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80 साल पुराना मड हाउस बना टूरिस्टों की पसंद, शहरी लोगों में है ज्यादा क्रेज - MUD HOUSE LAHAUL SPITI

लाहौल की पर्वतीय संस्कृति, पर्यावरण-संरक्षण और महिला सशक्तिकरण का अद्भुत मेल है सुषमा का मड हाउस, जो अब ग्रामीण पर्यटन की मिसाल बन चुका है.

मड हाउस बने अजीविका का साधन
मड हाउस बने अजीविका का साधन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : June 6, 2025 at 7:00 PM IST

Updated : June 6, 2025 at 7:57 PM IST

9 Min Read

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी, जहां प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. वहीं, इस घाटी की एक साधारण महिला सुषमा ने अपनी दूरदृष्टि और मेहनत से इस क्षेत्र को सतत पर्यटन की दिशा में एक नई पहचान दी है. आज के दौर में जहां पर्यटन तेजी से व्यवसाय का रूप ले चुका है, वहीं इको-फ्रेंडली और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है. ऐसे में यांग थांग गांव की रहने वाली सुषमा न केवल एक महिला उद्यमी के रूप में उभरी हैं. उन्होंने मड हाउस को चलाने का नायाब तरीका ढूंढा है.

सुषमा ने भी 80 साल पुराने घर को सैलानियों के लिए मड हाउस के रूप में तैयार किया और आज देश-विदेश से सैलानी इस मिट्टी के घर यानि मड हाउस में ठहरने के लिए आ रहे हैं. इससे सुषमा लाखों कमा रही हैं. यह घर पारंपरिक लाहौल की स्थापत्य कला और स्थानीय जीवनशैली का जीता-जागता उदाहरण है. उन्होंने घर की मरम्मत उसी पारंपरिक शैली और स्थानीय मिट्टी से की, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हुई, बल्कि सांस्कृतिक विरासत भी संरक्षित रही. इतना ही नहीं वो यहां पर ठहर कर स्थानीय संस्कृति, खान-पान और कृषि से जुड़े अनुभवों को भी हासिल कर रहे हैं. लाहौल घाटी के यांग थांग गांव की रहने वाले सुषमा अपने पति प्रताप सिंह के साथ मिलकर इस मड हाउस का संचालन कर रही हैं.

80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस
80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस (ETV Bharat)

परोसे जाते हैं स्थानीय व्यंजन

सुषमा बड़े नायाब तरीके से पर्यटकों से जुड़ती हैं. सुषमा ने बताया कि 'इस मड हाउस में सैलानियों को ठहरने के साथ-साथ स्थानीय खानपान के बारे में भी जानकारी दी जाती है और यहां ठहरने वाले सैलानियों को सिर्फ कुल्लू और लाहौल स्पीति के व्यंजन ही परोसे जाते हैं. सैलानी अगर खुद अपने हाथों से लाहौल या फिर कुल्लू के स्थानीय व्यंजन तैयार करना चाहें तो वो इसे खुद भी तैयार कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें हर चीज उपलब्ध करवा दी जाती है. वहीं सैलानी पारंपरिक व्यंजनों की ओर भी अपना खासा रुझान दिखाते हैं. पारंपरिक व्यंजनों जैसे मार्चू, बाड़ी, चिल्लड़ा, टीम्मू, सिड्डू को बनाने की विधि भी हम सैलानियों को सीखाते हैं, ताकि घर में इसे तैयार कर सकें. इसके साथ ही यहां के कल्चर, इतिहास के बारे में भी बहुत कुछ सीखते हैं. शहरी लोगों में इसका ज्यादा क्रेज दिखता है.'

सुषमा के साथ पर्यटक भी खेतीबाड़ी में बंटाते हैं हाथ
सुषमा के साथ पर्यटक भी खेतीबाड़ी में बंटाते हैं हाथ (ETV Bharat)

संस्कृति, स्वाद और सीख... सब एक जगह

सुषमा का यह मड हाउस केवल एक ठहरने की जगह नहीं, बल्कि एक अनुभव का केंद्र बन चुका है, जहां पर्यटक स्थानीय खान-पान, संस्कृति, परंपराएं और कृषि जीवनशैली को नजदीक से समझते हैं. पर्यटक खुद भी स्थानीय व्यंजनों को बनाना सीख सकते हैं. सुषमा मड हाउस चलाने के साथ साथ-साथ खेतीबाड़ी करती हैं. सुषमा बताती हैं कि मड हाउस में आने वाले मेहमानों को खेतों में उगाई जानी वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों के बारे में भी जानकारी दी जाती है. कई बार सैलानी हमारे साथ मिलकर खेती के काम में भी सहयोग करते हैं. इससे सैलानी खुशी और रोमांच महसूस करते हैं.

