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51 सिद्धपीठों में खास है ये धाम, माता सती की नाभि से जुड़ा है इतिहास, जानिए इस मंदिर का रहस्य - MAA PURNAGIRI DHAM TANAKPUR

देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे कई मंदिर हैं, जिनका इतिहास काफी रौचक है. ऐसे ही एक मंदिर बारे में आज आपको बताते हैं.

maa purnagiri dham
मां पूर्णागिरि धाम (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : March 22, 2025 at 7:02 AM IST

4 Min Read

खटीमा: उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा जाता है. चारधामों के अलावा देश के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में शुमार मां पूर्णागिरि का धाम भी उत्तराखंड के चंपावत जिले में पड़ता है. देश की राजधानी दिल्ली से मात्र 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह सुविख्यात मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. हर वर्ष चैत्र नवरात्र में तीन माह का राजकीय मेला इस प्रसिद्ध धाम में आयोजित होता है, जिसमें उत्तराखंड, यूपी और पड़ोसी देश नेपाल के अवाला कई राज्यों से भक्त माता के दर्शन करने आते हैं.

पूर्णागिरि में गिरी थी माता सती की नाभि: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णागिरि धाम में माता सती के नाभि गिरी थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने महल में यज्ञ का आयोजन किया गया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया था, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा था. माता सती इसी बात से नाराज हो गई थी और उन्होंने जलते हवन कुंड में छलांग लगा दी.

मां पूर्णागिरि के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु (Video-ETV Bharat)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जैसे ही ये जानकारी भगवान शिव को मिली तो वो भी दक्ष प्रजापति के महल में पहुंचे और माता सती के जलते शरीर को लेकर आकाश मार्ग में रुष्ट हो विचरण करने लगे. भगवान भोलेनाथ के गुस्से को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से माता सती के 51 टुकड़े किए थे, जो देश के विभिन्न हिस्सों में गिरे थे, जो कालांतर में शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए.

भक्तों की मुराद पूरी करती है मां पूर्णागिरि: पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती का नाभि अंग टनकपुर के अन्नपूर्णा पर्वत में गिरा था, जिसे आज माता पूर्णागिरि के नाम से पूजा जाता है. कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से माता माता पूर्णागिरि के दर पर आता है, मां उसकी हर मुराद पूरी करती हैं.

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मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद बाबा भैरव मंदिर का आशीर्वाद लेना होता है. (Photo-ETV Bharat)

मंदिर के पुजारी बताते है कि जब माता की चुनरी का प्रचलन नहीं था, तो श्रद्धालु पहाड़ी की घास में गांठ बांध मनोकामनाओं को मांगते थे. वहीं अब चुनरी में गांठ बांधकर मां के दरबार में मनोकामनाओं को मांगने का रिवाज है. अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर लोग मां के दरबार में चुनरी की गांठ खोलने भी आते हैं.

मां पूर्णागिरि के बाद काली मंदिर और बाबा भैरव मंदिर जाना जरूर: मां पूर्णागिरि के दर्शन कर भक्त काली मंदिर के दर्शन करते हैं. इसके बाद बाबा भैरव मंदिर कर भक्तगण टनकपुर को प्रस्थान करते हैं. मां पूर्णागिरि के दरबार में बच्चों के मुंडन संस्कार की भी बेहद मान्यता है. सैकड़ों लोग हर वर्ष अपने नौनिहालों के मुंडन संस्कार हेतु इस दरबार में पहुंचे हैं.

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झूठे मंदिर की भी अपनी एक कहानी (Photo-ETV Bharat)
मां पूर्णागिरि धाम के यात्रा मार्ग में एक झूठे का मंदिर भी स्थापित है. वह भी इस दरबार में आने वाले लोगों की आस्था का केंद्र है. उस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक निसंतान दंपति ने मां से संतान की अरदास लगाई थी. साथ ही संतान होने पर विशाल सोने के मंदिर चढ़ाने का भी संकल्प लिया था.
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पूर्णागिरि में मां सती की गिरी थी नाभि (Photo-ETV Bharat)

बताया जाता है कि मां के आशीर्वाद से निसंतान दंपति को औलाद सुख मिला तो उसके मन में लालच आ गया. वह लोहे पर मंदिर में सोने का पानी चढ़ाकर मां के दरबार में आया. लेकिन भैरव मंदिर से आगे जब उससे सुस्ताने को मंदिर नीचे रखा तो मां के चमत्कार से वह मंदिर वहां से नहीं उठ पाया. तभी से उस स्थान पर झूठे का मंदिर विद्यमान है. इसलिए माता के मंदिर को सच्चे दरबार के रूप में भी मान्यता है, जो भी श्रद्धालु मां पूर्णागिरि दरबार में सच्चे मन से मनौती मांगता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

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51 सिद्धपीठों में एक है मां पूर्णागिरि धाम (Photo-ETV Bharat)

कैसे पहुंचे माता पूर्णागिरि धाम के धाम: पूर्णागिरि धाम पहुंचे के लिए आपको उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर पहुंचा होगा. टनकपुर आप रेल और बस दोनों मार्ग से पहुंच सकते है. दिल्ली, देहरादून और लखनऊ समेत देश के कई शहरों से आपको टनकपुर के लिए सीधी रेल मिल जाएगी. पूर्णागिरि धाम टनकपुर से करीब 20 किमी है, जहां पर टैक्सी या बस से आसानी से जा सकते हैं.

