बालोद : छत्तीसगढ़ का बालोद जिला अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता है. यहां पानी के बड़े-बड़े स्त्रोत हैं. भारी मात्रा में कच्चा लोहा पाया जाता है. यहां एक ओर प्राचीन मां बहादुर कलारिन की माची है तो दूसरी तरफ प्राचीन सत्ती चौरा. लेकिन एक कहानी अब तक अनसुलझी है.ये जगह है करकाभाट नामक गांव.जहां सैंकड़ों एकड़ में एतिहासिक पत्थर बिखरे पड़े हैं.वक्त के साथ यहां फैले पत्थरों की चोरी भी हुई. लेकिन अब इस जगह को तारों से घेरा गया है.
पांच हजार से ज्यादा लाशें हैं दफन : बालोद जिले के करकाभाट स्थल को लेकर कई तरह की बातें पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. कहते हैं 5 हजार से ज्यादा लाश यहां पर दफन हैं.कभी कभी यहां सिसकियां सुनाई देती थी. शाम के बाद लोग इस स्थान से गुजरने से घबराते थे. समय के साथ सब बदलता गया और ये रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग बन गया. यहां जिस तरह के कब्र समूह पाए जाते हैं वो बस्तर नागालैंड मणिपुर और अफगानिस्तान में मिलते हैं. यह अपने आप में अद्वितीय हैं, रास्ते से गुजरते किसी की नजर पड़ जाए तो वो रुककर देखते जरूर हैं. यह अपने आप में एक अतिथि स्मारक स्थल है. जो अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है.
महापाषाण स्थल आदिम सभ्यता से संबंधित है.लगभग साढ़े तीन हजार साल पुराना ये स्थल माना जाता है. 10 किलोमीटर के एरिया में 8 हजार कब्र दफन होने का दावा किया जाता है.वर्तमान में बहुत सारी कब्रों को तोड़ मरोड़ दिया गया है.कुछ सड़क बनाई गई कुछ पर नहर बनाए गए.उससे काफी कुछ नुकसान हुआ है. ये जगह शिवनाथ नदी और महानदी के बीच में स्थित है.जहां मानव सभ्यता के शुरुआत के अंश देखने को मिलते हैं- अरमान अश्क, रीजनल इंवेस्टिगेटर


बड़े पत्थर हैं आकर्षण का केंद्र : इस जगह कई कब्र हैं और यहां पर ऐसे पत्थरों के आकार मिलते हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यहां कहीं पर मछली के आकार के दो मुंह वाले पत्थर तो कहीं पर तीर के आकर के पत्थर खड़े हैं. पत्थरों की खूबी ये है कि यहां पर पत्थरों के ऊपर कलाकारी की गई है. कब्र के आसपास पिरामिड नुमा स्तूप भी बनाया गया है जो कि पत्थरों को संभाल कर रखता था. इसके लिए अब एक खास प्लान बनाकर सहेजने की आवश्यकता है.


पर्यटकों के लिए घूमने की जगह : पर्यटक कुलेश्वर साहू ने बताया कि मैंने इस जगह के बारे में काफी कुछ सुना था लेकिन कभी देखा नहीं था. आज यहां आने का मौका मिला और देखते ही यहां की भव्यता बन रही है और मैं भी स्तब्ध हूं. कलाकारी देखकर और ये सोच रहा हूं कि यहां कभी बस्ती रही होगी या मंदिर रहा होगा या कोई भी युद्ध स्थल रहा होगा. चाहे जो भी हो इतिहास मुझे पता नहीं लेकिन जो देख रहा हूं मैं वो मंत्र मुग्ध करने वाला है.
काम के सिलसिले में मैं यहां आते रहता हूं.इस जगह के बारे में मैंने सुन रखा था.यहां पर पहले क्या रहा होगा.इस बारे में मुझे जानकारी तो है नहीं.ये बहुत अच्छा जगह है .देखने में सुंदर लगता है.लेकिन सुविधाओं का अभाव है.यदि प्रशासन यहां पर ध्यान दे दे तो ये जगह काफी अच्छा हो जाएगा- कुलेश्वर साहू,पर्यटक
छोटे कलश में मिले थे सोने के सिक्के : करकाभाट के आसपास अन्य गांवों में जब सर्वे के दौरान खुदाई हुई थी तो पाषाण एवं धातु से निर्मित कई उपकरण, हथियार, सोने, चांदी और तांबा की मुद्राएं मिली थी. ग्राम कुलिया ,कनेरी में स्मारक के नीचे खुदाई में चुकिया मिट्टी की एक छोटी कलशी में रखे 30 साने के सिक्के मिले थे. जिसमें 25 सिक्के सामपुरीय नरेश महेन्द्रादित्य के, राजा भवदत्त के और एक सिक्का राज अर्थपति के शासन का था ये सिक्के विरासत के रूप में आज भी गुरु घासीदास संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं. वहीं धनोरा में 500 पाषाणीय स्मारक मिले थे.


क्या है लोगों का मत : बालोद जिले के सोशल मीडिया संयोजक तनवीर खान ने बताया कि पूरे छत्तीसगढ़ में हम आना जाना करते हैं. लेकिन इस तरह के मृतक स्थली हमने कहीं नहीं देखी छत्तीसगढ़ में ये अद्वितीय है. इसे सहेजने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए.

करकाभाट एक गांव है.जहां पर बहुत विशाल क्षेत्र में मृतक स्तंभ पाए जाते हैं.ये महापाषाण काल युग के हैं.देखरेख के अभाव में उन्हें संरक्षित करने की जरुरत है.मैं कई जगह पर घूमा हूं.लेकिन इस तरह का महापाषाण मृतक स्तंभ कहीं और नहीं देखा है- तनवीर खान, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर
90 के दशक में हुई थी खुदाई : आखिर ये कब्र किसके हैं और इस जगह पहले क्या था. इसे जानने के लिए 90 के दशक में यहां पर दिल्ली से लेकर रायपुर के पुरातत्व के जानकारों ने खुदाई शुरू की थी. लेकिन खुदाई में यहां पर भाला और तीर के सिरों पर लगने वाले नुकीले अंश और कृषि के औजार मिले थे. जिसे टीम अपने साथ ले गई.अब भी ये जगह लोगों के लिए कौतूहल का विषय है.जिसके बारे में लोग जानना चाहते हैं.
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