स्थानीय व्यंजन घीबाड़ी
स्थानीय व्यंजन घीबाड़ी (ETV Bharat)

वीरानी से रौनक तक...लाहौल की नई कहानी

सुषमा के मड हाउस में आज रौनक है. खुशियों के रंगों से सराबोर है, लेकिन एक समय यहां वीरानी ही बसती थी, लेकिन जैसे ही अटल टनल की शुरुआत हुई लाहौल घाटी का जनजीवन अब पूरी तरह से बदल गया है. अटल टनल बनने से 12 महीने लाहौल घाटी में वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई. इसी के साथ यहां पर पर्यटन के क्षेत्र में भी नए आयाम स्थापित हो रहे हैं. देश विदेश से 12 महीने अब यहां पर्यटक पहुंच रहे हैं. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल रहा है. यहां लोग होम स्टे, मड हाउस में ठहरना पसंद करते हैं. लाहौल घाटी में हालांकि अब नए होटल और गेस्ट हाउस का भी निर्माण हो रहा है, लेकिन सैलानी आज भी लाहौल घाटी की संस्कृति को जानने के लिए ग्रामीण इलाकों का रुख कर रहे हैं और पुराने मिट्टी के बने घरों में ठहरना पसंद कर रहे हैं.

पर्यटकों को दी जाती है स्थानीय व्यंजनों को बनाने की जानकारी
पर्यटकों को दी जाती है स्थानीय व्यंजनों को बनाने की जानकारी (ETV Bharat)

मड हाउस की तरफ बढ़ा रुझान

लाहौल घाटी के स्थानीय निवासी दिनेश कुमार, किशन लाल, प्रेमलाल का कहना है कि लाहौल घाटी में अब टनल बनने के बाद सैलानियों की संख्या बढ़ी है और यहां पर होमस्टे का कारोबार भी बढ़ रहा है. मिट्टी के घरों में भी अब सैलानियों को अच्छी सुविधाएं दी जा रही हैं. घाटी में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी के घरों को भी संरक्षण किया जा रहा है. इससे जहां पुरानी विरासत सहेजी जा रही है. वहीं सैलानियों को भी पुराने घरों में रहने का मौका मिल रहा है.

लाहौल स्पीति का स्थानीय व्यंजन
लाहौल स्पीति का स्थानीय व्यंजन (ETV Bharat)

80 साल पुराना घर सैलानियों का बना अड्डा

सुषमा का कहना है कि 'हमारा मड हाउस 80 साल पुराना है. अटल टनल के बाद सैलानियों की संख्या बढ़ी. सैलानियों का रुझान होटल में न होकर टेंट या होमस्टे की ओर मुड़ा तो मेरे मन भी में भी ये ख्याल आया कि क्यों ना हम सैलानियों को मिट्टी के घरों में रहने का आनंद दें. इसी के चलते हमने इस 80 साल पुराने मकान की मिट्टी से ही मरम्मत की और इसे सैलानियों के लिए तैयार किया. आज सैलानी इस मिट्टी के घर में ठहरने के लिए हमसे संपर्क करते हैं. हमारे पास लोग एडवांस में ही बुकिंग के लिए भी कॉल करते हैं.'