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खटीमा: उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि नहीं कहा जाता है. चारधामों के अलावा देश के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में शुमार मां पूर्णागिरि का धाम भी उत्तराखंड के चंपावत जिले में पड़ता है. देश की राजधानी दिल्ली से मात्र 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह सुविख्यात मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. हर वर्ष चैत्र नवरात्र में तीन माह का राजकीय मेला इस प्रसिद्ध धाम में आयोजित होता है, जिसमें उत्तराखंड, यूपी और पड़ोसी देश नेपाल के अवाला कई राज्यों से भक्त माता के दर्शन करने आते हैं.

पूर्णागिरि में गिरी थी माता सती की नाभि: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णागिरि धाम में माता सती के नाभि गिरी थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने महल में यज्ञ का आयोजन किया गया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया था, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा था. माता सती इसी बात से नाराज हो गई थी और उन्होंने जलते हवन कुंड में छलांग लगा दी.

मां पूर्णागिरि के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु (Video-ETV Bharat)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जैसे ही ये जानकारी भगवान शिव को मिली तो वो भी दक्ष प्रजापति के महल में पहुंचे और माता सती के जलते शरीर को लेकर आकाश मार्ग में रुष्ट हो विचरण करने लगे. भगवान भोलेनाथ के गुस्से को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से माता सती के 51 टुकड़े किए थे, जो देश के विभिन्न हिस्सों में गिरे थे, जो कालांतर में शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए.

भक्तों की मुराद पूरी करती है मां पूर्णागिरि: पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती का नाभि अंग टनकपुर के अन्नपूर्णा पर्वत में गिरा था, जिसे आज माता पूर्णागिरि के नाम से पूजा जाता है. कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से माता माता पूर्णागिरि के दर पर आता है, मां उसकी हर मुराद पूरी करती हैं.

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मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद बाबा भैरव मंदिर का आशीर्वाद लेना होता है. (Photo-ETV Bharat)

मंदिर के पुजारी बताते है कि जब माता की चुनरी का प्रचलन नहीं था, तो श्रद्धालु पहाड़ी की घास में गांठ बांध मनोकामनाओं को मांगते थे. वहीं अब चुनरी में गांठ बांधकर मां के दरबार में मनोकामनाओं को मांगने का रिवाज है. अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर लोग मां के दरबार में चुनरी की गांठ खोलने भी आते हैं.

मां पूर्णागिरि के बाद काली मंदिर और बाबा भैरव मंदिर जाना जरूर: मां पूर्णागिरि के दर्शन कर भक्त काली मंदिर के दर्शन करते हैं. इसके बाद बाबा भैरव मंदिर कर भक्तगण टनकपुर को प्रस्थान करते हैं. मां पूर्णागिरि के दरबार में बच्चों के मुंडन संस्कार की भी बेहद मान्यता है. सैकड़ों लोग हर वर्ष अपने नौनिहालों के मुंडन संस्कार हेतु इस दरबार में पहुंचे हैं.

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झूठे मंदिर की भी अपनी एक कहानी (Photo-ETV Bharat)
मां पूर्णागिरि धाम के यात्रा मार्ग में एक झूठे का मंदिर भी स्थापित है. वह भी इस दरबार में आने वाले लोगों की आस्था का केंद्र है. उस मंदिर के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक निसंतान दंपति ने मां से संतान की अरदास लगाई थी. साथ ही संतान होने पर विशाल सोने के मंदिर चढ़ाने का भी संकल्प लिया था.
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पूर्णागिरि में मां सती की गिरी थी नाभि (Photo-ETV Bharat)

बताया जाता है कि मां के आशीर्वाद से निसंतान दंपति को औलाद सुख मिला तो उसके मन में लालच आ गया. वह लोहे पर मंदिर में सोने का पानी चढ़ाकर मां के दरबार में आया. लेकिन भैरव मंदिर से आगे जब उससे सुस्ताने को मंदिर नीचे रखा तो मां के चमत्कार से वह मंदिर वहां से नहीं उठ पाया. तभी से उस स्थान पर झूठे का मंदिर विद्यमान है. इसलिए माता के मंदिर को सच्चे दरबार के रूप में भी मान्यता है, जो भी श्रद्धालु मां पूर्णागिरि दरबार में सच्चे मन से मनौती मांगता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

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51 सिद्धपीठों में एक है मां पूर्णागिरि धाम (Photo-ETV Bharat)

कैसे पहुंचे माता पूर्णागिरि धाम के धाम: पूर्णागिरि धाम पहुंचे के लिए आपको उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर पहुंचा होगा. टनकपुर आप रेल और बस दोनों मार्ग से पहुंच सकते है. दिल्ली, देहरादून और लखनऊ समेत देश के कई शहरों से आपको टनकपुर के लिए सीधी रेल मिल जाएगी. पूर्णागिरि धाम टनकपुर से करीब 20 किमी है, जहां पर टैक्सी या बस से आसानी से जा सकते हैं.

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