कुल्लू: भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना (पार्वती परियोजना) से हिमाचल सहित नौ राज्यों को बिजली मिलनी शुरू हो गई है, लेकिन जिस जमीन और जिंदगी की कुर्बानी पर यह परियोजना बनी, वे 606 प्रभावित परिवार आज भी स्थायी रोजगार से वंचित हैं. 25 वर्षों से रोजगार की उम्मीद लगाए ये परिवार खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
25 साल पहले रखी गई थी आधारशिला, आज भी अधूरी हैं उम्मीदें
31 दिसंबर 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने कुल्लू के सैंज में इस परियोजना का शिलान्यास किया था. उस समय स्थानीय लोगों को रोजगार और क्षेत्र के विकास के बड़े-बड़े वादे किए गए थे. लेकिन आज, एक चौथाई सदी बाद भी एनएचपीसी में स्थानीय लोगों को स्थायी रोजगार नहीं मिल पाया है.

सिर्फ 20 परिवारों को मिला रोजगार, बाकी अभी भी इंतजार में
606 परिवारों को राहत एवं पुनर्वास नीति के तहत नौकरी मिलनी थी, लेकिन अब तक सिर्फ 20 परिवारों को ही रोजगार मिल पाया है. बाकी परिवारों की फाइलें एनएचपीसी के दफ्तरों में धूल फांक रही हैं.

30 से अधिक गांवों की भूमि अधिग्रहित, सबसे ज़्यादा प्रभावित रैला पंचायत
परियोजना के लिए सैंज, मणिकर्ण और गड़सा घाटी के 30 गांवों की 1208 बीघा भूमि अधिग्रहित की गई. रैला पंचायत सबसे अधिक प्रभावित रही, जहां 14 गांवों के सैकड़ों लोगों की जमीन गई. इनमें से अधिकतर परिवार आज भूमिहीन और बेरोजगार हैं.
राजनीतिक वादों की हकीकत — कमेटी बनी या नहीं, किसी को नहीं पता
प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ने एक बार सैंज दौरा कर प्रभावितों को आश्वासन दिया था कि रोजगार के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाई जाएगी, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि वह कमेटी बनी भी या नहीं. 25 वर्षों से प्रभावित केवल आश्वासन सुन रहे हैं.

प्रभावितों की ज़ुबानी:
स्थानीय निवासी रेवती नेगी (प्रभावित परिवार) का कहना है कि “हमने पुश्तैनी मकान और ज़मीन तक खो दी, लेकिन नौकरी नहीं मिली.” तो वहीं, छपे राम ने भी कहा कि “रोजगार की सूची में नाम है, पर नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.” ग्राम पंचायत रैला की प्रधान खिला देवी ने कहा कि “सरकार अगर वादे पूरे नहीं करेगी तो आने वाली परियोजनाओं पर जनता विश्वास नहीं करेगी.”

एनएचपीसी का पक्ष
परियोजना निदेशक निर्मल सिंह का कहना है कि राहत एवं पुनर्वास नीति के तहत जिन परिवारों को रोजगार देना है, उनका मामला विचाराधीन है और जल्द ही इस पर सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा.

अब बिजली से रोशन होंगे 9 राज्य, लेकिन अंधेरे में हैं प्रभावित
800 मेगावाट क्षमता वाली यह परियोजना अब पूरी तरह शुरू हो गई है. इसके तहत मणिकर्ण के पुलगा से सैंज के सिउंड तक पानी लाकर बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इससे हिमाचल को 12% मुफ्त बिजली मिलेगी और दिल्ली, चंडीगढ़, हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ को ऊर्जा प्राप्त होगी.
देश को बिजली देने वाली इस परियोजना ने सैकड़ों लोगों से उनकी जमीन, आजीविका और भविष्य छीन लिया. आज जब टरबाइन घूम रही हैं और बिजली बह रही है, तब स्थानीय लोग रोजगार के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. सरकार और एनएचपीसी को चाहिए कि वे राहत एवं पुनर्वास नीति को व्यवहार में लाएं और प्रभावितों को उनका वादा किया गया रोजगार जल्द दें.