मड हाउस चलाने वाली सुषमा
मड हाउस चलाने वाली सुषमा (ETV Bharat)

ठंड में भी गर्म और पर्यावरण के अनुकूल आशियाना

गौर रहे की लाहौल स्पीति जिला में पुराने दौर में मिट्टी और लकड़ी से ही घरों को तैयार किया जाता था. लाहौल स्पीति के पर्यावरण में बारिश ना मात्र ही होती है. इससे मड हाउस जल्दी खराब भी नहीं होता है. दूसरा भारी बर्फबारी के चलते यहां पर घरों को सर्दियों के दौरान गर्म रखने में भी मिट्टी के घर अपनी विशेष भूमिका निभाते हैं. क्योंकि मिट्टी और लकड़ी के बने घर जल्दी ठंडे नहीं होते हैं और गर्मी बनाए रखते हैं. लाहौल घाटी में कंक्रीट के घर भी बने शुरू हो गए हैं, लेकिन आज भी लोग मिट्टी के घरों में रहना पसंद करते हैं. ये घर सर्दियों में भीतर से काफी गर्म होते हैं और इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. मिट्टी का घर बनाने के लिए लकड़ी और मिट्टी के गारे में घास डालकर इसे तैयार किया जाता है. इसकी छत पर पहले लड़कियां और झाड़ियां बिछाई जाती है और उसके ऊपर मिट्टी का लेप किया जाता है.

2 हजार रुपये है मड की एक रात का किराया
2 हजार रुपये है मड की एक रात का किराया (ETV Bharat)

मिट्टी के घरों में हो रहा अलग दुनिया का एहसास

गुजरात से लाहौल घाटी घूमने आए पर्यटक जितेंद्र शाह, राखी शाह, हितेंद्र सिंह का कहना है कि 'हमने अपने बुजुर्गों से सुना था कि वो लोग भी पहले मिट्टी के घरों में रहते थे, लेकिन अब गांव में भी पक्के मकान बनना शुरू हो गए हैं, लेकिन लाहौल घाटी में हमें मिट्टी के घर देखने को मिले और हम यहां रहकर अब उस दौर को याद करना चाहते हैं कि किस तरह से पुराने समय में मिट्टी के घरों में लोग रहते थे. मिट्टी के घर एक बेहतर वातानुकूलित घर हैं और यहां पर रहकर हमें अलग ही दुनिया का एहसास हो रहा है.'

80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस
80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस (ETV Bharat)

पारंपरिक घर, आधुनिक सोच

लाहौल स्पीति में बने मड हाउस न केवल पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि इससे सांस्कृतिक विरासत भी संरक्षित रही है. सुषमा का कहना है कि 'हमारे मड हाउस में तीन कमरे हैं और सैलानियों से ₹2000 प्रतिदिन के हिसाब से इसका किराया लिया जाता है. गर्मी के सीजन के दौरान दो लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है, क्योंकि लाहौल में ठंड अधिक होने के चलते गर्मियों के मौसम में सैलानी अधिक आते हैं. घर में कृषि के साथ-साथ मड हाउस के संचालन से भी अतिरिक्त आय हो रही है और परिवार के लोग भी इसमें काफी सहयोग कर रहे हैं.' सुषमा का प्रयास न केवल पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि लुप्त हो रही विरासत को भी सहेज रहा है.

सुषमा के मड हाउस में आ चुके हैं रघुवंशी
सुषमा के मड हाउस में आ चुके हैं गायक रघुवंशी (ETV Bharat)

लाहौल की राह पर चलने लगे और भी गांव

बंजार घाटी के पर्यटन कारोबारी किशन लाल, चमन ठाकुर, मेहर चंद का कहना है कि ग्रामीण अब मिट्टी के घर तैयार कर रहे हैं, क्योंकि सैलानी कंक्रीट की जगह मिट्टी के बने घरों में रहना पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा जो घर ग्रामीण इलाकों में क्षतिग्रस्त भी हो गए थे उसकी भी लोग दोबारा मरम्मत करवा रहे हैं, ताकि सैलानी इन्हें पसंद करें. लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है.

लाहौल स्पीति में मड हाउस चलाती हैं सुषमा
लाहौल स्पीति में मड हाउस चलाती हैं सुषमा (ETV Bharat)

मड हाउस क्या है?

मड हाउस, यानी मिट्टी से बना घर, प्रकृति के करीब रहने का एक पारंपरिक और टिकाऊ तरीका है. ऐसे घरों में लकड़ी और मिट्टी के गारे को मिलाकर दीवारें बनाई जाती हैं, जिनमें घास या सूखे पत्ते भी मिलाए जाते हैं ताकि दीवारें मजबूत और टिकाऊ बनें. छत पर पहले झाड़ियां और घास बिछाई जाती हैं, उसके ऊपर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है, जो घर को सर्दियों में गर्म और बारिश में ठंडा रखती है.

