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नशे के शिकार मानसिक रूप से बीमार, मारपीट नहीं बल्कि इलाज से बचेगा युवाओं का भविष्य - DRUG PREVENTION CENTER BHUNTAR

भुंतर में नशा निवारण-पुनर्वास केंद्र स्थापित किया गया है. यहां 15 हजार से अधिक नशे के शिकार लोगों का इलाज किया जा चुका है.

नशा निवारण-पुनर्वास केंद्र भुंतर
नशा निवारण-पुनर्वास केंद्र भुंतर (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : March 18, 2025 at 7:30 PM IST

6 Min Read

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में नशे के दलदल में धंस चुके प्रदेश भर के 15 हजार से अधिक मरीजों को भुंतर का नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र नया जीवन दे चुका है. ऐसे में अभी भी लगातार युवाओं को नशे के दलदल से बाहर निकालने के प्रयास जारी हैं और युवाओं को मुख्य धारा में लाने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों का सहयोग भी काफी जरूरी है. नशा मुक्ति केंद्र में इलाज लेने वाले मरीज, जिन्हें किसी न किसी वजह से नशे की लत लग गई थी, लेकिन उपचार और काउंसलिंग के बाद स्वस्थ होकर अब अपना स्वरोजगार अपना चुके हैं.

जिला कुल्लू के भुंतर में स्वास्थ्य विभाग ने एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र स्थापित किया है. इसमें जुलाई 2022 से अब तक प्रदेशभर के 15,000 मरीजों का उपचार किया गया है.इन मरीजों में पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल हैं.भुंतर स्थित एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र में ड्रग एडिक्ट पुरुषों के साथ महिलाओं का भी इलाज किया जा रहा है और ये प्रदेश का पहला ऐसा स्वास्थ्य संस्थान है.

मारपीट नहीं बल्कि इलाज से बचेगा युवाओं का भविष्य (ETV BHARAT)

नशा निवारण केंद्र में 39 बिस्तरों की व्यवस्था

एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र भुंतर के नोडल अधिकारी डॉक्टर सत्यव्रत देने बताया कि बीते ढाई साल में 15000 की ओपीडी दर्ज की गई है, जिसमें प्रदेश भर के विभिन्न इलाकों से महिला और पुरुष अपना इलाज करवाने आए हैं. यहां पर एक साइकोलॉजिस्ट भी शामिल हैं और तीन विशेषज्ञ डॉक्टर भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. संस्थान में मरीजों का उपचार के लिए 34 बिस्तरों की व्यवस्था है. केंद्र में दो वार्ड स्थापित किए गए हैं, जिनमें एक महिला और एक पुरुष वार्ड है. ये सभी वार्ड अलग-अलग भवन में बने है. पुरुष वार्ड में 19 और महिला वार्ड में 15 बिस्तरों की भी व्यवस्था है. इसके अलावा नशे से बचने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है और हेल्पलाइन के माध्यम से भी नशे से बचाव के बारे में काउंसलिंग की जाती है.

नशे का शिकार युवा मानसिक रूप से बीमार

एकीकृत नशा निवारण संस्थान के नोडल अधिकारी डॉ. सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि लोग नशे के शिकार युवाओं के साथ मारपीट कर रहे हैं और उनका वीडियो भी सोशल मीडिया में डाल रहे हैं, जो बिल्कुल भी सही नहीं है. नशे का शिकार युवक मानसिक रूप से बीमार है और मारपीट से नहीं बल्कि इलाज से उन्हें नशे से मुक्ति दिलाई जा सकती है. अगर किसी को नशे का शिकार युवक मिलता है तो वह इस बारे पुलिस पंचायत या स्वास्थ्य विभाग से संपर्क कर सकता है, ताकि समय पर उसे इलाज मिल सके और वो समाज की मुख्य धारा में वापस आ सके.'

समाज के सहयोग की जरूरत

डॉ सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'कई बार यह भी देखा गया है कि युवक अपना इलाज करवाने के बाद नशे को छोड़ देता है, लेकिन समाज में उसके प्रति लोगों की धारणा बिल्कुल भी नहीं बदलती, जिससे वो फिर से मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है और फिर से नशा करना शुरू कर देता है. ऐसे में समाज को भी चाहिए कि वो इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए. कुछ युवक संस्थान से इलाज करवा कर वापस समाज में लौटे, लेकिन उन्हें कोई काम देने को तैयार नहीं था. ऐसे में सबसे पहले उन्हें अस्पताल के रंग रोगन का कार्य दिया गया, जो उन्होंने सफलतापूर्वक किया अब समाज के लोग भी उन्हें रोजगार दे रहे हैं. अगर नशा छोड़कर कोई युवक रोजगार करना चाहता है तो समाज की भी जिम्मेदारी है कि वो उसे रोजगार के लिए मौका दें, ताकि वो दोबारा इस बुराई में ना फंस सके.'

