नई दिल्ली: दिव्यांग लोग अपनी शारीरिक क्षमता के चलते अक्सर अपने आप को लाचार और बेबस महसूस करते हैं. लेकिन, इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो लाचारी और बेबसी के बावजूद कुछ करना चाहते हैं. अपने आप को सशक्त बनाना चाहते हैं और आत्मनिर्भर बनकर के जीना चाहते हैं. ऐसे ही लोगों की मदद के लिए मिट्टी ट्रस्ट मिट्टी कैफे चलाकर के उनकी जिंदगी में उजाला बिखेर रहा है. मिट्टी कैफे दिव्यांगों के सपनों को पंख देने का काम कर रहा है. इस मिट्टी ट्रस्ट की संस्थापक अलीना हैं. अलीना के द्वारा सबसे पहले मिट्टी कैफे बेंगलुरू में खोला गया और उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में दिल्ली का पहला मिट्टी कैफे खोला गया.
मिट्टी कैफे का संचालन सिर्फ दिव्यांग लोग ही करते हैं. इस कैफे को हंसराज कॉलेज के इनेक्टस टीम के द्वारा सहयोग किया जा रहा है. इनेक्टस टीम के सहयोग से ही इस कैफे को चलाने वाले दिव्यांग कर्मचारी की ट्रेनिंग होती है. हंसराज कॉलेज के अलावा दिल्ली के राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मिट्टी कैफे के कर्मचारियों को भी हंसराज कॉलेज की इनेक्टस टीम के द्वारा ट्रेनिंग दी गई है. हंसराज कॉलेज के मिट्टी कैफे में सात दिव्यांग काम करते हैं. इनमें एक कैशियर, दो कुक और चार सर्विस वेटर हैं.
राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट में भी मिट्टी कैफे आउटलेट: इसी तरह राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट के मिट्टी कैफे में भी सात से आठ लोगों की टीम काम करती है. इन कर्मचारियों को कैफे को किस तरह से चलाना है. उसका फाइनेंशियल मैनेजमेंट कैसे देखना है, किचन में किस तरह से काम करना है. डिलीवरी कैसे देनी है, इन सभी तौर तरीकों को सिखाने का काम हंसराज इनेक्टस की टीम के स्टूडेंट करते हैं. इनेक्टस दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी कॉलेजों में संचालित एक समिति है, जिसका काम वीकर सेक्शन और दिव्यांग लोगों के उत्थान के लिए करना है. इसी के तहत हंसराज कॉलेज की इनेक्टस टीम को दिव्यांग और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए काम करने का प्रोजेक्ट मिला है.
दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने का काम : इनेक्टस टीम प्रोजेक्ट एहसास के तहत दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने के लिए काम करती है तो वहीं, मेहर प्रोजेक्ट के तहत ट्रांसजेंडर को रोजगार परक ट्रेनिंग देकर के उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम करती है. मिट्टी कैफे को संचालित करने में भूमिका निभा रहीं इनेक्टस टीम की सदस्य दिव्या बब्बर ने बताया कि वह हंसराज कॉलेज में बीएससी ऑनर्स कंप्यूटर साइंस कोर्स की स्टूडेंट हैं. साथ ही इनेक्टस टीम की सदस्य हैं. वह मिट्टी कैफे में कार्यरत कर्मचारियों को टीम के सदस्यों के साथ मिलकर के ट्रेनिंग देने का काम करती हैं.
इनेक्टस टीम दिव्यांग कर्मचारियों को देती है ट्रेनिंग : इसके साथ ही मिट्टी कैफे में काम कर रहे दिव्यांग कर्मचारी को अगर कोई भी किसी भी तरीके की मदद की जरूरत पड़ती है तो मदद करने का काम भी इनेक्टस टीम के माध्यम से किया जाता है. वहीं, टीम की दूसरी सदस्य हिमांशी अग्रवाल ने बताया कि इनेक्टस टीम के सभी लोगों को दिव्यांग लोगों के लिए काम करने का प्रोजेक्ट एहसास दिया गया है, जिसमें हम उन लोगों के साथ काम करते हैं. इनेक्टस टीम के सदस्य अयान मुखर्जी ने बताया कि मिट्टी कैफे में काम करने वाले जो भी कर्मचारी होते हैं वह सभी दिव्यांग होते हैं और उनको दो सप्ताह की ट्रेनिंग दी जाती है. सुबह 9 से 5 बजे तक उनका ट्रेनिंग सेशन रहता है. उन्होंने बताया कि दिल्ली में मिट्टी कैफे की या एनसीआर में जो भी ब्रांचेज खुलेंगे उन सभी को भी ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी हमारी पूरी टीम के ऊपर है.
मिट्टी कैफे में काम करके दिव्यांग कर्मचारी खुश : मिट्टी कैफे में कैशियर का काम कर रहीं दिव्यांग ललिता ने बताया कि वह इससे पहले कहीं काम नहीं कर रही थीं. वह दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. इसलिए कहीं कोई इस तरह का काम नहीं मिला जिसे आसानी से कर सकें. जब मिट्टी कैफे के बारे में सुना और यह पता चला कि यहां सिर्फ दिव्यांग लोगों को ही काम मिलता है तो जॉब के लिए ट्राई किया. उसके बाद यहां पर जॉब मिली. अब पिछले एक साल से मैं कैशियर के तौर पर यहां काम कर रही हूं. इससे काफी मदद मिल रही है. समय से सैलरी मिलती है और काम करने में भी कोई दिक्कत नहीं है.
कैफे की कैशियर व्हीलचेयर पर बैठ कर करती है काम: कैशियर ललिता का कहना है कि मैं आसानी से व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे कैफे में काम कर लेती हूं. सुबह 8:30 बजे से 5:30 बजे तक कैफे पर काम करने की टाइमिंग है. उसके बाद घर चली जाती हूं. मैं नंद नगरी में अपने परिवार के साथ रहती हूं. कैफे में काम करने से जो वेतन मिलता है, उससे आगे की अपनी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हूं. अभी मैं लाइब्रेरियन की पोस्ट के लिए डीएसएसएसबी में आवेदन कर रखा है. उसके एग्जाम की भी तैयारी करती हूं.
काम के साथ पढ़ाई : यहां काम कर रही कुक तान्या ने बताया कि वह आंख में कम विजन की कमी से जूझ रही हैं. यहां पर काम मिला है तो इससे थोड़ा सा सपोर्ट है. थोड़ा आत्मविश्वास भी आया है. शाहदरा में रहती हूं और वहां से डेली बस से मिट्टी कैफे में ड्यूटी करने आती हैं. तान्या ने बताया कि वह मिट्टी कैफे में काम करने के अलावा इग्नू से हिंदी में मास्टर्स भी कर रही हैं. उन्हें बचपन से ही आंख में विजन की प्रॉब्लम थी. डॉक्टर ने बताया कि यह प्रॉब्लम ठीक नहीं हो सकती. इसके अलावा उनकी दाईं आंख में मोतियाबिंद भी था, जिसका अभी एक ऑपरेशन हुआ है और दूसरा ऑपरेशन भी इसी महीने होना है.
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