ये भी पढ़ें: गांव में पहुंच गए भालू के दो नन्हे शावक, फिर लोगों ने किया गजब का काम

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी, जहां प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. वहीं, इस घाटी की एक साधारण महिला सुषमा ने अपनी दूरदृष्टि और मेहनत से इस क्षेत्र को सतत पर्यटन की दिशा में एक नई पहचान दी है. आज के दौर में जहां पर्यटन तेजी से व्यवसाय का रूप ले चुका है, वहीं इको-फ्रेंडली और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है. ऐसे में यांग थांग गांव की रहने वाली सुषमा न केवल एक महिला उद्यमी के रूप में उभरी हैं. उन्होंने मड हाउस को चलाने का नायाब तरीका ढूंढा है.

सुषमा ने भी 80 साल पुराने घर को सैलानियों के लिए मड हाउस के रूप में तैयार किया और आज देश-विदेश से सैलानी इस मिट्टी के घर यानि मड हाउस में ठहरने के लिए आ रहे हैं. इससे सुषमा लाखों कमा रही हैं. यह घर पारंपरिक लाहौल की स्थापत्य कला और स्थानीय जीवनशैली का जीता-जागता उदाहरण है. उन्होंने घर की मरम्मत उसी पारंपरिक शैली और स्थानीय मिट्टी से की, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हुई, बल्कि सांस्कृतिक विरासत भी संरक्षित रही. इतना ही नहीं वो यहां पर ठहर कर स्थानीय संस्कृति, खान-पान और कृषि से जुड़े अनुभवों को भी हासिल कर रहे हैं. लाहौल घाटी के यांग थांग गांव की रहने वाले सुषमा अपने पति प्रताप सिंह के साथ मिलकर इस मड हाउस का संचालन कर रही हैं.

80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस
80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस (ETV Bharat)

परोसे जाते हैं स्थानीय व्यंजन

सुषमा बड़े नायाब तरीके से पर्यटकों से जुड़ती हैं. सुषमा ने बताया कि 'इस मड हाउस में सैलानियों को ठहरने के साथ-साथ स्थानीय खानपान के बारे में भी जानकारी दी जाती है और यहां ठहरने वाले सैलानियों को सिर्फ कुल्लू और लाहौल स्पीति के व्यंजन ही परोसे जाते हैं. सैलानी अगर खुद अपने हाथों से लाहौल या फिर कुल्लू के स्थानीय व्यंजन तैयार करना चाहें तो वो इसे खुद भी तैयार कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें हर चीज उपलब्ध करवा दी जाती है. वहीं सैलानी पारंपरिक व्यंजनों की ओर भी अपना खासा रुझान दिखाते हैं. पारंपरिक व्यंजनों जैसे मार्चू, बाड़ी, चिल्लड़ा, टीम्मू, सिड्डू को बनाने की विधि भी हम सैलानियों को सीखाते हैं, ताकि घर में इसे तैयार कर सकें. इसके साथ ही यहां के कल्चर, इतिहास के बारे में भी बहुत कुछ सीखते हैं. शहरी लोगों में इसका ज्यादा क्रेज दिखता है.'

सुषमा के साथ पर्यटक भी खेतीबाड़ी में बंटाते हैं हाथ
सुषमा के साथ पर्यटक भी खेतीबाड़ी में बंटाते हैं हाथ (ETV Bharat)

संस्कृति, स्वाद और सीख... सब एक जगह

सुषमा का यह मड हाउस केवल एक ठहरने की जगह नहीं, बल्कि एक अनुभव का केंद्र बन चुका है, जहां पर्यटक स्थानीय खान-पान, संस्कृति, परंपराएं और कृषि जीवनशैली को नजदीक से समझते हैं. पर्यटक खुद भी स्थानीय व्यंजनों को बनाना सीख सकते हैं. सुषमा मड हाउस चलाने के साथ साथ-साथ खेतीबाड़ी करती हैं. सुषमा बताती हैं कि मड हाउस में आने वाले मेहमानों को खेतों में उगाई जानी वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों के बारे में भी जानकारी दी जाती है. कई बार सैलानी हमारे साथ मिलकर खेती के काम में भी सहयोग करते हैं. इससे सैलानी खुशी और रोमांच महसूस करते हैं.