नशे के शिकार युवकों से न मारपीट

डॉक्टर सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'नशे के शिकार युवाओं को किस तरह से कानूनी सहायता दी जाए. इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों और पुलिस के अधिकारियों को भी मेंटल हेल्थ एक्ट के बारे में जानकारी दी जाती है. पंचायत और पुलिस का कर्तव्य है कि वह ऐसे युवाओं को स्वास्थ्य विभाग के पास लाए और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा उनका इलाज पूरी तरह से निशुल्क किया जाता है. पुलिस को भी चाहिए कि वो ऐसे युवकों के साथ मारपीट ना करें, बल्कि नशे से दूर रहने के बारे में उन्हें प्रेरित करें. पंचायत और पुलिस की सजगता से नशे जैसी बुराई पर काबू पाया जा सकता है और यह सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि मानसिक रूप से बीमार इन युवकों का इलाज कर उन्हें फिर से मुख्य धारा के साथ जोड़ा जाए.'

शौक के लिए अपनाते हैं नशा

डॉक्टर सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'नशे के 90% मामलों में युवा शौक के लिए इन चीजों को अपनाते हैं और उसके बाद वो इन चीजों के आदी हो जाते हैं. अभिभावकों का भी ये कर्तव्य बनता है कि वो अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें. अगर बच्चा अपने आप को कमरे में अकेला बंद करता है या फिर उसके खर्च बढ़ जाते हैं, तो तुरंत वो उसकी सभी हरकतों को नोट करें. समय रहते अगर युवकों को इलाज मिल जाए तो वह इस नशे से पूरी तरह से मुक्त हो सकते हैं. अगर नशा छोड़ने के बाद भी कोई युवक काउंसलिंग लेता है तो उसे पूरी तरह से नशा मुक्त माना जाता है, लेकिन अगर कोई इलाज के बाद काउंसलिंग नहीं ले रहा है तो इसका मतलब है कि वह फिर से नशे की चपेट में आ चुका है. ऐसे में समाज के साथ-साथ अभिभावकों की भी यह बड़ी जिम्मेदारी है.'

3 हजार मरीजों का चल रहा इलाज

वर्तमान में यहां पर 3000 मरीज का उपचार चल रहा है. संस्थान में 15 मरीज उपचार के लिए भर्ती हैं, जिसमें 12 पुरुष और तीन महिलाएं शामिल है. बाकी मरीजों का इलाज काउंसलिंग, फोन के माध्यम से भी हो रहा है. इस केंद्र में मरीजों के उपचार के साथ-साथ काउंसलिंग की भी सुविधा दी जा रही है, ताकि काउंसलिंग के माध्यम से मरीज अपने आप को स्वस्थ महसूस कर सकें और स्वरोजगार के लिए भी वह अपने आप को किसी मुख्य धारा में जोड़ सकें.'

ये भी पढ़ें: चौथी क्लास से लगी लत, 19 साल तक ड्रग्स एडिक्ट रहने के बाद आज छुड़वा रहे लोगों का नशा

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में नशे के दलदल में धंस चुके प्रदेश भर के 15 हजार से अधिक मरीजों को भुंतर का नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र नया जीवन दे चुका है. ऐसे में अभी भी लगातार युवाओं को नशे के दलदल से बाहर निकालने के प्रयास जारी हैं और युवाओं को मुख्य धारा में लाने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों का सहयोग भी काफी जरूरी है. नशा मुक्ति केंद्र में इलाज लेने वाले मरीज, जिन्हें किसी न किसी वजह से नशे की लत लग गई थी, लेकिन उपचार और काउंसलिंग के बाद स्वस्थ होकर अब अपना स्वरोजगार अपना चुके हैं.

जिला कुल्लू के भुंतर में स्वास्थ्य विभाग ने एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र स्थापित किया है. इसमें जुलाई 2022 से अब तक प्रदेशभर के 15,000 मरीजों का उपचार किया गया है.इन मरीजों में पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल हैं.भुंतर स्थित एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र में ड्रग एडिक्ट पुरुषों के साथ महिलाओं का भी इलाज किया जा रहा है और ये प्रदेश का पहला ऐसा स्वास्थ्य संस्थान है.

मारपीट नहीं बल्कि इलाज से बचेगा युवाओं का भविष्य (ETV BHARAT)

नशा निवारण केंद्र में 39 बिस्तरों की व्यवस्था

एकीकृत नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्र भुंतर के नोडल अधिकारी डॉक्टर सत्यव्रत देने बताया कि बीते ढाई साल में 15000 की ओपीडी दर्ज की गई है, जिसमें प्रदेश भर के विभिन्न इलाकों से महिला और पुरुष अपना इलाज करवाने आए हैं. यहां पर एक साइकोलॉजिस्ट भी शामिल हैं और तीन विशेषज्ञ डॉक्टर भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. संस्थान में मरीजों का उपचार के लिए 34 बिस्तरों की व्यवस्था है. केंद्र में दो वार्ड स्थापित किए गए हैं, जिनमें एक महिला और एक पुरुष वार्ड है. ये सभी वार्ड अलग-अलग भवन में बने है. पुरुष वार्ड में 19 और महिला वार्ड में 15 बिस्तरों की भी व्यवस्था है. इसके अलावा नशे से बचने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है और हेल्पलाइन के माध्यम से भी नशे से बचाव के बारे में काउंसलिंग की जाती है.

