रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुरानी बस्ती में जैतूसाव मठ है. यहां हर साल की तरह इस साल भी रामनवमी पर मालपुआ बनाया जा रहा है. मालपुआ बनाने का काम 3 अप्रैल से शुरू किया गया है. यह 6 अप्रैल की रात तक चलेगा. मालपुआ बनाने की इस पूरी विधि में हर कारीगर अपना अलग-अलग काम करते हैं.
मालपुआ बनाने वाली सोहागा बाई यादव ने बताया कि "जैतूसाव मठ में पिछले 50 सालों से कृष्ण जन्माष्टमी और रामनवमी में मालपुआ बनाने के साथ ही दीपावली के मौके पर छप्पन भोग बनाने के लिए आ रही हूं. मालपुआ बनाने में काफी मेहनत लगती है.''
कैसे बनाते हैं मालपुआ: मालपुआ बनाने के लिए गेहूं का आटा, शक्कर, सौंफ, काली मिर्च, तेल और घी के अलावा दूध की भी जरूरत पड़ती है. इन सब चीजों को मिलाकर घोल तैयार किया जाता है. मालपुआ को तेल में छानने के बाद उसे सुखाने के लिए पैरा में रखा जाता है. मालपुआ को सुखाने के बाद यहां काम करने वाले कारीगर इसका 25 और 50 का बंडल बनाकर रखते हैं.

मालपुआ बनाने में चार दिनों का समय लगता है, जिसके लिए सोहागा बाई के साथ ही 10 कारीगर सुबह से लेकर शाम तक काम करते हैं. मालपुआ बनाने का काम रामनवमी की रात तक किया जाता है. उसके बाद भगवान श्री राम को भोग अर्पण करने के बाद अगले दिन यानि सोमवार को दोपहर के बाद भोग भंडारा के साथ मालपुआ का प्रसाद भक्तों को बांटा जाएगा.
कब से हुई शुरुआत: जैतूसाव मठ के सचिव महेंद्र कुमार अग्रवाल ने बताया कि "जैतूसाव मठ में कृष्ण जन्माष्टमी और रामनवमी के मौके पर मालपुआ बनाने की शुरुआत साल 1916 में महंत लक्ष्मी नारायण दास के समय शुरू हुई. यह परंपरा निरंतर आज भी चल रही है."

इस साल 11 क्विंटल मालपुआ: पहले मालपुआ की मात्रा कम होती थी, लेकिन अब धीरे धीरे बढ़कर वर्तमान में 11 क्विंटल मालपुआ तैयार किया जा रहा है. रायपुर के साथ ही दूसरे राज्यों के भक्त भी यहां के बने मालपुआ को पसंद करते हैं. इस वजह से मालपुआ इस बार 11 क्विंटल का बनाया जा रहा है. रामनवमी के दूसरे दिन श्रद्धालु मालपुआ के इस प्रसाद को अपने परिवार और परिचितों को दूसरे राज्यों में भी भेजते हैं.