स्थानीय व्यंजन घीबाड़ी
स्थानीय व्यंजन घीबाड़ी (ETV Bharat)

वीरानी से रौनक तक...लाहौल की नई कहानी

सुषमा के मड हाउस में आज रौनक है. खुशियों के रंगों से सराबोर है, लेकिन एक समय यहां वीरानी ही बसती थी, लेकिन जैसे ही अटल टनल की शुरुआत हुई लाहौल घाटी का जनजीवन अब पूरी तरह से बदल गया है. अटल टनल बनने से 12 महीने लाहौल घाटी में वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई. इसी के साथ यहां पर पर्यटन के क्षेत्र में भी नए आयाम स्थापित हो रहे हैं. देश विदेश से 12 महीने अब यहां पर्यटक पहुंच रहे हैं. इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल रहा है. यहां लोग होम स्टे, मड हाउस में ठहरना पसंद करते हैं. लाहौल घाटी में हालांकि अब नए होटल और गेस्ट हाउस का भी निर्माण हो रहा है, लेकिन सैलानी आज भी लाहौल घाटी की संस्कृति को जानने के लिए ग्रामीण इलाकों का रुख कर रहे हैं और पुराने मिट्टी के बने घरों में ठहरना पसंद कर रहे हैं.

पर्यटकों को दी जाती है स्थानीय व्यंजनों को बनाने की जानकारी
पर्यटकों को दी जाती है स्थानीय व्यंजनों को बनाने की जानकारी (ETV Bharat)

मड हाउस की तरफ बढ़ा रुझान

लाहौल घाटी के स्थानीय निवासी दिनेश कुमार, किशन लाल, प्रेमलाल का कहना है कि लाहौल घाटी में अब टनल बनने के बाद सैलानियों की संख्या बढ़ी है और यहां पर होमस्टे का कारोबार भी बढ़ रहा है. मिट्टी के घरों में भी अब सैलानियों को अच्छी सुविधाएं दी जा रही हैं. घाटी में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी के घरों को भी संरक्षण किया जा रहा है. इससे जहां पुरानी विरासत सहेजी जा रही है. वहीं सैलानियों को भी पुराने घरों में रहने का मौका मिल रहा है.

लाहौल स्पीति का स्थानीय व्यंजन
लाहौल स्पीति का स्थानीय व्यंजन (ETV Bharat)

80 साल पुराना घर सैलानियों का बना अड्डा

सुषमा का कहना है कि 'हमारा मड हाउस 80 साल पुराना है. अटल टनल के बाद सैलानियों की संख्या बढ़ी. सैलानियों का रुझान होटल में न होकर टेंट या होमस्टे की ओर मुड़ा तो मेरे मन भी में भी ये ख्याल आया कि क्यों ना हम सैलानियों को मिट्टी के घरों में रहने का आनंद दें. इसी के चलते हमने इस 80 साल पुराने मकान की मिट्टी से ही मरम्मत की और इसे सैलानियों के लिए तैयार किया. आज सैलानी इस मिट्टी के घर में ठहरने के लिए हमसे संपर्क करते हैं. हमारे पास लोग एडवांस में ही बुकिंग के लिए भी कॉल करते हैं.'

मड हाउस चलाने वाली सुषमा
मड हाउस चलाने वाली सुषमा (ETV Bharat)

ठंड में भी गर्म और पर्यावरण के अनुकूल आशियाना

गौर रहे की लाहौल स्पीति जिला में पुराने दौर में मिट्टी और लकड़ी से ही घरों को तैयार किया जाता था. लाहौल स्पीति के पर्यावरण में बारिश ना मात्र ही होती है. इससे मड हाउस जल्दी खराब भी नहीं होता है. दूसरा भारी बर्फबारी के चलते यहां पर घरों को सर्दियों के दौरान गर्म रखने में भी मिट्टी के घर अपनी विशेष भूमिका निभाते हैं. क्योंकि मिट्टी और लकड़ी के बने घर जल्दी ठंडे नहीं होते हैं और गर्मी बनाए रखते हैं. लाहौल घाटी में कंक्रीट के घर भी बने शुरू हो गए हैं, लेकिन आज भी लोग मिट्टी के घरों में रहना पसंद करते हैं. ये घर सर्दियों में भीतर से काफी गर्म होते हैं और इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. मिट्टी का घर बनाने के लिए लकड़ी और मिट्टी के गारे में घास डालकर इसे तैयार किया जाता है. इसकी छत पर पहले लड़कियां और झाड़ियां बिछाई जाती है और उसके ऊपर मिट्टी का लेप किया जाता है.

