देहरादून: वित्तीय वर्ष 2024-25 का आखिरी महीना उत्तराखंड के लिए काफी चर्चाओं भरा रहा. मार्च शुरुआत से महीना खत्म होने के दौरान तमाम मुद्दे ऐसे रहे जिनसे न सिर्फ राजनीति गर्माती दिखाई दी, बल्कि तमाम मुद्दों ने देश भर का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया. इसके साथ ही अपने एक विवादित बयान के चलते कैबिनेट मंत्री को अपने मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा. कुल मिलाकर बीता मार्च का महीना राजनीतिक लिहाज से काफी अधिक चर्चाओं भरा रहा है.
मार्च में हुई राजनीति घमासान: फरवरी महीने में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन के भीतर तात्कालिक संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की ओर से दिए गए विवादित बयान के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई. साथ ही प्रदेश में पहाड़ी और प्लेन के विवाद ने जन्म ले लिया. आलम ये हो गया कि मार्च का महीना शुरू होते-होते ये विवाद और अधिक गहरा गया और प्रदेश भर में चर्चाओं का विषय बन गया. इसने देशभर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. इस पूरे मामले में सरकार और पार्टी की काफी अधिक फजीहत हुई. दरअसल शुरुआती दौर में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट भी प्रेमचंद अग्रवाल को बचाते नजर आए थे.
महेंद्र भट्ट के 'सड़क छाप नेता' वाले बयान पर मचा घमासान: प्रदेश भर में प्रेमचंद अग्रवाल के मामले को लेकर राजनीतिक सियासत गरमाई हुई थी. तमाम विपक्षी दल और सामाजिक संगठन लगातार प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफा की मांग कर रहे थे. इसी बीच गैरसैंण में तमाम राज्य आंदोलनकारी, पूर्व सैनिक और रिटायर्ड कर्मचारी भी प्रेमचंद अग्रवाल के बयान का विरोध करते हुए धरना प्रदर्शन कर रहे थे. इस पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि जो नेता धरना दे रहे हैं वह आगामी 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर कर रहे हैं और यह सभी लोग सड़क छाप नेता हैं. इसके चलते प्रदेश में महेंद्र भट्ट के बयान के बाद और अधिक विवाद गहरा गया.

कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद को देना पड़ा इस्तीफा: उत्तराखंड राज्य में पहाड़ी प्लेन का विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि इससे सरकार और संगठन की फजीहत होने लगी. यही नहीं यह पूरा मामला भाजपा आलाकमान तक भी पहुंच गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार कुछ निर्णय लेती, इससे पहले ही भाजपा आलाकमान की ओर से एक बड़ा निर्णय लिया गया, जिसके चलते कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके चलते 16 मार्च को तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने प्रेस वार्ता कर प्रदेश की जनता से खेद व्यक्त किया. साथ ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात कर मंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया.
कैबिनेट विस्तार की चर्चाएं हुई तेज: उत्तराखंड में जब प्लेन-पहाड़ विवाद चल रहा था, इसी दौरान मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं भी जोरों से चल रही थी. 16 मार्च को प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चाएं और अधिक तेज हो गईं. उसी दौरान संभावना जताई जा रही थी कि धामी मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल हो सकता है, लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दिया. राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं थी कि मार्च का महीना खत्म होते-होते धामी मंत्रिमंडल में कुछ नए चेहरे शामिल हो सकते हैं. ऐसे में अब संभावना जताई जा रही है कि अप्रैल महीने में ही न सिर्फ मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, बल्कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चयन के साथ ही तमाम बड़े नेताओं को दायित्व से नवाजा जा सकता है.

सरकार के 3 साल, सीएम धामी ने प्लेन पहाड़ विवाद पर पहली बार दिया बयान: उत्तराखंड में लंबे समय से क्षेत्रवाद को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ था. इसी क्षेत्रवाद के विवाद के चलते मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. बावजूद इसके यह मामला शांत नहीं हो पाया था. ऐसे में धामी सरकार 2.0 के कार्यकाल को 3 साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 23 मार्च को जहां तमाम बड़ी घोषणाएं की, वहीं क्षेत्रवाद और जातिवाद को लेकर भी बड़ा तंज कसा था. उन्होंने कहा कि "कुछ लोग जो बोलने में सावधानी नहीं रखते हैं, उनके कारण प्रदेश में कभी-कभी जातिवाद और क्षेत्रवाद सुनाई पड़ता है." इसके बाद प्रदेश में एक और राजनीतिक बहस छिड़ गई. लेकिन धीरे-धीरे प्रदेश में पहाड़ी और प्लेन का विवाद शांत होने लगा.

अवैध मदरसों पर कार्रवाई को लेकर विवाद: उत्तराखंड में पिछले डेढ़ महीने से अवैध रूप से संचालित मदरसों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है. जब उत्तराखंड में पहाड़-प्लेन का विवाद चर्चाओं में था, इसी दौरान मदरसों पर हो रहे कार्रवाई का मामला भी गरमा गया. दरअसल, पिछले डेढ़ महीने के भीतर प्रदेश के कई जिलों में 160 से अधिक मदरसों पर कार्रवाई की जा चुकी है. सरकार का मानना है कि जिन मदरसों पर कार्रवाई की गई है, वो सभी मदरसे अवैध रूप से संचालित हो रहे थे. धामी सरकार को इन अवैध मदरसों को हवाला के जरिए फंडिंग मिलने का शक था, जिसकी जांच चल रही है. इसके चलते विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार की इस कार्रवाई पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. हालांकि, मुस्लिम संगठन की ओर से पहले ही अवैध मदरसों पर हो रही ताबड़तोड़ कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल की जा चुकी थी.

सांसद त्रिवेंद्र के खनन पर उठाए सवाल पर घमासान: राज्य में जहां एक ओर पहले से ही तमाम मुद्दों को लेकर घमासान मचा हुआ था, इसी बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 27 मार्च को संसद में अवैध खनन का मुद्दा उठा दिया. संसद के भीतर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशासन की मिलीभगत से अवैध खनन कर नदियों का नदियों का सीना चीरा जा रहा है. इससे विपक्ष को बैठे बिठाये एक नया मुद्दा मिल गया. विपक्ष ने इस मामले को लेकर सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की. इसी बीच खनन सचिव ने बयान जारी किया कि पहली बार धामी सरकार में खनन से होने वाला राजस्व 200 करोड़ के पार पहुंचा. इस पर सांसद त्रिवेंद्र रावत ने विवादित बयान दे दिया. इससे प्रदेश में बड़ा विवाद खड़ा हो गया. हालात ऐसे हो गए कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ उनकी पार्टी के लोग ही लामबंद हो गए.
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