नशे का शिकार युवा मानसिक रूप से बीमार

एकीकृत नशा निवारण संस्थान के नोडल अधिकारी डॉ. सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि लोग नशे के शिकार युवाओं के साथ मारपीट कर रहे हैं और उनका वीडियो भी सोशल मीडिया में डाल रहे हैं, जो बिल्कुल भी सही नहीं है. नशे का शिकार युवक मानसिक रूप से बीमार है और मारपीट से नहीं बल्कि इलाज से उन्हें नशे से मुक्ति दिलाई जा सकती है. अगर किसी को नशे का शिकार युवक मिलता है तो वह इस बारे पुलिस पंचायत या स्वास्थ्य विभाग से संपर्क कर सकता है, ताकि समय पर उसे इलाज मिल सके और वो समाज की मुख्य धारा में वापस आ सके.'

समाज के सहयोग की जरूरत

डॉ सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'कई बार यह भी देखा गया है कि युवक अपना इलाज करवाने के बाद नशे को छोड़ देता है, लेकिन समाज में उसके प्रति लोगों की धारणा बिल्कुल भी नहीं बदलती, जिससे वो फिर से मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है और फिर से नशा करना शुरू कर देता है. ऐसे में समाज को भी चाहिए कि वो इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए. कुछ युवक संस्थान से इलाज करवा कर वापस समाज में लौटे, लेकिन उन्हें कोई काम देने को तैयार नहीं था. ऐसे में सबसे पहले उन्हें अस्पताल के रंग रोगन का कार्य दिया गया, जो उन्होंने सफलतापूर्वक किया अब समाज के लोग भी उन्हें रोजगार दे रहे हैं. अगर नशा छोड़कर कोई युवक रोजगार करना चाहता है तो समाज की भी जिम्मेदारी है कि वो उसे रोजगार के लिए मौका दें, ताकि वो दोबारा इस बुराई में ना फंस सके.'

नशे के शिकार युवकों से न मारपीट

डॉक्टर सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'नशे के शिकार युवाओं को किस तरह से कानूनी सहायता दी जाए. इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों और पुलिस के अधिकारियों को भी मेंटल हेल्थ एक्ट के बारे में जानकारी दी जाती है. पंचायत और पुलिस का कर्तव्य है कि वह ऐसे युवाओं को स्वास्थ्य विभाग के पास लाए और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा उनका इलाज पूरी तरह से निशुल्क किया जाता है. पुलिस को भी चाहिए कि वो ऐसे युवकों के साथ मारपीट ना करें, बल्कि नशे से दूर रहने के बारे में उन्हें प्रेरित करें. पंचायत और पुलिस की सजगता से नशे जैसी बुराई पर काबू पाया जा सकता है और यह सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि मानसिक रूप से बीमार इन युवकों का इलाज कर उन्हें फिर से मुख्य धारा के साथ जोड़ा जाए.'

शौक के लिए अपनाते हैं नशा

डॉक्टर सत्यव्रत वैद्य ने बताया कि, 'नशे के 90% मामलों में युवा शौक के लिए इन चीजों को अपनाते हैं और उसके बाद वो इन चीजों के आदी हो जाते हैं. अभिभावकों का भी ये कर्तव्य बनता है कि वो अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें. अगर बच्चा अपने आप को कमरे में अकेला बंद करता है या फिर उसके खर्च बढ़ जाते हैं, तो तुरंत वो उसकी सभी हरकतों को नोट करें. समय रहते अगर युवकों को इलाज मिल जाए तो वह इस नशे से पूरी तरह से मुक्त हो सकते हैं. अगर नशा छोड़ने के बाद भी कोई युवक काउंसलिंग लेता है तो उसे पूरी तरह से नशा मुक्त माना जाता है, लेकिन अगर कोई इलाज के बाद काउंसलिंग नहीं ले रहा है तो इसका मतलब है कि वह फिर से नशे की चपेट में आ चुका है. ऐसे में समाज के साथ-साथ अभिभावकों की भी यह बड़ी जिम्मेदारी है.'

3 हजार मरीजों का चल रहा इलाज

वर्तमान में यहां पर 3000 मरीज का उपचार चल रहा है. संस्थान में 15 मरीज उपचार के लिए भर्ती हैं, जिसमें 12 पुरुष और तीन महिलाएं शामिल है. बाकी मरीजों का इलाज काउंसलिंग, फोन के माध्यम से भी हो रहा है. इस केंद्र में मरीजों के उपचार के साथ-साथ काउंसलिंग की भी सुविधा दी जा रही है, ताकि काउंसलिंग के माध्यम से मरीज अपने आप को स्वस्थ महसूस कर सकें और स्वरोजगार के लिए भी वह अपने आप को किसी मुख्य धारा में जोड़ सकें.'

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