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बैक्टीरिया और गाय के गोबर से बनेगा बायोप्लास्टिक, बनाई जा सकेंगी प्लास्टिक की वस्तुएं, प्रकृति को नहीं होगा नुकसान - BBAU PATENT LUCKNOW

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने खोजा तरीका, सरकार ने दिया 20 वर्षों के लिए दिया पेटेंट

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प्रोफेसर रवि गुप्ता को सम्मानित करते कुलपति डॉ. आरके मित्तल (picture credit ; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : April 18, 2025 at 11:43 AM IST

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लखनऊ: दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. महासागरों में प्लास्टिक के मल्टीलेयर पैच खड़े हो रहे हैं, जो जलीय जीवों को नष्ट कर रहे हैं. दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाले प्लास्टिक हजारों साल तक नष्ट नहीं होती. इसका समाधान बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के वैज्ञानिक डॉ. रवि गुप्ता ने निकाला है, जो आने वाले वक्त में दुनिया भर में प्लास्टिक क्रांति साबित होने जा रहा है. डॉ. गुप्ता ने बैक्टीरिया और गाय के गोबर से बायोप्लास्टिक का निर्माण कर लिया है, जो 40-50 साल में नष्ट होकर प्रकृति के साथ घुल जाएगा. जिसका कोई भी रासायनित दुष्प्रभाव नहीं होगा.

बीबीएयू के इस वैज्ञानिक को भारत सरकार ने 20 वर्षों का पेटेंट दिया है. प्लास्टिक जैसे गुणों वाले बायोडिग्रेडेबल पदार्थ गन्ना, मक्का, गेहूं, चावल और केले के छिलके आदि बायोमास से बनाए गए हैं. ऐसे गुण सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट में भी मौजूद हैं. डॉ. गुप्ता बैक्टीरिया और गाय के गोबर का उपयोग करके कम लागत वाले बायोप्लास्टिक का निर्माण किया है. जिससे प्लास्टिक की वस्तुएं, बोतल, पॉलीबैग आदि कोई भी सामान का निर्माण किया जा सकता है.

डॉ. गुप्ता विश्वविद्यालय में एन्वॉयरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कार्यरत हैं. उनकी इस असाधारण उपलब्धि पर कुलपति डॉ. आरके मित्तल और पृथ्वी व पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रो. राजेश कुमार ने बधाई देते हुए बायोप्लास्टिक के व्यावसायीकरण पर जोर दिया है. बता दें कि प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित सिंथेटिक प्लास्टिक आजकल हर चीज में उपयोग होने लगा है. जिसके कारण गैर अपघटनीय अपशिष्ट पदार्थ जमा हो जाते हैं, जो हजारों वर्षों तक पर्यावरण में रहते हैं. पृथ्वी पर कई प्रजातियां प्लास्टिक प्रदूषण से पीड़ित हैं और यह ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में से एक है.

इसे भी पढ़ें - BBAU में इस साल से पैरामेडिकल और एग्रीकल्चर की होगी पढ़ाई, रोजगार के लिए इनक्यूबेशन सेंटर होगा स्थापित


घरेलू सामग्री से बन जाएगी बायोप्लास्टिक : प्लास्टिक कचरा हजारों वर्ष तक नष्ट नहीं होता और जलाने पर रासायनिक जहरीली गैसें वातावरण को जहरीला बनाती है. बायोमास से बनाए गए पदार्थो में वांछनीय गुण सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट (पीएचबी) में भी मौजूद हैं. बैक्टीरिया से कई प्रकार के पीएचबी की खोज की गई है और बायोप्लास्टिक के रूप में इस्तेमाल किया गया है.

गाय के गोबर का होगा प्रयोग: पीएचबी उत्पादन को सस्ता करने के लिए गाय के गोबर से बैक्टीरिया विकसित किया गया है. इस विधि से बायोप्लास्टिक उत्पादन की लागत को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध पीएचबी की तुलना में लगभग 200 गुना कम कर दिया है. गाय के गोबर का उपयोग करके बायोप्लास्टिक के उत्पादन के लिए पेटेंट आवेदन किया था. जिसे पेटेंट कार्यालय ने जांच के बाद 20 साल के लिए पेटेंट प्रमाण पत्र जारी किया है.

दवाओं में भी हो सकता है प्रयोग : डॉ. गुप्ता और शोध छात्र देशराज दीपक कपूर 4 वर्षों से कच्चे माल से लागत प्रभावी बायोप्लास्टिक बनाने के लिए काम कर रहे हैं. बायोडिग्रेडेबल का उपयोग गैर विषाक्त घाव भरने वाले ड्रेसिंग पैच, तेजी से ऊतक और हड्डी के उत्थान और विभिन्न पशु संक्रमण मॉडल में दवा यौगिकों की नैनो-डिलीवरी के विकास के लिए पीएचबी की नैनोशीट भी बना रहे हैं.

