान की रोपाई के लिए खेत बनाना, बुवाई करना, घास काटना, गेहूं काटना, टमाटर के खेत में नाली बनाना आदि सभी काम कर रहे हैं. इस मशीन से काफी तेजी से खेतों की जुताई की जा सकती है. वहीं, सरकार भी इन मशीनों के लिए काश्तकारों को 80 फीसदी तक की सब्सिडी दे रही है. बता दें कि पावर वीडर एक तरह की छोटी ट्रैक्टर होती है. जिसे हाथों से कंट्रोल किया जाता है.
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