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हाईकोर्ट ने देहरादून प्रशासन के आदेश पर लगाई रोक, अतिक्रमण और बुलडोजर से जुड़ा है मामला, पढ़ें पूरी खबर - UTTARAKHAND HIGHCOURT

नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून के विकासनगर में बस्तियों को गिराने पर रोक लगाई.

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उत्तराखंड हाईकोर्ट (PHOTO- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : April 12, 2025 at 10:31 PM IST

3 Min Read

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून के विकासनगर क्षेत्र में शुरू हुई बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर दायर विशेष याचिका पर सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उनके मामले पर सुनवाई की. जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उन्हें बिना सुनवाई का मौका दिए, प्रशासन के हटाए जाने के आदेश पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि सुनवाई का अवसर दिए बिना बस्तियों को तोड़ा जाना न्यायोचित नहीं है. क्योंकि सर्वोच्च न्यायलय की गाइडलाइन भी है. उसका अनुपालन करना आवश्यक है.

कोर्ट ने राज्य से कहा है कि जिन लोगों द्वारा नदी नालों को पाटा जा रहा. उन्हें चिन्हित के बाद अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 15 अप्रैल तक कोर्ट में पेश करें. पूर्व में सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीन जनहित याचिकाओं में बार बार हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे. लेकिन प्रशासन ने उन आदेशों का अनुपालन नहीं किया. बीते 3 अप्रैल को कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार से कहा था कि नदी, नालों और गदेरों में जहां-जहां अतिक्रमण हुआ है, उसे हटाया जाए. उस जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं. इनको भी उसी तरह से सीसीटीवी लगाकर मैनेज किया जाए जैसे सड़कों के दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्रों को किया जाता है.

कोर्ट ने डीजीपी से कहा था कि वे संबंधित एसएचओ को आदेश जारी करें कि जहां जहां ऐसी घटनाएं होती हैं. उन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रिपोर्ट पेश करें. कोर्ट ने सचिव शहरी विकास से भी कहा कि वे प्रदेश के नागरिकों में एक संदेश प्रकाशित करें कि नदी, नालों और गदेरों में अतिक्रमण और अवैध खनन ना करें. जिसकी वजह से मॉनसून सीजन में उन्हें किसी तरह की दुर्घटना न हो. इसका व्यापक प्रचार प्रसार करें. 15 अप्रैल तक रिपोर्ट पेश करें.

इसको आधार मानते हुए प्रशासन ने आनन फानन में देहरादून के विकासनगर क्षेत्र समेत अन्य जगहों पर हुए अतिक्रमण का जायजा लिया. उन्हें चिन्हित कर 3 दिन में स्वयं अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए. जिनमें कई बस्तियां भी शामिल है. प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया कि उन्हें सुनवाई के लिए मौका तक नहीं दिया जा रहा है. सीधे बुलडोजर की कार्रवाई की जा रही है. जिन लोगों ने नदियों, नालों, जल स्त्रोत और गधेरों को पाटा गया है और वे चिन्हित भी हो चुके है. लेकिन उन्हें नही हटाया जा रहा है. इसलिए उनका पक्ष भी सुना जाए.

मामले के अनुसार देहरादून निवासी अजय नारायण शर्मा, रेनू पाल और उर्मिला थापर ने उच्च न्यायालय में अलग अलग जनहित याचिका दायर कर कहा है कि देहरादून के सहस्त्रधारा में जलमग्न भूमि में भारी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं. जिससे जल स्रोतों के सूखने के साथ ही पर्यावरण को खतरा पैदा हो रहा है. जबकि दूसरी याचिका में कहा गया है कि ऋषिकेश में नालों, खालों और ढांग पर बेइंतहा अतिक्रमण और अवैध निर्माण किया गया. तीसरी जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ करीब नदियों की भूमी पर अतिक्रमण किया है. खासकर बिंदाल और रिष्पना नदी पर अतिक्रमण किया गया है.

ये भी पढ़ें: 20 साल की सजा पाए नाबालिग के दुष्कर्म के आरोपी को हाईकोर्ट से मिली जमानत, ये है पूरा मामला

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून के विकासनगर क्षेत्र में शुरू हुई बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर दायर विशेष याचिका पर सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उनके मामले पर सुनवाई की. जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उन्हें बिना सुनवाई का मौका दिए, प्रशासन के हटाए जाने के आदेश पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि सुनवाई का अवसर दिए बिना बस्तियों को तोड़ा जाना न्यायोचित नहीं है. क्योंकि सर्वोच्च न्यायलय की गाइडलाइन भी है. उसका अनुपालन करना आवश्यक है.

कोर्ट ने राज्य से कहा है कि जिन लोगों द्वारा नदी नालों को पाटा जा रहा. उन्हें चिन्हित के बाद अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 15 अप्रैल तक कोर्ट में पेश करें. पूर्व में सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीन जनहित याचिकाओं में बार बार हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे. लेकिन प्रशासन ने उन आदेशों का अनुपालन नहीं किया. बीते 3 अप्रैल को कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार से कहा था कि नदी, नालों और गदेरों में जहां-जहां अतिक्रमण हुआ है, उसे हटाया जाए. उस जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं. इनको भी उसी तरह से सीसीटीवी लगाकर मैनेज किया जाए जैसे सड़कों के दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्रों को किया जाता है.

कोर्ट ने डीजीपी से कहा था कि वे संबंधित एसएचओ को आदेश जारी करें कि जहां जहां ऐसी घटनाएं होती हैं. उन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रिपोर्ट पेश करें. कोर्ट ने सचिव शहरी विकास से भी कहा कि वे प्रदेश के नागरिकों में एक संदेश प्रकाशित करें कि नदी, नालों और गदेरों में अतिक्रमण और अवैध खनन ना करें. जिसकी वजह से मॉनसून सीजन में उन्हें किसी तरह की दुर्घटना न हो. इसका व्यापक प्रचार प्रसार करें. 15 अप्रैल तक रिपोर्ट पेश करें.

इसको आधार मानते हुए प्रशासन ने आनन फानन में देहरादून के विकासनगर क्षेत्र समेत अन्य जगहों पर हुए अतिक्रमण का जायजा लिया. उन्हें चिन्हित कर 3 दिन में स्वयं अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए. जिनमें कई बस्तियां भी शामिल है. प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया कि उन्हें सुनवाई के लिए मौका तक नहीं दिया जा रहा है. सीधे बुलडोजर की कार्रवाई की जा रही है. जिन लोगों ने नदियों, नालों, जल स्त्रोत और गधेरों को पाटा गया है और वे चिन्हित भी हो चुके है. लेकिन उन्हें नही हटाया जा रहा है. इसलिए उनका पक्ष भी सुना जाए.

मामले के अनुसार देहरादून निवासी अजय नारायण शर्मा, रेनू पाल और उर्मिला थापर ने उच्च न्यायालय में अलग अलग जनहित याचिका दायर कर कहा है कि देहरादून के सहस्त्रधारा में जलमग्न भूमि में भारी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं. जिससे जल स्रोतों के सूखने के साथ ही पर्यावरण को खतरा पैदा हो रहा है. जबकि दूसरी याचिका में कहा गया है कि ऋषिकेश में नालों, खालों और ढांग पर बेइंतहा अतिक्रमण और अवैध निर्माण किया गया. तीसरी जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ करीब नदियों की भूमी पर अतिक्रमण किया है. खासकर बिंदाल और रिष्पना नदी पर अतिक्रमण किया गया है.

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