कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में वैदिक काल से ही देव परंपरा चली आ रही है. इसी परंपरा ने पहाड़ की समृद्ध संस्कृति को भी जीवित रखा हुआ है. ऐसे में हिमाचल के जिला कुल्लू में आज भी ऐसी अनूठी धर्म संसद लगती है, जहां इंसानों के साथ-साथ देवी-देवताओं के मामले भी निपटाए जाते हैं. स्थानीय भाषा में इसे जगती कहते हैं. कुल्लू जिला में ऐसी ही एक परंपरा है, जिसे जगती पूछ के नाम से जाना जाता हैं. विश्व कल्याण या किसी अहम मुद्दे के लिए होने वाले इस जगती को देव संसद या धर्म संसद भी कहा जाता है. जब-जब विश्व में प्राकृतिक आपदा की संभावना होती है. तब-तब कुल्लू के देवी-देवता यहां के राज परिवार के प्रमुख को जगती पूछ के आयोजन करने का आदेश देते हैं.
धर्म संसद में देवी-देवता करते हैं शिरकत
देव समाज के इस अद्भुत आयोजन में कुल्लू घाटी के देवता शिरकत करते हैं. जिला कुल्लू के नग्गर गांव में यह ऐसी धर्म संसद है, जिसमें इंसानों के साथ-साथ देवताओं के मामले भी निपटाए जाते हैं. स्थानीय निवासी इस संसद को जगती पट कहते हैं. जगती यानी के न्याय और पट का मतलब मूर्ति होता है.

देवी-देवताओं ने स्थापित किया था नग्गर कैसल
जिला कुल्लू के ऐतिहासिक गांव नग्गर कैसल में प्राचीन काल से समस्त देवी-देवताओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है. जहां पर देव कार्य से संबंधित प्रत्येक निर्णय लिए जाते हैं. जगती पट पर लिया गया निर्णय सभी देवी-देवताओं के लिए आखिरी निर्णय होता है. क्योंकि यह स्थान सभी देवी-देवताओं की ओर से प्राचीन काल में स्थापित किया गया था. धार्मिक मान्यता है कि समस्त देवी-देवताओं ने मधुमक्खी का रूप धारण कर इस शिला को मनाली के बाहंग के पास स्थित द्राम डांग से काट कर नग्गर में स्थापित किया था. बहुत से फैसले ऐसे होते थे, जिसे एक अकेला देवता या आदमी निपटा नहीं सकता था. इसलिए प्राचीन काल में इस स्थान की स्थापना की गई.
बलि प्रथा मामले में धर्म संसद का अहम फैसला
जिला कुल्लू में समय-समय पर इस स्थान पर सभी देवी-देवताओं की धर्म संसद लगती है. समाज से संबंधित हर तरह का निर्णय इस स्थान पर लिया जाता है. इसलिए इस स्थान को देवताओं की अदालत कहा जाता है. जो निरंतर हजारों सालों से चली आ रही है. साल 2007 के समय में स्की विलेज से संबंधित और साल 2014 में प्रदेश हाईकोर्ट के द्वारा बलि प्रथा पर रोक को लेकर भी इस स्थान पर सभी देवी-देवताओं ने मिलकर धर्म संसद का आयोजन किया था और उसमें अहम फैसले लिए गए थे, जिसे कुल्लू के समस्त जनमानस ने माना था.
इस मंदिर में स्थापित अलौकिक शिला की आज भी धार्मिक रीति-रिवाजों से पूजा होती है. स्थानीय निवासी विक्की शर्मा और सुरेश आचार्य ने बताया कि जगती पट स्थान सभी देवी-देवताओं के साथ-साथ कुल्लू निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण पवित्र स्थान है. प्राचीन समय से कई महत्वपूर्ण फैसले इस स्थान पर लिए गए है. आज भी इस स्थान की श्रद्धा वैसे ही बरकरार है.

भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार एवं पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने कहा, "जगती पट में जगती बुलाने का अधिकार उनके ही परिवार को है. घाटी में जब भी कोई आपदा आने वाली हो तो देवी-देवता मिलकर उसका निपटारा करते हैं. आज भी लोगों की जगती पट पर काफी श्रद्धा है और विपत्ति के समय लोग जगती पट में ही उससे निपटने की प्रार्थना करते हैं. जगती के लिए सबसे पहले राज परिवार का बड़ा सदस्य यानी राजा की ओर से देवताओं के प्रतिनिधियों यानी गुर, पुजारी और कारदार को निमंत्रण देता है. उसके बाद तय तिथि और स्थान पर सभी देवता जगती के लिए एकत्रित होते हैं".
सभी को मानना पड़ता है जगती पट का आदेश
इस दिन भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह सबसे पहले भगवान की पूजा करने के बाद जगती में शामिल होने वाले सभी देवताओं के गुर के आगे पूछ डालते हैं. इसके साथ ही जिस विषय पर जगती बुलाई जाती है, उस पर राय ली जाती है. पूछ के जरिए सभी गुर अपने देव वचन सुनाते हैं. देवताओं के संयुक्त विचार के बाद एक फैसला सुनाया जाता है. इस जगती पट का आदेश सभी लोगों को मानना पड़ता है. वहीं, इस आदेश की अवहेलना करने वाले को दंड का भागी बनना पड़ता है.
इन जगहों पर होता है जगती का आयोजन
जिला कुल्लू में जगती का आयोजन भगवान रघुनाथ जी के मंदिर, नग्गर स्थित जगती पट मंदिर, ढालपुर मैदान में किया जाता है. इसमें देवता किसी समस्या पर हल निकालने के लिए यह करवाते हैं. वहीं, राज परिवार के सबसे बड़े सदस्य भी किसी विशेष समस्या या विश्व शांति के लिए इसको बुलाते हैं. जगती के दौरान इसमें भाग लेने वाले देवताओं को निमंत्रण के बाद इसमें भाग लेना या न लेना उनकी मर्जी पर होता है, लेकिन इसमें नग्गर की देवी त्रिपुरा सुंदरी, कोटकंडी के पंजवीर देवता, देवता जमलू और माता हिडिंबा की मुख्य भूमिका रहती है. पूछ के दौरान इनको विशेष तौर पर पूछा जाता है और जगती के लिए दिन यह देवता ही तय करते हैं.

भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा, "जगती देव आदेश पर ही होती है. यदि इसका आयोजन नग्गर स्थित जगती पट में होता है तो उसके लिए माता त्रिपुरा सुंदरी को पूछा जाता है. यदि रघुनाथ जी के यहां होती हो तो भगवान रघुनाथ जी ही दिन तय करते हैं".
आपदा, महामारी और संकट में घड़ी में बुलाई जाती है जगती
प्राप्त जानकारी के मुताबिक कुल्लू में जब भीषण सूखा पड़ा था तो रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह के दादा-दादी ने जगती बुलाई थी. दूसरी बार 16 फरवरी 1971 में जगती बुलाई गई थी, जब घाटी में महामारी फैली थी. तीसरी बार 16 फरवरी 2007 में और चौथी बार 26 सितंबर 2014 को जगती बुलाई गई थी. वहीं, साल 2019 में भी ढालपुर मैदान की शुद्धि के लिए नग्गर में जगती का आयोजन किया गया था.
जिला कुल्लू देवी देवता कारदार संघ के अध्यक्ष दोत राम ने कहा, "जिला कुल्लू में देवी-देवताओं से संबंधित मामलों को लेकर नग्गर के जगती पत में फैसले लिए जाते हैं और देवी देवताओं के साथ-साथ श्रद्धालु भी उनका आज तक पालन करते हैं. जहां पर ग्रामीणों में भी देवी देवताओं के प्रति आस्था है. आज भी ग्रामीण अपने विवादों को लेकर देवी देवता के पास जाते हैं और देवी देवता उनके साथ न्याय करते हैं".
'स्की विलेज प्रोजेक्ट पर देवी-देवताओं ने थी लगाई रोक'
साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर का कहना है कि जगती पट में जो शिला है, उसके बारे में मान्यता है कि मधुमक्खियां द्वारा इसे पहाड़ी से काटकर यहां नग्गर में स्थापित किया गया है. जब भी देव समाज या फिर आम समाज पर कोई संकट पड़ता है तो देवी देवताओं के द्वारा जगती बुलाने के बारे में निर्देश जारी किए जाते हैं. देवी देवता रथ के माध्यम से नहीं बल्कि अपने-अपने निशान गुर के माध्यम से यहां पर भेजते हैं और सभी देवी देवताओं के गुर को यहां पर पूछा जाता है. सभी देवी देवताओं की आपसी सहमति के बाद अंतिम फैसला किया जाता है, जो की सर्वमान्य होता है. स्की विलेज को लेकर भी यहां पर जगती का आयोजन किया गया था और देवी देवताओं ने इस प्रोजेक्ट को लगाने से इनकार किया था. बाद में प्रदेश सरकार ने भी स्थानीय लोगों और देवी देवताओं के आदेश को समझते हुए इस प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था.
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