कुचामनसिटी: डीडवाना कुचामन जिले के बुडसु गांव के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक भी डॉक्टर नहीं है. इससे अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. यह 25 से 30 गांवों के बीच 60 हजार की आबादी के बीच सीएचसी स्तर का एकमात्र बड़ा अस्पताल है. अस्पताल में डॉक्टर के पांच पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में महज एक चिकित्सक पदस्थापित है. वह भी 6 अप्रैल के बाद से छुट्टी पर है. तब से अब तक यह अस्पताल बिना डॉक्टरों के ही रामभरोसे चल रहा है. इधर, सरपंच के आग्रह पर सीएचएमओ ने व्यवस्था के रूप में दो डॉक्टर अस्थाई तौर पर लगाए, लेकिन उनमें से एक ने ज्वाइन ही नहीं किया, जबकि दूसरे ने तुरंत छुट्टी ले ली.
पढें: सरकारी अस्पताल में गंदगी देख नाराज हुए कलेक्टर, परिसर में खड़े प्राइवेट वाहनों को कराया जब्त
सरपंच महावीर कूकना ने बताया कि सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर अस्पताल का बड़ा भवन तो बनवा दिया, लेकिन डॉक्टर नहीं होने से इसका कोई लाभ फिलहाल नहीं मिल रहा है. इन दिनों मौसम बदलने से सर्दी, जुकाम, बुखार, उल्टी-दस्त जैसी मौसमी बीमारियां बढ़ गई है. मरीजों की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं है. अस्पताल आए मरीज के परिजन मांगीलाल लाल शर्मा ने बताया कि डॉक्टर नहीं मिलने से निराश लौटना पड़ता है. बिना इलाज करवाए और बिना दवा लिए लौट जाते हैं. कई बार कार्यरत नर्सिंग स्टाफ या कंपाउंडर मरीज से पूछकर सामान्य बीमारी की दवा तो देते हैं, लेकिन गंभीर बीमारी पर मरीजों को कुचामन, मकराना या निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है. इससे समय और पैसे दोनों की बर्बादी होती है.
मुफ्त जांचों का नहीं मिल रहा फायदा: यहां आई मरीज मंजू कुमारी ने बताया कि यह अस्पताल सीएचसी स्तर का है. यहां कई प्रकार की जांचें मुफ्त होती हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं होने से कोई जांच लिखने वाला ही नहीं है. मरीजों को जांच के लिए भी दूसरे अस्पताल जाना पड़ता है. जो जांचें यहां मुफ्त होती हैं, उनके लिए लोगों को बेवजह 100 से 500 रुपए तक निजी लैब में खर्च करने पड़ते हैं.
यह भी पढें:डॉक्टर नहीं मिलने पर जताई नाराजगी, गंदगी देख भड़के प्रभारी सचिव
डॉक्टर के 5 पद, लेकिन एक चिकित्सक भी नहीं: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पांच चिकित्सकों के पद स्वीकृत है. हालात यह है कि फिलहाल एक भी डॉक्टर अस्पताल में नहीं है. बूड़सू का यह अस्पताल बिल्कुल हाइवे पर है. इसके सामने से खुद चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह कई बार जयपुर से खींवसर आते हैं, लेकिन उन्होंने भी कभी रुककर यहां की स्थितियां देखने की जहमत नहीं उठाई.
एंबुलेंस है तो ड्राइवर नहीं: अस्पताल में पिछले तीन सालों से एंबुलेंस ड्राइवर के अभाव में बेकार खड़ी है. आसपास के करीब 25 से 30 गांवों के बीच यह सबसे बड़ा अस्पताल है. जहां हादसे या दुर्घटना जैसी आपात परिस्थितियों में शव रखने के लिए मोर्चरी तक नहीं है. इस कारण यहां पोस्टमार्टम भी नहीं किया जा सकता है.
पांच करोड़ में बना अस्पताल: ग्राम पंचायत के सरपंच महावीर कूकना ने बताया कि इस अस्पताल भवन की लागत 5 करोड़ से अधिक आई है, लेकिन यहां चिकित्सक नहीं लगाने से इस अस्पताल का औचित्य नहीं है. पिछले तीन दिन से अस्पताल में एक भी चिकित्सक नहीं है. केवल नर्सिंग स्टॉफ व कंपाउंडर के भरोसे अस्पताल चल रहा है.जिला चिकित्सा अधिकारी नरेन्द्र चौधरी ने कहा कि यहां डॉक्टरों के लिए उच्च अधिकारियों को लिखित में भेजा गया है. जल्द ही डॉक्टर लगाए जाएंगे.