यह भी पढ़ें - रिसर्च रैंकिंग में चमका BHU; रसायन विज्ञान शोध में देश में तीसरा स्थान, अमेरिका ने जारी की रैंकिंग

लखनऊ: दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. महासागरों में प्लास्टिक के मल्टीलेयर पैच खड़े हो रहे हैं, जो जलीय जीवों को नष्ट कर रहे हैं. दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाले प्लास्टिक हजारों साल तक नष्ट नहीं होती. इसका समाधान बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के वैज्ञानिक डॉ. रवि गुप्ता ने निकाला है, जो आने वाले वक्त में दुनिया भर में प्लास्टिक क्रांति साबित होने जा रहा है. डॉ. गुप्ता ने बैक्टीरिया और गाय के गोबर से बायोप्लास्टिक का निर्माण कर लिया है, जो 40-50 साल में नष्ट होकर प्रकृति के साथ घुल जाएगा. जिसका कोई भी रासायनित दुष्प्रभाव नहीं होगा.

बीबीएयू के इस वैज्ञानिक को भारत सरकार ने 20 वर्षों का पेटेंट दिया है. प्लास्टिक जैसे गुणों वाले बायोडिग्रेडेबल पदार्थ गन्ना, मक्का, गेहूं, चावल और केले के छिलके आदि बायोमास से बनाए गए हैं. ऐसे गुण सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट में भी मौजूद हैं. डॉ. गुप्ता बैक्टीरिया और गाय के गोबर का उपयोग करके कम लागत वाले बायोप्लास्टिक का निर्माण किया है. जिससे प्लास्टिक की वस्तुएं, बोतल, पॉलीबैग आदि कोई भी सामान का निर्माण किया जा सकता है.

डॉ. गुप्ता विश्वविद्यालय में एन्वॉयरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कार्यरत हैं. उनकी इस असाधारण उपलब्धि पर कुलपति डॉ. आरके मित्तल और पृथ्वी व पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रो. राजेश कुमार ने बधाई देते हुए बायोप्लास्टिक के व्यावसायीकरण पर जोर दिया है. बता दें कि प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित सिंथेटिक प्लास्टिक आजकल हर चीज में उपयोग होने लगा है. जिसके कारण गैर अपघटनीय अपशिष्ट पदार्थ जमा हो जाते हैं, जो हजारों वर्षों तक पर्यावरण में रहते हैं. पृथ्वी पर कई प्रजातियां प्लास्टिक प्रदूषण से पीड़ित हैं और यह ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में से एक है.

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घरेलू सामग्री से बन जाएगी बायोप्लास्टिक : प्लास्टिक कचरा हजारों वर्ष तक नष्ट नहीं होता और जलाने पर रासायनिक जहरीली गैसें वातावरण को जहरीला बनाती है. बायोमास से बनाए गए पदार्थो में वांछनीय गुण सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित पॉलीहाइड्रॉक्सी ब्यूटिरेट (पीएचबी) में भी मौजूद हैं. बैक्टीरिया से कई प्रकार के पीएचबी की खोज की गई है और बायोप्लास्टिक के रूप में इस्तेमाल किया गया है.

गाय के गोबर का होगा प्रयोग: पीएचबी उत्पादन को सस्ता करने के लिए गाय के गोबर से बैक्टीरिया विकसित किया गया है. इस विधि से बायोप्लास्टिक उत्पादन की लागत को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध पीएचबी की तुलना में लगभग 200 गुना कम कर दिया है. गाय के गोबर का उपयोग करके बायोप्लास्टिक के उत्पादन के लिए पेटेंट आवेदन किया था. जिसे पेटेंट कार्यालय ने जांच के बाद 20 साल के लिए पेटेंट प्रमाण पत्र जारी किया है.

दवाओं में भी हो सकता है प्रयोग : डॉ. गुप्ता और शोध छात्र देशराज दीपक कपूर 4 वर्षों से कच्चे माल से लागत प्रभावी बायोप्लास्टिक बनाने के लिए काम कर रहे हैं. बायोडिग्रेडेबल का उपयोग गैर विषाक्त घाव भरने वाले ड्रेसिंग पैच, तेजी से ऊतक और हड्डी के उत्थान और विभिन्न पशु संक्रमण मॉडल में दवा यौगिकों की नैनो-डिलीवरी के विकास के लिए पीएचबी की नैनोशीट भी बना रहे हैं.

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