2 हजार रुपये है मड की एक रात का किराया
2 हजार रुपये है मड की एक रात का किराया (ETV Bharat)

मिट्टी के घरों में हो रहा अलग दुनिया का एहसास

गुजरात से लाहौल घाटी घूमने आए पर्यटक जितेंद्र शाह, राखी शाह, हितेंद्र सिंह का कहना है कि 'हमने अपने बुजुर्गों से सुना था कि वो लोग भी पहले मिट्टी के घरों में रहते थे, लेकिन अब गांव में भी पक्के मकान बनना शुरू हो गए हैं, लेकिन लाहौल घाटी में हमें मिट्टी के घर देखने को मिले और हम यहां रहकर अब उस दौर को याद करना चाहते हैं कि किस तरह से पुराने समय में मिट्टी के घरों में लोग रहते थे. मिट्टी के घर एक बेहतर वातानुकूलित घर हैं और यहां पर रहकर हमें अलग ही दुनिया का एहसास हो रहा है.'

80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस
80 साल पुराना है सुषमा का मड हाउस (ETV Bharat)

पारंपरिक घर, आधुनिक सोच

लाहौल स्पीति में बने मड हाउस न केवल पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि इससे सांस्कृतिक विरासत भी संरक्षित रही है. सुषमा का कहना है कि 'हमारे मड हाउस में तीन कमरे हैं और सैलानियों से ₹2000 प्रतिदिन के हिसाब से इसका किराया लिया जाता है. गर्मी के सीजन के दौरान दो लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है, क्योंकि लाहौल में ठंड अधिक होने के चलते गर्मियों के मौसम में सैलानी अधिक आते हैं. घर में कृषि के साथ-साथ मड हाउस के संचालन से भी अतिरिक्त आय हो रही है और परिवार के लोग भी इसमें काफी सहयोग कर रहे हैं.' सुषमा का प्रयास न केवल पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि लुप्त हो रही विरासत को भी सहेज रहा है.

सुषमा के मड हाउस में आ चुके हैं रघुवंशी
सुषमा के मड हाउस में आ चुके हैं गायक रघुवंशी (ETV Bharat)

लाहौल की राह पर चलने लगे और भी गांव

बंजार घाटी के पर्यटन कारोबारी किशन लाल, चमन ठाकुर, मेहर चंद का कहना है कि ग्रामीण अब मिट्टी के घर तैयार कर रहे हैं, क्योंकि सैलानी कंक्रीट की जगह मिट्टी के बने घरों में रहना पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा जो घर ग्रामीण इलाकों में क्षतिग्रस्त भी हो गए थे उसकी भी लोग दोबारा मरम्मत करवा रहे हैं, ताकि सैलानी इन्हें पसंद करें. लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है.

लाहौल स्पीति में मड हाउस चलाती हैं सुषमा
लाहौल स्पीति में मड हाउस चलाती हैं सुषमा (ETV Bharat)

मड हाउस क्या है?

मड हाउस, यानी मिट्टी से बना घर, प्रकृति के करीब रहने का एक पारंपरिक और टिकाऊ तरीका है. ऐसे घरों में लकड़ी और मिट्टी के गारे को मिलाकर दीवारें बनाई जाती हैं, जिनमें घास या सूखे पत्ते भी मिलाए जाते हैं ताकि दीवारें मजबूत और टिकाऊ बनें. छत पर पहले झाड़ियां और घास बिछाई जाती हैं, उसके ऊपर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है, जो घर को सर्दियों में गर्म और बारिश में ठंडा रखती है.

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Last Updated : June 6, 2025 at 7:57 PM IST
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