मंडला: इतिहास से मंडला जिले का गहरा नाता रहा है. फिर चाहे गौंड काल के शासकों की बात हो या डायनासोर के अंडों से जुड़ा इतिहास. हर काल की कहानियां, किस्से और प्रमाण आज भी मंडला के पुरातत्व संग्रहालय में मौजूद हैं. ऐसा ही एक और बड़ा प्रमाण मंडला में मौजूद हैं जिसे ताम्रपत्र कहा जाता है, यह एक प्योर तांबे की धातु से बना हुआ है. जो उस काल का प्रतीक है.
ताम्रपत्र में कई शब्दों का समावेश
मंडला के पुरातत्व संग्रहालय में 1179 वीं सदी का ताम्रपत्र आज भी सुरक्षित हैं, जो उस काल का गवाह है. "ताम्रपत्र" में कई शब्दों का समावेश है. जिसे देखने और पढ़ने से प्रतीत होता है कि वह हिंदी भाषा नहीं है. उस काल में लिखी जाने वाली शब्दावली इस ताम्रपत्र में अंकित हैं. गौरवशाली ताम्रपत्र का दूसरा भाग ही सुरक्षित है जो 11वीं और 12वीं सदी के इतिहास को सहेजे हुए है.
झूलपुर से प्राप्त हुआ था ताम्रपत्र
राज्य पुरातत्व विभाग में पदस्थ डिप्टी डायरेक्टर के एल डाभी ने बताया कि "11वीं सदी के राजा विजय सिंह देव ने ताम्रपत्र को माटिम गांव निवासी पंडित विद्याधर शर्मा नामक एक ब्राह्मण को दिया था. जो कि मंडला जिले के झूलपुर से प्राप्त हुआ था. जिसे अब जिला पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है."

राजा विजय सिंह देव का है ताम्रपत्र
डिप्टी डायरेक्टर के एल डाभी बताते हैं कि "यह ताम्रपत्र 16 जुलाई 1977 को झूलपुर से प्राप्त हुआ था. यह संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि के प्रारम्भिक स्वरूप में लिखा हुआ है. ताम्रपत्र के वाचन से प्रतीत होता है कि यह दो पृष्ठों में लिखा गया था. जिसका दूसरा पृष्ठ शेष रह गया है. ताम्रपत्र एक श्लोक की दूसरी लाइन से प्रारम्भ होता है. जिसकी पहली लाइन ताम्रपत्र के पहले पृष्ठ पर रह गई है."
कलचुरि वंश के अंतिम शासक त्रैलोक्यमल्ल
कलचुरि राजा विजय सिंह देव द्वारा ताम्रपत्र को एनोली ग्राम शिविर में 949 ई से सन 1197 के बीच निर्मित कराया गया था. उन्होंने अपने पुत्र त्रैलोक्यमल्ल के जन्म संस्कार के मौके पर विद्याधर शर्मा नामक ब्राह्मण को यह ताम्रपत्र दान में दिया था. इस ताम्रपत्र के मिलने के पहले विजय सिंह देव को कलचुरि वंश का अन्तिम शासक माना जाता था लेकिन ताम्रपत्र से पता चलता है कि विजय सिंह देव के बेटे त्रैलोक्यमल्ल कलचुरि वंश के अन्तिम शासक थे. उन्हें साल 1211 में विजय सिंह देव का उत्तराधिकारी बनाया गया था.

चन्देल राजा का खुला राज
सन 1926 में प्राप्त घुरेटी ताम्रपत्र के अनुसार, त्रैलोक्यमल्ल को रीवा का चन्देल राजा माना जाता था. किन्तु इस ताम्रपत्र की प्राप्ति के बाद वह धारणा निर्मूल सिद्ध हो गई है. इस ताम्रपत्र की प्राप्ति से पूर्व तक अजय सिंह देव को विजय सिंह देव का पुत्र और उत्तराधिकारी समझा जाता था. लेकिन ताम्रपत्र से पता चलता है कि अजय सिंह देव, विजय सिंह देव का अनुज था. अजय सिंह देव का त्रैलोक्यमल्ल पुत्र और उत्तराधिकारी था. जिसने विजय सिंह देव के बाद सन् 1211 से 1251 तक शासन किया.
महत्वपूर्ण निर्णयों में ताम्रपत्र का उपयोग
ताम्रपत्र से यह भी ज्ञात होता है कि मंडला जिला निश्चित रूप से कलचुरियों और शासन अंतर्गत था. यह ताम्रपत्र अनीस गौरी द्वारा यह ताम्रपत्र संग्रहालय को प्रदान किया गया था. आज के समय में किसी भूमि और वस्तु को दान या बेचने के लिए कागजी कार्रवाई होती है ताकि खरीद, बिक्री और दान का रिकॉर्ड हो. वहीं, 11 वीं सदी में ताम्रपत्र का प्रयोग कर उसमें दान के विषय को अंकित कर प्रदान करते थे. उस दौर का प्रमाण मान्य होता था.
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि झूलपुर मंडला तहसील का एक गांव है. यह मंडला नगर से उत्तर-पश्चिम की दिशा में स्थित है. यहां पहुंचने के कई मार्ग हैं. मंडला-घंसौर मार्ग पर सिवनी जिले का एक गांव भिलाई मौजूद है. जहां से यह कुछ कि.मी. दूर है.
1977 में हुई थी मध्यस्थता
झूलपुर के मंदिरों के भग्नावशेष एक किसान को मिला था. जिसका नाम "झूलपुर ताम्रपत्र" पड़ा. कई हाथों से गुजरते हुए, यह जिले के एक मुसलमान के पास पहुंचा. उनसे जिला पुरातत्व संघ, मंडला के संस्थापक सचिव डॉ. धर्मेन्द्र प्रसाद ने मण्डला नगर के ओंकार सिंह ठाकुर और अनीस गौरी की मध्यस्थता से 16 जुलाई 1977 को ताम्रपत्र मंडला संग्रहालय को दान कर दिया था. उसी वक्त से यह संग्रहालय की एक विशिष्ट उपलब्धि के रूप में गौरव बढ़ा रहा है.
ताम्रपत्र की विशेषता
ताम्रपत्र पर जिलाध्यक्ष द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार, प्रोफेसर दिनेश चन्द्र त्रिपाठी उस दौरान संग्रहालय के सचिव रहे और ताम्रपत्र की लिपि को पढ़ने वाले प्रथम व्यक्ति थे. उनके द्वारा किए गए अनुवाद का लेख प्रस्तुत किया गया है. ताम्रपत्र की लंबाई 34 सेंटीमीटर है और चौड़ाई 27 सेंटीमीटर है. वहीं इसकी मोटाई 0.5 सेंटीमीटर है. जोकि शुद्ध तांबे का बना है. इस पर 24 सीधी पंक्तियां उत्कीर्ण की गई है.
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मंडला के जिला पुरातत्व विभाग परिसर और कार्यालय के भीतर अनेकों ऐसी जीवाश्म मूर्तियां, औजार, धातु, कलाकृति और पत्थर सहित अन्य अवशेष सुरक्षित रखे गए हैं. जो कई वर्ष के इतिहास को दर्शाते हैं. पर्यटक भी बड़ी संख्या में जिला पुरातत्व संग्रहालय पहुंचकर इतिहास से जुड़ी जानकारी प्राप्त करते हैं. परिसर में चारों तरफ जीवाश्म और कलाकृति रखी हुई हैं जो अपने आप में पूर्व काल के इतिहास का प्रमाण देती हैं.